भीलवाड़ा बीकानेर मंडी पर टैरिफ की मार: वूलन उद्योग तबाही के कगार पर

अमेरिका के 50% टैरिफ ने राजस्थान की वूलन और यार्न इंडस्ट्री को घुटनों पर ला दिया है, और भीलवाड़ा मंडी इस संकट की सबसे बड़ी मारी है। 1200 करोड़ की इंडस्ट्री का आकार सिकुड़ रहा है, 150-200 करोड़ के ऑर्डर होल्ड पर हैं, और फैक्ट्रियां बंद होने की कगार पर खड़ी हैं। यह सिर्फ आर्थिक नुकसान नहीं, बल्कि सवा लाख मजदूरों और भेड़ पालकों की रोजी-रोटी पर छुरा है। केंद्र सरकार की चुप्पी और बेपरवाही इस संकट को और गहरा रही है। क्या सरकार को भीलवाड़ा के मजदूरों और कारोबारियों की सुध लेने का वक्त नहीं?
भीलवाड़ा मंडी: वूलन उद्योग का दिल, अब संकट में
भीलवाड़ा, बीकानेर और ब्यावर की मंडियां राजस्थान की वूलन और यार्न इंडस्ट्री की रीढ़ हैं। यहां से तैयार धागा उत्तर प्रदेश के भदोही तक जाता है, जहां से कालीन बनकर अमेरिका पहुंचता है। अमेरिका में भारतीय कालीन की 70% खपत होती है, जो वहां के घरों में फर्श और दीवारों की शोभा बढ़ाता है। लेकिन 27 अगस्त 2025 को लगाए गए 50% टैरिफ ने इस सप्लाई चेन को तहस-नहस कर दिया। भीलवाड़ा की फैक्ट्रियों में उत्पादन आधा हो गया है, और स्टॉक गोदामों में पड़ा सड़ रहा है। कारोबारी का दर्द छलकता है, "पिछले एक महीने से धागा बना रहे हैं, लेकिन निर्यात नहीं हो रहा। स्टॉक कितने दिन करेंगे? फैक्ट्रियां बंद करने की नौबत आ रही है।"
मजदूरों और भेड़ पालकों पर संकट
भीलवाड़ा की यूनिट्स में भेड़ के बालों से धागा बनता है, जो कालीन उद्योग का आधार है। इन यूनिट्स में काम करने वाले ज्यादातर मजदूर बिहार और अन्य राज्यों से आते हैं। टैरिफ की मार ने ऑर्डर 70% तक घटा दिए हैं, जिससे मजदूरों की रोजी-रोटी खतरे में है। राजस्थान वूलन इंडस्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष कमल कल्ला चेतावनी देते हैं, "अगर केंद्र सरकार ने वित्तीय सहायता नहीं दी, तो एक लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे। मजदूर एक बार चले गए, तो वापस नहीं आएंगे। फिर ऑर्डर आएं, तो भी काम कौन करेगा?" कारोबारी जय सेठिया कहते हैं, "हम मजदूरों को रोकने के लिए काम करवा रहे हैं, लेकिन बिना ऑर्डर के यह कितने दिन चलेगा?"
टैरिफ का असर: कीमतें बढ़ीं, मांग गिरी
अमेरिका में भारतीय कालीन की किफायती कीमत ही इसकी सबसे बड़ी ताकत थी। लेकिन 50% टैरिफ ने इसे इतना महंगा कर दिया कि अमेरिकी खरीदार अब वियतनाम और बांग्लादेश की ओर रुख कर रहे हैं। बृजमोहन चांडक कहते हैं, "अमेरिका में बड़े घरों में बड़े कालीन लगते हैं। हमारी कीमतें उनके लिए सस्ती थीं, लेकिन टैरिफ ने सब बिगाड़ दिया।" भीलवाड़ा में हर महीने 150-200 करोड़ का नुकसान हो रहा है, और अगर यही हाल रहा, तो एक साल में इंडस्ट्री 70% तक सिमट सकती है।
केंद्र सरकार से उम्मीदें, मगर निराशा
वूलन इंडस्ट्री एसोसिएशन ने केंद्र सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। कमल कल्ला कहते हैं, "1996 तक कालीन उद्योग को आयकर छूट थी। इसे फिर से लागू करें। कालीन पर 5% शुल्क को बढ़ाकर 15% करें, ताकि कारोबारियों को राहत मिले।" लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठा है। यह लापरवाही भीलवाड़ा के कारोबारियों और मजदूरों के लिए किसी सजा से कम नहीं।
भीलवाड़ा मंडी का वूलन उद्योग न केवल राजस्थान, बल्कि देश की आर्थिक सेहत के लिए अहम है। अगर केंद्र सरकार ने वित्तीय सहायता, टैक्स छूट, या टैरिफ वार्ता में तेजी नहीं दिखाई, तो यह उद्योग पूरी तरह तबाह हो सकता है। सवाल यह है कि क्या सरकार इस संकट को गंभीरता से लेगी, या भीलवाड़ा के मजदूर और कारोबारी अपनी रोजी-रोटी के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर होंगे?
