महाराष्ट्र में गैर-मराठी भाषी प्रवासी नागरिकों के प्रति न हो दुर्व्यवहारः-विधायक कोठारी

भीलवाड़ा | महाराष्ट्र में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा गैर-मराठी भाषी नागरिकों, विशेष रूप से प्रवासी नागरिकों के साथ केवल मराठी भाषा नहीं बोलने के कारण दुर्व्यवहार की घटनाएं सामने आई हैं। जिस पर भीलवाड़ा विधायक ने खेद व्यक्त करते हुए देवेन्द्र फणनवीस, मुख्यमंत्री महाराष्ट्र को इन असामाजिक तत्वों के विरुद्ध कार्यवाही करने का निवेदन करते हुए यह पत्र लिखा कि भारत एक लोकतंत्र के रूप मंे सबसे ज्यादा सफल देश रहा है तथा इसका मूल आधार ‘‘अनेकता में एकता’’ है। इसी सिद्धांत ने अखण्ड भारतरूपी माला में विभिन्न राज्य, भाषा, धर्म जाति, पंथ को एकसूत्र में पिरोये रखा। धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान, भाषा के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिये, इन्हीं संवैधानिक मूल्यों के आधार पर भारत की बुनियाद स्थित है तथा यही भावना तो ‘‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’’ के मूल्य में है। हाल ही में घटित यह घटनाएँ अत्यंत चिंताजनक विषय है। ऐसी घटनाएं न केवल संविधान के मूल आदर्शों का उल्लंघन हैं, बल्कि देश की एकता, सामाजिक समरसता और आपसी सौहार्द पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
हमारे भीलवाड़ा जिले के कई भाई-बहिन व्यापारिक व पारिवारिक दृष्टि से महाराष्ट्र में बस चुके हैं। जिले के कई होनहार विद्यार्थी (सी.ए. एम.बी.ए) अपनी पढ़ाई को महाराष्ट्र खासकर मुबई में रह कर पूरी कर रहे हैं। भीलवाड़ा जिले के भी कई व्यापारिक प्रतिष्ठानों के ऑफिस भी महाराष्ट्र में हैं जिसमें मुख्य रूप से टेक्सटाइल, ट्रैक्टर-कम्प्रैशर व आइस्क्रीम व्यवसाय प्रमुख हैं एवं साथ ही महाराष्ट्र के कई व्यापारियों का भी टेक्स्टाइल, माइनिंग व अन्य व्यापारिक गतिविधियों में भीलवाड़ा आवागमन होता रहता है। प्रवासी व्यापारियों को सदैव यहाँ के व्यापारियों द्वारा आदर व स्नेह मिलता आया है, कभी भी भाषायी व अन्य किसी कारण से मतभेद उत्पन्न नहीं हुए हैं। हमें स्वयं भी मराठी भाइयों-बहनों से हमेशा प्रेम और सम्मान मिला है, जो दर्शाता है कि महाराष्ट्र कितनी उदार और समावेशी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। हमारा यह विश्वास है कि हाल की घटनाएं महाराष्ट्र की मूल सांस्कृतिक पहचान का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं, बल्कि ये कुछ सीमित, असामाजिक और विभाजनकारी मानसिकता से प्रेरित हैं, जिन्हें समय रहते रोका जाना अत्यंत आवश्यक है।
इस तरह के गंभीर मुद्दे को तत्काल संज्ञान में लिया जाए और उन असामाजिक तत्वों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाये ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहो जिससे सभी नागरिक बिना भय के अपने अधिकारों का उपयोग कर सकें। हम सब मिलकर भारत की मूल सोच ‘‘वसुधैव कुटुम्बम्’’ एवं ‘‘विविधता में एकता’’ के संकल्प को और सशक्त बनाएं - जहां कोई भी नागरिक, किसी भी भाषा, जाति या क्षेत्र से हो, स्वयं को हर राज्य में सुरक्षित और सम्मानित महसूस करे। तभी हम विकसित भारत के सपने को साकार कर पाएंगे।