ट्रंप का H-1B वीजा पर धमाका: $1 लाख फीस से भारतीय आईटी टैलेंट का क्या बनेगा?

नई दिल्ली : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा प्रोग्राम पर बड़ा प्रहार किया है। शुक्रवार को साइन किए गए एक्जीक्यूटिव प्रोक्लेमेशन के तहत, अब हर नए H-1B वीजा एप्लीकेशन पर कंपनियों को सालाना $100,000 (करीब ₹88 लाख) फीस चुकानी पड़ेगी। यह बदलाव 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का हिस्सा है, जो विदेशी वर्कर्स को 'ट्रेनिंग' के बहाने अमेरिकी नौकरियों पर कब्जा करने से रोकेगा। लेकिन सबसे ज्यादा चोट भारत को लगेगी, जहां से 70% से ज्यादा H-1B वीजा अप्रूव होते हैं।
ट्रंप ने ओवल ऑफिस में कॉमर्स सेक्रेटरी हावर्ड लुटनिक के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "हम केवल महान वर्कर्स को चाहते हैं। अब बड़ी टेक कंपनियां विदेशी ट्रेनीज को नहीं लाएंगी – वे अमेरिकी यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट्स को ट्रेन करेंगी।" लुटनिक ने स्पष्ट किया कि फीस तीन साल के वीजा के लिए $100,000 प्रति साल होगी, या फिर $300,000 एकमुश्त – जो भी DHS (डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी) फाइनल करे। "यह आर्थिक रूप से संभव नहीं होगा। कंपनियां अब लोकल टैलेंट पर फोकस करेंगी," उन्होंने जोड़ा।
पुरानी फीस vs नई फीस: एक नजर
विशेषतापुरानी व्यवस्था (2025 तक)नई व्यवस्था (ट्रंप प्रोक्लेमेशन)रजिस्ट्रेशन फीस$215 (लॉटरी के लिए)$215 + $100,000 सालाना फीसफाइलिंग फीस (I-129)$780$780 + $100,000 (नए एप्लीकेशंस पर)कुल लागत (प्रति वीजा)$1,000-$5,000 (कंपनी वहन करती है)$100,000+ प्रति साल (ट्रेनिंग/ट्रांसफर पर)लक्ष्यहाई-स्किल्ड वर्कर्स के लिए लॉटरीकेवल 'सुपर-स्किल्ड' को, अमेरिकी जॉब्स प्रोटेक्ट
स्रोत: USCIS डेटा और ब्लूमबर्ग रिपोर्ट।
भारतीय आईटी सेक्टर पर तगड़ा झटका: शेयरों में 5% की गिरावट
भारत से हर साल 70,000 से ज्यादा H-1B वीजा अप्रूव होते हैं, खासकर आईटी, इंजीनियरिंग और हेल्थकेयर में। नास्डैक पर सूचीबद्ध भारतीय कंपनियों – इंफोसिस, विप्रो और कॉग्निजेंट – के शेयर शुक्रवार को 2-5% लुढ़क गए। अमेजन ने 2025 की पहली छमाही में 12,000+ H-1B अप्रूवल लिए थे, जबकि माइक्रोसॉफ्ट और मेटा को 5,000+ मिले – ज्यादातर भारतीय।
X (पूर्व ट्विटर) पर #H1BVisa ट्रेंड कर रहा है। एक यूजर @TakhatiyaFin ने लिखा, "ट्रंप की $100K फीस से इंफोसिस और TCS पर दबाव। बजट टाइट, लोकल टैलेंट की तलाश बढ़ेगी।" दूसरे यूजर @akkiii13 ने थ्रेड में कहा, "भारतीय आईटी मरा नहीं, लेकिन 72% अप्रूवल्स पर असर। अब ग्रीन कार्ड वेटिंग और लंबी हो जाएगी।" व्हाइट हाउस की रैपिड रिस्पॉन्स टीम ने पोस्ट किया, "अमेरिका फर्स्ट! H-1B पर $100K फीस से दुरुपयोग रुकेगा।"
व्हाइट हाउस स्टाफ सेक्रेटरी विल शार्फ ने कहा, "यह प्रोग्राम का सबसे ज्यादा दुरुपयोग हुआ है। अब केवल वाकई योग्य लोग आएंगे।" लेकिन क्रिटिक्स का कहना है कि इससे इनोवेशन रुकेगा। इंडियन एम्बेसी ने अभी कोई कमेंट नहीं दिया, लेकिन इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स चेतावनी दे रहे हैं कि छोटी कंपनियां विदेशी टैलेंट को ही छोड़ देंगी।
आगे क्या? गोल्ड कार्ड का विकल्प?
ट्रंप ने इसी प्रोक्लेमेशन में $1 मिलियन 'ट्रंप गोल्ड कार्ड' को भी पुश किया, जो अमीर इन्वेस्टर्स को फास्ट-ट्रैक रेसिडेंसी देगा। लेकिन H-1B के लिए, कंपनियां अब लोकल हायरिंग पर शिफ्ट करेंगी। NASSCOM के अनुसार, भारत से 4 लाख+ प्रोफेशनल्स प्रभावित हो सकते हैं – कई को ग्रीन कार्ड वेटिंग में रहना पड़ेगा।
ट्रंप का यह फैसला 'गोल्डन वीजा' और H-1B ओवरहॉल का हिस्सा है, जो $100 बिलियन राजस्व लाएगा – टैक्स कट और डेब्ट पेमेंट के लिए। लेकिन भारतीय आईटी ड्रीमर्स के लिए, अमेरिका अब 'महंगा सपना' बन गया है। क्या कंपनियां फीस वहन करेंगी या भारत लौटना पड़ेगा? अपडेट्स के लिए बने रहें!
