भीलवाडा ही नहीं देश की अन्य कपड़ा मंडिया भी मंदी की चपेट में ,दो दिन बंद रखनी पड़ रही है फेक्ट्रियो को!

भीलवाडा ही नहीं देश की अन्य कपड़ा मंडिया भी मंदी की चपेट में ,दो दिन बंद रखनी पड़ रही है फेक्ट्रियो को!
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भीलवाड़ा( विजय गढवाल )देश भर में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखने वाली भीलवाड़ा कपड़ा मंडी भी कुछ समय से मंदी की चपेट में है, सप्ताह में 2 से 3 दिन तक कई कपड़ा बनने वाली इकाइयां को बंद रखना पड़ रहा है। देश की अन्य मंडियों की भी ऐसी ही हालत है।

भीलवाड़ा कपड़ा मंडी में पिछले कई महीनो से हालत ठीक नहीं है कपड़े की खपत नहीं होने से फैक्ट्री मालिकों को अपनी इकाइयां भीलवाड़ा सप्ताह में दो से तीन दिन बंद रखना पड़ रहा है। जबकि कई फैक्ट्रियां मात्र 12 घंटे ही संचालित की जा रही है एक कपड़ा दलाल राकेश मंडोरा ने बताया कि राजस्थान सरकार के गलत धारणा के कारण भीलवाड़ा की कपड़ा मंडी पीटी है सरकार ने पहले स्कूली ड्रेस का रंग चेंज करने की बात कही और बाद में उसे यथावत रखने की घोषणा कर दी, जिससे पिछले एक डेढ़ माह का सीजन खराब हुआ है वही स्थानिय स्तर पर बिक्री में काफी कमी आने से भी कपड़ा कारोबार में मंदी आई है। उन्होंने बताया कि अब विदेशों से कुछ आर्डर मिला है जिस तेजी आने की संभावना है।

ये कारण भी

भीलवाड़ा कपड़ा मंडी में गिरावट का मुख्य कारण अमरीका में ब्याज दर व कच्चे माल की कीमत बढऩा, अफगानिस्तान में व्यापार घटना और चीन से आयात बढऩा माना जा रहा है। इसके अलावा रूस-यूके्रेन युद्ध व इजरायल-हमास विवाद ने भी संकट औा गहरा दिया है। देश के बाजार में भी मांग में कमी आई है। माना जा रहा है कि अगले कुछ माह टेक्सटाइल उद्योग में तेजी की संभावना नहीं है।

भीलवाड़ा टेक्सटाइल सेक्टर में कपड़ा की छोटी-बड़ी मिलों में लाखों लोग रोजगार पाते हैं। भीलवाड़ा में पिछले कई माह से मंदी का दौर बना है। इससे स्पिनिंग, विविंग व कपड़ा प्रोसेस उद्योग की दरों में भी कमी आई है। उत्पादन में लगातार गिरावट आ रही है। ब्याज दरों में बढ़ोतरी के साथ महंगा कोयला, कॉटन के दाम में भारी उठापटक, केंद्र की टेक्सटाइल सेक्टर के लिए टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन स्कीम (टफ) का बंद होना। ग्लोबल डिमांड में कमी, चीन से कपड़े का आयात होने से कपड़ा इंडस्ट्री मुश्किल के दौर से गुजर रही है।

कपड़ा बाजार मंदी

सूरत-अहमदाबाद के कपड़ा बाजार में मंदी यूं ही नहीं है। पिछले कई माह से कपड़ा मार्केट के ये बड़े हब मंदी की चपेट में है। महाराष्ट्र में कोरोना ने बड़ा असर तो डाला ही है लेकिन स्थानीय स्तर पर बाजार से खरीदार गायब होना भी बड़ी वजह है। चन्दौसी कट पीस का बड़ा हब है और अन्य दिनों की तरह इस माह यहां से 70 प्रतिशत कारेाबार घटा। यानी बाजार में खरीदारी करने वाले लोग गायब हैं।हर किसी की अपनी दिक्कतें हैं। इसके साथ ही शादियों के महंगे खर्च का भी असर। हाल यह है कि सहालग के इस माह में जहां दुकानों पर भीड़ रहती थी वहीं अब खरीदार घट गए हैं। इन सब पर कपड़ा बाजार में महंगाई, काटन के कपड़ों में 25 से 30 प्रतिशत दाम की बढोत्तरी ने भी असर डाला है। चन्दौसी में 200 से ज्यादा दुकानदार हैं। जिनकी दुकानों से हर माह 3 से 3.5 करोड़ तक का कारोबार ही मुश्किल से हो पा रहा है जबकि पूर्व के सालों में इसी माह यह कारोबार चार से पांच करोड़ तक पहुंच जाता था। हाल यह है कि मंदी का असर ऐसा है कि यदि व्यापारी सूरत से दो गांठ कपड़ा का आर्डर करता है तो उसे 30 गांठ लेने का सुझाव दिया जाता है वह भी पैसे तब देने की बात होती है जब बिक जाए, लेकिन बाजार ही सूना है तो इसमें हाथ डालने को भी कोई तैयार नहीं है।

होल सेलर की दुकान में खरीदार कम

सहालग का महीना। शनिवार की दोपहर एक बजे। पिछले साल इसी माह इनकी दुकान में पैर रखने की जगह नहीं थी। इस बार तस्वीर अलग। भीड़ कम। खरीदार नदारद। दुकान के प्रोपराइटर व पूर्व सभासद सुशील कुमार लच्छी कहते हैं मंदी का असर है। बाजार में अब खरीदार कम हुए हैं। एक अनुमान है कि 70 प्रतिशत खरीदार घट गए। जब माल बिक नहीं रहा है तो आर्डर कहां से दे। आर्डर न देने का असर सूरत के कपड़ा कारोबार पर भी पड़ा है। वहां से मंदी दिखी तो देश में एक चर्चा छिड़ गई।

तीन माह बाद तो और भी मंदी

इस समय मंदी का असर है। ग्राहक नहीं है। जुलाई, अगस्त और सितंबर एक बार फिर ग्राहक घटेंगे। क्यों कि सहालग नहीं रहेगा। ऐसे में जो बिक्री अब हो रही है वह अगले तीन माह तक घट जाएगा। बाजार को थोड़ा सुधार होने के लिए अक्टूबर तक का इंतजार करना होगा।

काटन कपड़े के रेट में बढ़ोतरी

कपड़ा कारोबारी सुनील कुमार की दुकान खाली थी। मंदी को लेकर पूछने पर बोले कि ग्राहक घटे हैं। जब सामान बिका नहीं तो आर्डर कहां से दें। काटन के कपड़े का रेट भी 25 से 30 प्रतिशत बढ़ गए हैं। पुराना माल खपा रहे हैं। जब वह बिक जाए तो अगले का का आर्डर दे।

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