पोटलां तालाब को कंजर्वेशन रिजर्व क्षेत्र घोषित कर क्रोकोडाइल झील के रूप में विकसित किया जाए

पोटलां तालाब को कंजर्वेशन रिजर्व क्षेत्र घोषित कर क्रोकोडाइल झील के रूप में विकसित किया जाए
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पोटलां राजस्थान में पड़ रही कड़ाके की सर्दी के कारण जनवरी में पारा जमाव बिंदु की ओर अग्रसर है। इस सर्दी से इंसान ही नहीं, जानवर भी परेशान है। सर्दी के कारण पोटलां तालाब का पानी बर्फ सा ठंडा हो गया है। इस पानी ने मगरमच्छों को भी परेशान कर दिया है।



इस कारण वे ज्यादातर समय पानी के बाहर ही नजर आ रहे हैं। तालाब के बीच बड़ी संख्या में टापुओं पर नजर आ रहे हैं सर्दियों के मौसम में दिनभर धूप सेंकते हैं। इस दौरान जरा सी आहट होते ही तेजी से पानी में छलांग लगा लेते हैं ।




पोटलां तालाब में मार्श मगरमच्छों की प्रजाति के बहुतायत संख्या में मगरमच्छ है यहां मगरमच्छ की अच्छी खासी तादाद है। तालाब में बड़ी संख्या में मगरमच्छ धूप सेंकते हैं।

आमतौर पर मगरमच्छ हरे रंग के होते हैं, लेकिन पोटलां में ग्रे एवं सिल्वर रंग के मगरमच्छ भी धूप सेंकते नजर आते हैं। हालांकि, इनका रंग नेचुरल सफेद नहीं होता। बल्कि तालाब के घारे मीट्टी की वजह से इनके शरीर पर चमकिले रंग की परत जम जाती है

आसानी से देखे जा सकते हैं

पोटलां तालाब बहुतायत संख्या में मगरमच्छ हैं। जो पांच सात फुट सहित आठ से लेकर दस फुट लंबे तक है। सर्दियों में पानी के ऊपर किनारे सहित टापुओं पर आकर धूप सेंकते हैं एवं मगरमच्छ धूप में सुस्ताते नजर आ जाते हैं।

इस तालाब में पहले मछलियां समेत बगुले, बत्तख सहित अन्य प्रजाति के जलीय जीव भी पाए जाते थे, लेकिन यहां मछली पालन करने वाले ठेकेदार द्वारा की जा रही विस्फोटक सामग्री के धमाकों की वजह से पक्षियों के बिना अब तालाब विरान हो रहा है वहीं मगरमच्छों का जीवन भी प्रभावित हो रहा है वहीं तालाब के आस पास पड़े पौधे पर बने हुए घोंसले से पक्षी भी पलायन कर रहे हैं

सर्दी नहीं झेल पाता मगरमच्छ

नेचर प्रमोटर जानकारों ने बताया- मगरमच्छ को धूप की जरूरत खाना पचाने, बॉडी को चार्ज करने और चलने फिरने के लिए होती है। मगरमच्छ लंबे समय तक कम खाना खा कर रह सकता है, लेकिन धूप की जरूरत रोज होती है। सर्दियों में ठंड ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकता। 16-17 डिग्री से कम तापमान होने पर मगरमच्छ को धूप की जरूरत पड़ती है। मगरमच्छ ज्यादा गहरे पानी में नहीं रहता है। पानी की सतह से 6 फीट तक ठंडी रहती है। ऐसे में मगरमच्छ को खुद के बॉडी टेंपरेचर मेंटेन करना होता है। इसीलिए सर्दी में वह धूप निकलने के बाद टापुओं, चट्टानों पर आकर बैठ जाते हैं। गर्मियों के समय में वह दिन में धूप में नहीं दिखते, शाम के समय पानी की सतह पर नजर आते हैं।

मेवाड़ में सबसे ज्यादा मगरमच्छ पोटलां तालाब में हैं।

मेवाड़ के भीलवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़ जिले में कहीं भी इतनी संख्या में मगरमच्छ नहीं है जितने पोटलां तालाब में हैं लोग बताते हैं कि पहले के मुकाबले अब 4-5 सालों में मगरमच्छों की संख्या घटी है जो चिंता का विषय है यदि संख्या इसी तरह घटती रहती है तो वो दिन दूर नही की एक दिन घटकर विलुप्त हो जाएंगे और तालाब मगरमच्छ विहीन हो जाएगा ग्रामीण बताते हैं कि बारिश के मौसम में आबादी इलाकों तक पहुंच जाते हैं जिन्हें बिना नुकसान पहुंचाए वापस तालाब में छोड़ दिया जाता है कस्बे के कैलाश पाराशर बताते हैं कि पर्यावरण प्रेमी चाहते हैं कि सरकार द्वारा तमाम गतिविधियों पर लगाम लगे एवं सरकार द्वारा संरक्षण संवर्धन का काम किया जाए एवं पोटलां तालाब को कंजर्वेशन रिजर्व क्षेत्र घोषित कर क्रोकोडाइल झील के रूप में विकसित किया जाए तो इस जलीय जीव एवं अन्य जीव- जंतुओं की सुरक्षा हो सकती है एवं इन्हें संरक्षित कर विलुप्त होने से बचाया जा सकता है

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