पढें, निर्जला एकादशी व्रत कथा

वर्ष में 24 एकादशी पड़ती हैं, इनका अलग-अलग नाम होता है। इनके महत्व के अनुसार इनकी अलग-अलग कथाएं भी हैं, जिनमें भगवान की महिमा का बखान होता है। इसलिए कथा पढ़े बिना व्रत पूरा नहीं होता। मान्यता है कि इस कथा को पढ़ने से भगवान उन्हीं भक्तों की तरह ही आपको भी आशीर्वाद देते हैं। यह पाप नाश करती है और कल्याण करती है। भीमसेन को इसके प्रभाव से स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। यहां पढ़ें निर्जला एकादशी व्रत कथा …
निर्जला एकादशी व्रत कथा की महिमा
निर्जला एकादशी व्रत कथा के अनुसार, एक बार की बात है शौनक आदि अट्ठासी हजार ऋषि-मुनि बड़ी श्रद्धा से एकादशी व्रत की कल्याणकारी और पापनाशक रोचक कथाएं सुनकर आनन्दमग्न हो रहे थे। इस बीच कुछ ऋषियों ने ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी की कथा सुनने की प्रार्थना की। तब सूतजी ने कहा- महर्षि व्यास से एक बार भीमसेन ने कहा – हे पितामह! भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि एकादशी के दिन व्रत करते हैं और मुझे भी एकादशी के दिन अन्न खाने को मना करते हैं। मैं उनसे कहता हूं कि भाई, मैं भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा कर सकता हूं और दान दे सकता हूं, लेकिन मैं भूखा नहीं रह सकता।”
इस पर महर्षि व्यास ने कहा – “हे भीमसेन! वे सही कहते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि एकादशी के दिन अन्न नहीं खाना चाहिए। यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रत्येक माह की दोनों एकादशियों को अन्न न खाया करो।
महर्षि व्यास की बात सुन भीमसेन ने कहा – “हे पितामह, मैं आपसे पहले ही कह चुका हूं कि मैं एक दिन तो क्या एक समय भी भोजन किए बिना नहीं रह सकता, फिर मेरे लिए पूरे दिन का उपवास करना क्या संभव है? मेरे पेट में अग्नि का वास है, जो ज्यादा अन्न खाने पर ही शांत होती है। यदि मैं प्रयत्न करूं तो वर्ष में एक एकादशी का व्रत अवश्य कर सकता हूं, अतः आप मुझे कोई एक ऐसा व्रत बताइये, जिसके करने से मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सके।”
भीमसेन की बात सुन व्यासजी ने कहा – “हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषि और महर्षियों ने बहुत-से शास्त्र आदि बनाए हैं। यदि कलियुग में मनुष्य उनका आचरण करे तो अवश्य ही मुक्ति को प्राप्त होगा। उनमें धन बहुत कम खर्च होता है। उनमें से जो पुराणों का सार है, वह यह है कि मनुष्य को दोनों पक्षों की एकादशियों का व्रत करना चाहिए। इससे उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है।”
महर्षि व्यास ने कहा – “हे वायु पुत्र! वृषभ संक्रांति और मिथुन संक्रांति के बीच में ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी आती है, उस दिन निर्जल व्रत करना चाहिए। हालांकि इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन करते समय यदि मुख में जल चला जाए तो इसका कोई दोष नहीं है, लेकिन आचमन में 6 माशे जल से अधिक जल नहीं लेना चाहिए। इस आचमन से शरीर की शुद्धि हो जाती है। आचमन में 6 माशे से अधिक जल मद्यपान के समान है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है। सूर्योदय से सूर्यास्त तक यदि मनुष्य जलपान न करे तो उससे बारह एकादशियों के फल की प्राप्ति होती है। द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले ही उठना चाहिए। इसके बाद भूखे ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। इसके बाद स्वयं भोजन करना चाहिए।
हे भीमसेन! स्वयं भगवान ने मुझसे कहा था कि इस एकादशी का पुण्य सभी तीर्थों और दान के बराबर है। एक दिन निर्जला रहने से मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें मृत्यु के समय भयानक यमदूत नहीं दिखाई देते, बल्कि भगवान श्रीहरि के दूत स्वर्ग से आकर उन्हें पुष्पक विमान पर बैठाकर स्वर्ग को ले जाते हैं। संसार में सबसे उत्तम निर्जला एकादशी का व्रत है। अतः यत्नपूर्वक इस एकादशी का निर्जल व्रत करना चाहिए। इस दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’, इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। इस दिन गौदान करना चाहिए। इस एकादशी को भीमसेनी या पाण्डव एकादशी भी कहते हैं।
निर्जल व्रत करने से पहले भगवान का पूजन करना चाहिए और उनसे प्रार्थना करनी चाहिए कि हे प्रभु! आज मैं निर्जल व्रत करता हूं, इसके दूसरे दिन भोजन करूंगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूंगा। मेरे सब पाप नष्ट हो जाएं। इस दिन जल से भरा हुआ घड़ा वस्त्र आदि से ढंककर स्वर्ण सहित किसी सुपात्र को दान करना चाहिए। इस व्रत के अंतराल में जो मनुष्य स्नान, तप आदि करते हैं, उन्हें करोड़ पल स्वर्णदान का फल प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस दिन यज्ञ, होम आदि करते हैं, उसके फल का तो वर्णन भी नहीं किया जा सकता। इस निर्जला एकादशी के व्रत के पुण्य से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं, उनको चाण्डाल समझना चाहिए। वे अंत में नरक में जाते हैं। ब्रह्म हत्यारे, मद्यमान करने वाले, चोरी करने वाले, गुरु से ईर्ष्या करने वाले, झूठ बोलने वाले भी इस व्रत को करने से स्वर्ग के भागी बन जाते हैं।
हे अर्जुन! जो पुरुष या स्त्री इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके निम्नलिखित कर्म हैं, उन्हें सर्वप्रथम विष्णु भगवान का पूजन करना चाहिए। इसके बाद गौदान करना चाहिए। इस दिन ब्राह्मणों को दक्षिणा देनी चाहिए। निर्जला के दिन अन्न, वस्त्र, छत्र आदि का दान करना चाहिए। जो मनुष्य इस कथा का प्रेमपूर्वक श्रवण करते हैं और पठन करते हैं वे भी स्वर्ग के अधिकारी हो जाते हैं।”
निर्जला एकादशी की एक अन्य कथा
एक बार महर्षि व्यास पांडवों के यहां पधारे। भीम ने महर्षि व्यास से कहा, भगवान! युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुंती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते हैं और मुझसे भी व्रत रखने को कहते है लेकिन मैं बिना खाए रह नहीं सकता, इसलिए चौबीस एकादशियों पर निराहार रहने की कष्ट साधना से बचाकर मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जिसे करने में मुझे विशेष असुविधा न हो और सबका फल भी मुझे मिल जाए।
महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के उदर में वृक नामक अग्नि है इसलिए अधिक मात्रा में भोजन करने पर भी उसकी भूख शांत नहीं होती है। महर्षि ने भीम से कहा कि तुम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत रखा करो। इस व्रत में स्नान आचमन मे पानी पीने से दोष नहीं होता है, इस व्रत से अन्य 23 एकादशियों के पुण्य का भी फल तुम्हें मिलेगा। भीम ने बड़े साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत किया, जिसके परिणाम स्वरूप प्रातः होते होते वह अचेत हो गए तब पांडवों ने गगाजल, तुलसी चरणामृत प्रसाद, देकर उनकी मूर्छा दूर की। इसलिए इसे भीमसेन एकादशी भी कहते हैं।
