उत्तम आकिंचन धर्म की आराधना की
भीलवाड़ा । दस लक्षण पर्व के नवें दिन दिगम्बर जैन समाज ने सोमवार को उत्तम आकिंचन धर्म की आराधना की गई। इस अवसर पर पण्डित आलोक मोदी ने कहाकि आकिंचन त्याग के बाद निर्लेपन का नाम है। व्यक्ति त्याग तो कर देता है लेकिन उसके अहंकार रुपी कषाय बनी रहती है। कषाय का एक परमाणु मात्र अंश को भी समाप्त करना निर्लेपन है। जैसे कैंसर रोग में ऑपरेशन के बाद कीटाणुओं के सम्पूर्ण विनाश के लिए कीमोथेरेपी की जाती है उसी प्रकार त्याग के बाद निर्लेपन किया जाता है। यही आकिंचन धर्म है। आकिंचन धर्म कहता है कि व्यक्ति को न तो अतीत की स्मृतियां आनी चाहिए और न ही अनागत की अपेक्षा करनी चाहिए। भोग उपभोग मिलने पर भी उनकी उपेक्षा करना आवश्यक है।
पण्डित आलोक मोदी ने इस अवसर पर सुधासागर महाराज की प्रेरणा से सांगानेर में 27 वर्ष पूर्व स्थापित श्रमण संस्कृति संस्थान के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस वर्ष संस्थान के चार सौ से अधिक विद्वान देश में विभिन्न स्थानों पर दशलक्षण पर्व के दौरान धर्म प्रभावना के लिए गये है। मोदी के आव्हान पर आर के कॉलोनी मंदिर में श्रावक-श्राविकाओं ने तीन लाख से अधिक दान राशि श्रमण संस्कृति संस्थान के लिए घोषित की।
तरणताल के सामने स्थित श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में आज प्रातः रुपचन्द नरेश गंगवाल ने स्वर्ण मुकुट धारण कर प्रथम अभिषेक एवं 108 रिद्धी मंत्रों से अभिषेक एवं शांतिधारा की। श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर ट्रस्ट के सचिव अजय बाकलीवाल ने बताया धनराज अजय टोंग्या ने शांतिनाथ भगवान के श्रीमस्तक पर शांतिधारा की। कमल पाटनी, पारस सोनी, महावीर पहाडिया, श्रवण कोठारी, रुपेन्द्र गोधा, कमल रारा, सनत अजमेरा, शैलेश कासलीवाल, ओमचन्द रिखबचन्द ने अन्य प्रतिमाओं पर शांतिधारा की। अभिषेक के पश्चात् संगीतमय पूजन में दसलक्षण धर्म के साथ उत्तम आकिंचन धर्म की आराधना की गई।