एक दिमाग सौ शास्त्रों का निर्माण कर सकता है - साध्वी कीर्ति लता

एक दिमाग सौ शास्त्रों का निर्माण कर सकता है - साध्वी कीर्ति लता
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भीलवाड़ा । पर्युषण महापर्व का दूसरा दिन साध्वी श्री कीर्तिलता जी के पावन सान्निध्य में तेरापंथ नगर में स्वाध्याय दिवस के रूप में मनाया गया । मीडिया प्रभारी धर्मेन्द्र कोठारी ने बताया कि इस अवसर पर साध्वी कीर्तिलता ने अपने प्रवचन में कहा कि जहां संघ होता है वहां मर्यादाएं लक्ष्मण रेखा की भांति अनिवार्य हो जाती है, मनुष्य का अस्तित्व एक अनमोल खजाना है, क्योंकि सौ शास्त्र मिलकर एक दिमाग का निर्माण नहीं कर सकते लेकिन एक दिमाग सौ शास्त्रों का निर्माण कर सकता है और जिसने भी अपने दिमाग का सदुपयोग किया वह आइंस्टीन, भिक्षु, तुलसी बना है । जिस संघ में जिस परिवार में मर्यादा नहीं वह न तो परिवार चल सकता है और न ही संग चल सकता है । संघ की नीव को मजबूत करने के लिए मर्यादा व समर्पण की ध्वजा चाहिए । साध्वीश्री ने मुनिश्री अमोलक चंदजी स्वामी की रोमांचकारी घटना का उल्लेख करते हुए शील की महिमा बताई । भगवान महावीर के सत्ताईस भवों की चर्चा करते हुए आगे कहा नयसार का जीव देवलोक से च्व्यन कर मनुष्य लोक में भगवान ऋषभ के पौत्र मरीचि के रूप में पैदा हुआ । देवगति वाले जो जीव अपने पुण्य बल का भोग कर लेते हैं,वे जीव वहां से च्व्यन कर पृथ्वी पानी व वनस्पति में उत्पन्न होते है । और जो जीव अपने पुण्य को बचाकर रखते हैं वह मनुष्य योनि में जाते हैं । साध्वी श्रेष्ठ प्रभा ने स्वाध्याय दिवस पर विचार रखते हुए कहा स्वाध्याय आत्म दीपक है, स्वाध्याय मस्तिष्क का रसायन है, इससे मस्तिष्क को पोषण मिलता है, स्वाध्याय मन के विकारों को मिटाता है ।कार्यक्रम का शुभारंभ ज्ञानशाला की प्रशिक्षकाओं के मंगलाचरण से हुआ । रात्रि कालीन कार्यक्रम में साध्वी पूनम प्रभा जी ने नमस्कार महामंत्र का विवेचन करते हुए कहा संसार में अनेकों मंत्र है, लेकिन नमस्कार मंत्र को महामंत्र कहा गया है ।

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