अमेरिका की ओर से व्यापारिक साझेदारों पर पारस्परिक टैरिफ लगाना भारत को कैसे प्रभावित करेगा, जानें

अमेरिका की ओर से व्यापारिक साझेदारों पर पारस्परिक टैरिफ लगाना भारत को कैसे प्रभावित करेगा, जानें
X

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ओर से सभी व्यापारिक साझेदारों पर पारस्परिक टैरिफ लगाने की घोषणा वैश्विक स्तर पर व्यापक चिंता और अनिश्चितता का कारण बन गई है। ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी बैठक से पहले उठाए गए इस कदम का उद्देश्य व्यापार संबंधों में लंबे समय से चले आ रहे असंतुलन को दूर करना बताया गया है। अमेरिका के कई व्यापारिक साझेदार देश अमेरिका में बनी वस्तुओं पर ऊंची टैरिफ लगाते हैं, हालांकि, अमेरिका अपेक्षाकृत खुली अर्थव्यवस्था बनाए रखता है। अब ट्रंप ने अमेरिका पर लगने वाले ऊंची टैरिफ का जवाब ऊंची टैरिफ से देने का एलान कर दुनिया को चिंता में डाल दिया है। जानकारों के अनुसार, भारत अमेरिकी आयातों पर भारतीय वस्तुओं पर लगाए जाने वाले अमेरिकी टैरिफ से 10 प्रतिशत अधिक शुल्क लगाता है। अब अगर अमेरिका जिस टैरिफ की बात कर रहा है, वह लगाया जाता है तो भारत कितना प्रभावित होगा आइए जानते हैं। सबसे पहले ट्रंप ने क्या कहा है वह जानते हैं।

ट्रम्प ने अपने एक बयान में अमेरिका के व्यापारिक साझेदार देशों के बारे में कहा, "वे यहां एक कारखाना, एक संयंत्र या जो कुछ भी हो, बना सकते हैं, और इसमें चिकित्सा, कार, चिप्स और सेमीकंडक्टर शामिल हैं, इसमें सब कुछ शामिल है।" उन्होंने कहा, "यदि आप यहां निर्माण करते हैं, तो आपको किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं देना होगा और मुझे लगता है कि यही होने जा रहा है। मुझे लगता है कि हमारा देश नौकरियों से भर जाएगा। लेकिन अगर आप ऐसा नहीं करते हैं, और अपने यहां चीजें बनाकर अमेरिका में बेचते हैं तो आपको टैरिफ का भुगतान करना होगा।"


अमेरिका की ओर से जवाबी टैरिफ का भारत पर क्या असर पड़ेगा?

अमेरिका राष्ट्रपति की ओर से पारस्परिक टैरिफ लगाने का एलान भारत के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत भी अमेरिका का अहम व्यापारिक साझेदार है, ट्रंप की टैरिफ से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले देशों में से एक है। फिलहाल भारत अमेरिका से अपने यहां होने वाले निर्यात पर औसतन 9.5% का टैरिफ लगातार है। दूसरी ओर, अमेरिका भारतीय वस्तुओं पर 3% का टैरिफ ही लगाता है। ऐसे में अगर अमेरिका जवाबी टैरिफ लगाता है तो भारत को भी कम से कम 10 प्रतिशत के टैरिफ का सामना करना पड़ेगा। जिससे भारतीय वस्तुओं के लिए अमेरिका में बाजार तलाशना मुश्किल हो सकता है। नोमुरा के विश्लेषकों के अनुसार, अमेरिकी निर्यात पर भारत का भारित औसत प्रभावी शुल्क भारतीय निर्यात पर अमेरिका की शुल्क दर से काफी अधिक है।

भारत से खाद्य उत्पाद, सब्जियां और कपड़ा निर्यात पर पड़ सकता है असर

मोदी के साथ अपनी बैठक से पहले भी ट्रंप ने कहा कि भारत उच्च टैरिफ के कारण "व्यापार करने के लिए एक कठिन जगह" है। "लेकिन फिर, वे हमसे जो भी शुल्क लेते हैं, हम उनसे वसूलते हैं। इसलिए, यह बहुत अच्छी तरह से काम करता है। यह एक सुंदर, सरल प्रणाली है, और हमें बहुत अधिक या बहुत कम शुल्क लेने के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है।" अमेरिकी टैरिफ का असर दूरगामी होने की उम्मीद है। भारत के खाद्य उत्पाद, सब्जियां, कपड़ा और परिधान क्षेत्र पर सबसे अधिक असर पड़ने की संभावना है। विद्युत मशीनरी, रत्न और आभूषण, फार्मा उत्पाद, ऑटो, लोहा और इस्पात भी उन प्रमुख वस्तुओं में शामिल हैं जिन्हें भारत अमेरिका को निर्यात करता है, ये सभी उत्पाद अमेरिका की ओर से घोषित पारस्परिक टैरिफ से प्रभावित हो सकते हैं।

30 अधिक अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ घटाने पर विचार कर रहा भारत

ताजा अमेरिकी एलानों के बाद, भारत 30 से अधिक उत्पादों पर टैरिफ कम करने और व्यापार तनाव को कम करने के लिए अमेरिकी रक्षा और ऊर्जा वस्तुओं के अपने आयात को बढ़ाने पर विचार कर रहा है। हालांकि, अमेरिका के साथ भारत का व्यापारिक संबंध थोड़ा जटिल है, और टैरिफ के दोनों पक्षों के व्यवसायों और उपभोक्ताओं के लिए दूरगामी असर पड़ने की संभावना है।

ट्रंप की टैरिफ योजना से भारत, जापान और यूरोपीय संघ पर सबसे अधिक असर

यदि ट्रम्प अपनी पारस्परिक टैरिफ योजनाओं को आगे बढ़ाते हैं तो भारत, जापान और यूरोपीय संघ को सबसे ज़्यादा नुकसान होने की आशंका है। टैरिफ इस साल अप्रैल से संभावित रूप से प्रभावी होने के अनुमान है। भारत अपनी अर्थव्यवस्था और व्यापार संबंधों पर पड़ने वाले इसके प्रभाव के लिए खुद को तैयार कर रहा है। पारस्परिक टैरिफ़ का वैश्विक व्यापार पर भी व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है। इस कदम को अमेरिकी व्यापार नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव के रूप में देखा जा रहा है, जिसका दुनिया भर में व्यापार संबंधों पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है। हाल9फिलहाल में में, अमेरिकी टैरिफ से उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ने और व्यवसायों के लिए प्रतिस्पर्धा कम होने की संभावना है। हालांकि, लंबी अवधि में, इस कदम से अमेरिका और उसके व्यापारिक साझेदारों के बीच अधिक संतुलित व्यापारिक संबंध बनने की भी उम्मीद है।

Next Story