अरावली पर्वतमाला की परिभाषा संशोधन को लेकर भीलवाड़ा में चेतावनी

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भीलवाड़ा। अरावली बचाओ संघर्ष समिति भीलवाड़ा ने अरावली पर्वतमाला की परिभाषा में हाल ही में किए गए संशोधनों को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। समिति ने जिला कलेक्टर भीलवाड़ा को पत्र भेजते हुए कहा कि यह पर्वतमाला भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है और राजस्थान सहित उत्तर भारत के पर्यावरणीय संतुलन, भूजल स्तर, वर्षा जल संचयन, जैव विविधता और मरुस्थलीकरण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

समिति ने बताया कि अगर अरावली की परिभाषा को संकुचित या कमजोर किया गया तो इसके कई गंभीर दुष्परिणाम होंगे। इनमें अवैध और अनियंत्रित खनन को बढ़ावा मिलना, पहाड़ियों का तेजी से क्षरण होना, भूजल स्तर में गिरावट, स्थानीय कृषक और पशुपालक की आजीविका पर असर और भविष्य में पर्यावरणीय आपदाओं का बढ़ना शामिल है।

समिति ने यह भी स्पष्ट किया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा अरावली क्षेत्र के संरक्षण के लिए जारी किए गए कठोर दिशा-निर्देशों का पालन अनिवार्य है। किसी भी प्रकार का संशोधन या शिथिलीकरण इन निर्देशों के विपरीत होगा और दीर्घकालीन जनहित के लिए हानिकारक साबित होगा।

अरावली बचाओ संघर्ष समिति भीलवाड़ा में जिले के विभिन्न समाज और संगठन शामिल हैं। इनमें राजस्थान जाट महासभा, अखिल भारतीय खटीक समाज संस्था, पुलेरिया माली समाज सम्पति ट्रस्ट, अखिल भारतीय गाडरी गडरिया महासभा, अखिल भारतीय गुर्जर महासभा, संजय कॉलोनी महेश्वरी समाज संस्थान, दशनाम गोस्वामी समाज विकास संस्था, राजस्थान प्रांतीय तैलिक साहू महासभा, श्री देव गौ सेवा संस्थान, राष्ट्रीय गौ सेवा वाहिनी, संघ पचिक सेना संगठन, श्री गोपाल गौशाला क्षत्रिय हितकारिणी महासभा, जन्नत फॉर बेजुबान आश्रय जीव सेवा संस्थान, राजस्थान मेवाड़ जाट महासभा, एनएसआई यूथ कांग्रेस और अखिल भारतीय प्रजापति कुम्हार समाज सेवा संस्थान शामिल हैं।

समिति ने सरकार और प्रशासन से अनुरोध किया है कि अरावली पर्वतमाला की परिभाषा में किसी भी प्रकार का बदलाव पर्यावरणीय संतुलन और जनहित को ध्यान में रखते हुए किया जाए, ताकि इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

इसी तरह राजस्थान की पर्यावरण सुरक्षा और जल-स्रोत संरक्षण के लिए अरावली पर्वतमाला को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने और अवैध खनन पर रोक लगाने की मांग फिर से जोर पकड़ रही है। जीवनब प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण संस्थान के अध्यक्ष मोतीलाल सिंघानिया ने राष्ट्रपति को इस संबंध में ज्ञापन भेजा है। ज्ञापन जिला कलेक्टर भीलवाड़ा के माध्यम से प्रेषित किया गया।

ज्ञापन में बताया गया कि पूर्व में राज्य सरकार की रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा 100 मीटर के दायरे में आदेश जारी किए गए थे। इसका दुरुपयोग भूमाफिया और खनन माफिया कर रहे हैं। इससे पर्वतमाला का प्राकृतिक संतुलन और जैव विविधता गंभीर खतरे में है। अरावली केवल राजस्थान ही नहीं, बल्कि गुजरात, हरियाणा और दिल्ली तक फैली हुई प्राचीन पर्वतमाला है। यह क्षेत्र जल, जंगल और वनस्पतियों का संरक्षण करता है और प्राकृतिक आपदाओं को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

ज्ञापन में यह भी बताया गया कि अरावली क्षेत्र में उदयपुर, माउंट आबू, सिरोही, पाली, अजमेर और राजसमंद जैसे अनेक ऐतिहासिक और प्राकृतिक पर्यटन स्थल मौजूद हैं। यहाँ के झरने, वन्यजीव और प्राकृतिक सौंदर्य राज्य की पहचान हैं। अरावली पर्वतमाला भूजल स्तर बनाए रखने, वर्षा जल संचयन और जलवायु संतुलन के लिए जरूरी है। अगर यह कमजोर हुई तो राजस्थान का बड़ा हिस्सा जल संकट, बढ़ती गर्मी और पर्यावरणीय असंतुलन की चपेट में आ सकता है।

वर्तमान में कई क्षेत्रों में पहाड़ों को तोड़कर निर्माण और औद्योगिक विस्तार किया जा रहा है। जंगल काटे जा रहे हैं और वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहा है। इससे आने वाले समय में राज्य को अपूरणीय क्षति हो सकती है।

जीवनब संस्थान ने सरकार से मांग की है कि अरावली पर्वतमाला के 100 मीटर के दायरे में खनन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश पर पुनर्विचार किया जाए, अवैध खनन पर रोक लगे और अरावली क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाए। स्थानीय समुदायों को संरक्षण प्रक्रिया में भागीदार बनाया जाए और पर्यावरण अनुकूल पर्यटन को बढ़ावा दिया जाए।

अरावली बचाओ संघर्ष समिति भीलवाड़ा ने भी इस मुद्दे पर जोर दिया है। समिति में जिले के विभिन्न समाज और संगठन शामिल हैं, जो अरावली पर्वतमाला के संरक्षण के लिए सक्रिय हैं। समिति का कहना है कि अरावली की परिभाषा में कोई भी कमी पर्यावरणीय असंतुलन, भूजल संकट और अवैध खनन को बढ़ावा दे सकती है।

संस्था और समिति ने सरकार और न्यायपालिका से आग्रह किया है कि अरावली पर्वतमाला को बचाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं और प्राकृतिक संसाधनों और मानव जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

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