डिजिटल तकनीक बदल रहा अपराध का चेहरा: सोशल मीडिया पर अश्लील तस्वीरों का प्रसारण किसी की पूरी जिंदगी को बना सकता है नर्क, आरोपी राहत का हकदार नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि डिजिटल तकनीक अपराध का चेहरा बदल रही है। यह नए तरह का सामाजिक हमला है। यह न सिर्फ किसी व्यक्ति की गरिमा को रौंदता है, बल्कि पूरे समाज की नैतिकता को झकझोरता है। लिहाजा, सोशल मीडिया पर किसी महिला की अश्लील तस्वीर वायरल करने का आरोपी राहत का हकदार नहीं है।
इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति अजय भनोट की अदालत ने प्रयागराज निवासी याची की जमानत अर्जी खारिज कर दी। साथ ही ट्रायल कोर्ट को एक साल में मुकदमे की सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया है। मामला उतरांव थाना क्षेत्र का है। याची पर एक गांव की एक महिला की आपत्तिजनक तस्वीर सोशल मीडिया पर प्रसारित करने का आरोप है।
याची नौ जनवरी, 2025 से जेल में है। पुलिस ने उसके मोबाइल से कुछ तस्वीरें बरामद कर एफएसएल जांच के लिए भेजी हैं, जिसकी रिपोर्ट अभी लंबित है। कोर्ट ने याची की जमानत अर्जी खारिज कर कहा कि सोशल मीडिया पर अश्लील तस्वीरों का प्रसारण किसी की पूरी जिंदगी को नर्क बना सकता है। इसलिए याची जमानत पाने का हकदार नहीं है।
एक वर्ष के भीतर मुकदमे की सुनवाई पूरी करे
कोर्ट ने परीक्षण न्यायालय को निर्देशित किया कि वह एक वर्ष के भीतर मुकदमे की सुनवाई पूरी करे और एफएसएल रिपोर्ट दो माह में दाखिल की जाए। साथ ही गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाने का भी आदेश दिया गया है।
कोर्ट ने यह व्यवस्था भी दी कि यदि भविष्य में किसी आरोपी को जमानत मिलती है और वह ट्रायल में सहयोग नहीं करता या जानबूझकर देरी करता है तो ट्रायल कोर्ट को यह अधिकार होगा कि वह हाईकोर्ट की अनुमति के बिना ही उसकी जमानत रद्द कर सके।