भीलवाड़ा में बैल चालित पारंपरिक घाणी से तिल्ली का तेल और मावा तैयार, सर्दियों में बढ़ी मांग

भीलवाड़ा में बैल चालित पारंपरिक घाणी से तिल्ली का तेल और मावा तैयार, सर्दियों में बढ़ी मांग
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भीलवाड़ा | गुलाबी नगरी की सर्द हवाओं के बीच शहर की गलियों में फिर से बैल चलित पारंपरिक घाणी की चर्र-चर्र गूंज सुनाई देने लगी है। आधुनिक मशीनों के शोर के बीच यह पुरानी प्रक्रिया न केवल तिल का शुद्ध तेल निकालने का जरिया है, बल्कि सर्दी में शरीर को गर्माहट और पौष्टिकता देने का भी साधन है।

बैल की धीमी चाल से पिसे तिल से निकला तेल ओमेगा फैटी एसिड और विटामिन-ई से भरपूर होता है। तेल निकालने के बाद बची खली में गुड़ मिलाकर तिल्ली का मावा तैयार किया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में कान्या या सानी कहते हैं। बच्चों और बुजुर्गों के लिए यह मावा ऊर्जा, रोग प्रतिरोधक क्षमता और जोड़ों के दर्द में राहत प्रदान करता है।

पारंपरिक कारीगर बताते हैं कि तिल्ली, गुड़ और बैलों के चारे की बढ़ती कीमतों ने इस कार्य को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। फिर भी, स्वास्थ्य जागरूक ग्राहकों की मांग इस शुद्ध तेल और मावे को जीवित रखे हुए है। यह नजारा भीलवाड़ा की संस्कृति और परंपरा का प्रतीक बन चुका है, जहां लोग सदियों पुराने और शुद्ध तरीकों पर भरोसा करते हैं।

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