ट्रंप की वापसी 2025 में वैश्विक अर्थव्यवस्था को किस ओर ले जाएगी? जानकारों की राय से समझें

ट्रंप की वापसी 2025 में वैश्विक अर्थव्यवस्था को किस ओर ले जाएगी? जानकारों की राय से समझें
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डोनाल्ड ट्रंप दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए हैं। वे 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने वाले हैं। दूसरी बार, राष्ट्रपति बनने के बाद उनकी घोषणाएं क्या होंगी, इस बारे कुछ कहा नहीं जा सकता है। वे कहां पर कर बढ़ाएंगे या कौन से ऐसे देश होंगे जो उनके निशाने पर होंगे, इस पर कयास लगने शुरू हो गए हैं। वे युद्ध को लेकर कई फ्रंट खोलेगे या शांति को बढ़ावा देंगे। यह एक बड़ा सवाल है, जो दुनिया भर में आम लोगों, उद्योगपतियों और दिग्गजों के जहन में है।

ट्रंप की वापसी वैश्विक अर्थव्यवस्था को दे सकती है नया आकार

देश के उद्योगपति आदित्य बिड़ला समूह के अध्यक्ष कुमार मंगलम बिड़ला ने 'ट्रम्प फैक्टर' को एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में पहचानते हुए इसे 2025 में वैश्विक भू राजनीति और इकोनॉमी को नया आकार देने वाला कहा है। वहीं, बाजार के जानकारों का कहना है कि ट्रंप के आने की खबर से सबसे अधिक प्रभावित रुपया हुआ है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में अमेरिकी डॉलर में फिर से मजबूती होने से रुपया और कमजोर होने लगा है। हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के लिए भारत तैयार है, अपनी नीतियों पर काम कर रहा है।

एक आलेख में बिड़ला ने संयुक्त राज्य अमेरिका के स्थायी महत्व पर जोर देते हुए इसे भारत के बाहर का सबसे बड़ा बाजार बताया है। आदित्य बिड़ला समूह का अमेरिका में निवेश 15 बिलियन डॉलर से अधिक है, जिसमें विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करने के उद्देश्य से चल रहा 4 बिलियन डॉलर का ग्रीनफील्ड विस्तार भी शामिल है। उन्होंने अपने लेख में वॉरेन बफेट की टिप्पणी 'अमेरिका के खिलाफ कभी दांव मत लगाओ' का उदाहरण देते लिखा है कि पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप की वापसी को लेकर अनिश्चितताओं के बावजूद भी मुझे विश्वास है कि भारत-अमेरिका संबंध स्थाई रूप से आने वाले वर्षों में और गहरे होते जाएंगे। अमेरिकी अर्थव्यवस्था की गतिशीलता बेजोड़ है, और हमारे चल रहे निवेश इसके बढ़ते विनिर्माण क्षेत्र के पुनरुद्धार में योगदान देंगे।


बिड़ला ने वैश्विक विनिर्माण पुनरुत्थान पर भी प्रकाश डाला, उन्होंने कहा है कि इस कारण भारत को एक उभरते औद्योगिक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने में मदद मिली है। उन्होंने कहा, एपल के पारिस्थितिकी तंत्र का भारत में स्थानांतरण इस परिवर्तन का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि दुनिया के एक चौथाई आईफोन जल्द ही भारत में उत्पादित किए जा सकते हैं।

जानकारों की राय- रुपये पर असर थोड़े समय के लिए

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय रुपये पर ट्रंप की वापसी का असर महज थोड़े समय के लिए रह सकता है। रिपोर्ट कहती है कि इससे पहले भी देखा गया है, कि यदि कोई एतिहासिक घटना होती है, तो रुपये पर इसका असर थोड़े समय ही रहा है। उसी तरह ट्रंप की वापसी पर रुपये पर असर के लिहाज से एक अल्पकालिक घटना होगी और राष्ट्रपति बनने के शुरुआती दिनों में कुछ झटकों के बाद रुपये फिर से अपनी राह पर होगा।

वहीं ग्लोबल ट्रेड इनिशिएटिव ने अपने एक नोट में कहा है है कि कमजोर रुपया भारत का आयात बिल बढ़ा सकता है। इसकी वजह से कच्चे तेल, कोयला, इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, प्लास्टिक और केमिकल्स के साथ खाद्य तेल के लिए भारत को अधिक भुगतान देना होगा। आयात पर निर्भर उद्योगों इनपुट लागत कमजोर रुपये की वजह से बढ़ेगी।

निर्यात में भारत को हो सकता है फायदा

बाजार विशेषज्ञ मनीश शाह बताते हैं कमजोर रुपये से निर्यात करने वाले उद्योग को फायदा होगा। क्योंकि भारतीय वस्तुएं और सेवाएं वैश्विक बाजारों में और अधिक सस्ती हो जाएंगी और निर्यात करने के बदले डॉलर में भुगतान होगा। सरकार भी पिछले कुछ सालों से घरेलू बाजार में आयात कम करते हुए निर्यात को बढ़ावा दे रही है। हालांकि, भारतीय अधिकारी इस बात से चिंतित हैं कि रुपये में गिरावट का देश के आयात बिल पर क्या असर पड़ेगा, इससे आयातित मुद्रास्फीति में वृद्धि होने की आशंका है।

पीएल कैपिटल के एडवाइजर विक्रम कासट के अनुसार, ट्रंप की वापसी से स्टील जैसे भारतीय निर्यातों पर टैरिफ बढ़ने की संभावना है, लेकिन चीन प्लस नीति पर अमेरिका का ध्यान अधिक है। जहां अमेरिकी कंपनियां भारत की कंपनियों को शामिल करके आपूर्ति को पूरा कर सकती है, लेकिन यह तब संभव है जब ट्रंप चीन पर अधिक टैरिफ लगाएं। जानकारों के अनुसार अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसका सालाना व्यापार 190 अरब डॉलर से अधिक है। वित्त वर्ष 20 और वित्त वर्ष 24 के बीच, अमेरिका को भारत का व्यापारिक निर्यात 46 प्रतिशत बढ़कर 53.1 अरब डॉलर से 77.5 अरब डॉलर हो गया।b

अमेरिका से आयात भी 17.9 प्रतिशत बढ़कर 35.8 अरब डॉलर से 42.2 बिलियन डॉलर हो गया। अगर चीन और मैक्सिको जैसे देशों पर अधिक टैरिफ लगाया जाता है तो भारत के पास इलेक्ट्रिक, मशीनरी, फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में अपने निर्यात को बढ़ाने का खास मौका मिलेगा।

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