मांडल में ‘नव उत्थान’ के जश्न में व्यवस्था की पुरानी कमजोरियां उजागर

मांडल (सोनिया)।
सरकार के दो वर्ष पूरे होने के अवसर पर मांडल कस्बे में ‘नव उत्थान–नई पहचान’ विकास रथ को हरी झंडी दिखाकर रवाना कर दिया गया, लेकिन आयोजन के दौरान कस्बे की व्यस्त सड़कों पर व्यवस्था की स्थिति ने पुराने सवाल फिर से जिंदा कर दिए।
धोवनी नाड़ी के पास पड़े बैरिकेट्स नालों में बहते और धूल फांकते नजर आए, मानो वे पूछ रहे हों—“हमारी बारी कब आएगी?” पुलिस प्रशासन की अनदेखी का आलम यह रहा कि बैरिकेट्स सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही याद किए जाते हैं, जबकि बाकी समय वे बेसहारा पड़े रहते हैं। जिनका काम यातायात को दिशा देना है, वे खुद दिशा ढूंढते नजर आए।
सरकार के दो वर्ष पूरे होने के मौके पर मांडल बस स्टैंड पर आयोजित कार्यक्रम में मांडल विधायक, डिप्टी राहुल जोशी, उपखंड अधिकारी संजना जोशी, थानाधिकारी रोहिताश यादव, तहसीलदार उत्तम जांगिड सहित अन्य राजकीय लवाजमा मौजूद रहा। मंच सजा, नारे लगे और विकास रथ रवाना हुआ, लेकिन कस्बे की यातायात व्यवस्था रथ की तरह ही लड़खड़ाती रही।
रथ के दौरान बागौर, ब्यावर और भीलवाड़ा की ओर जाने–आने वाले वाहनों की आवाजाही बदस्तूर जारी रही। कस्बे में प्रवेश करने वाले चारों दिशाओं के बाईपास मार्गों पर बैरिकेट्स अपनी ड्यूटी का इंतजार करते रह गए। इसका नतीजा यह हुआ कि आमजन और वाहन चालक भ्रम की स्थिति में रहे—कहीं जाम, कहीं अफरा-तफरी और कहीं सवालों की लंबी कतार।
स्थानीय लोग तंज कसते हुए कह रहे थे कि “यह विकास रथ तो चल पड़ा, लेकिन व्यवस्था का पहिया अब भी पंचर ही है।” यदि बैरिकेट्स समय पर अपनी जगह पर होते, तो यातायात सुचारू रहता और पुलिस प्रशासन की तैयारी भी नजर आती।
कुल मिलाकर, ‘नव उत्थान–नई पहचान’ के जश्न में पुरानी लापरवाहियों की वास्तविक तस्वीर सामने आई। अब यह सवाल उठता है कि नालों में बहते और धूल चाटते बैरिकेट्स को कोई संभालने आएगा या वे अगली जरूरत तक सरकारी उपेक्षा की कहानी यूं ही कहते रहेंगे।
