बहुमत से क्यों चूकी भाजपाः आत्ममंथन करेगा ‘संघ परिवार’

बहुमत से क्यों चूकी भाजपाः आत्ममंथन करेगा ‘संघ परिवार’
X

नई द‍िल्ली। लोकसभा चुनाव में भाजपा के बहुमत से चूक जाने और संघ प्रमुख मोहन भागवत के कुछ बयानों और ऑर्गनाइजर में छपे लेख में पार्टी की कार्यप्रणाली की आलोचना के बाद राजनीतिक गलियारे में घमासान मच गया है। इस बीच, संघ परिवार नतीजों को लेकर बड़ा आत्ममंथन करने जा रहा है। भाजपा सहित 36 सहयोगी संगठनों के शीर्ष पदाधिकारियों के बीच 31 जुलाई से 3 सितंबर के बीच केरल के पलक्कड़ में होने जा रही राष्ट्रीय समन्वय बैठक में नतीजों की समीक्षा होगी। इस बैठक में भाजपा के अध्यक्ष, संगठन महामंत्री प्रमुख रूप से मौजूद रहेंगे। बैठक में संघ परिवार से जुड़े संगठनों के बीच समन्वय या अन्य स्तर पर सामने आईं शिकवा-शिकायतें भी दूर होंगी। सभी संगठनों के फीडबैक से सबक लेते हुए भाजपा को आगे की रणनीति पर कार्य करने का सुझाव जारी होगा।

नड्डा ने क्या कहाः चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक इंटरव्यू में कह दिया कि ‘आज भाजपा खुद सक्षम है और उसे संघ की जरूरत नहीं है।’

अर्थ निकालाः निचले स्तर पर तो उचित संदेश नहीं गया। माना गया कि कुछ सब कुछ ठीक नहीं है।

सफाईः भाजपा का कहना है कि नड्डा की बातों को सही संदर्भ में नहीं समझा गया।

मोहन भागवतः जिसमें अहंकार नहीं होता, वो ही सेवक कहलाने का अधिकारी होता है।

अर्थ निकलाः नतीजों से नाराज संघ प्रमुख ने भाजपा को संकेतों में सीख दी है कि नेताओं में

सत्ता का अहंकार नहीं आना चाहिए

सफाईः भागवत ने किसी व्यक्ति, सरकार या दल विशेष के लिए नहीं कही। सेवक शब्द का इस्तेमाल स्वयंसेवकों के लिए किया। तीन मिनट के संक्षिप्त वीडियो नहीं पूरे बयान को सुनने की जरूरत है। संघ प्रमुख जब बोलते हैं तो वे समाज के सभी हितधारकों के लिए बोलते हैं।

मोहन भागवतः एक साल से मणिपुर शांति की राह देख रहा है। इससे पहले 10 साल शांत रहा। अचानक जो कलह वहां पर उपजा या उपजाया गया, उसकी आग में अभी तक जल रहा है।

इस पर कौन ध्यान देगा?

निकला अर्थ- माना गया है कि मणिपुर में शांति लाने के सरकारी प्रयासों से संघ संतुष्ट नहीं है। संघ को लगता है कि जितना ध्यान देना चाहिए था, उतना नहीं दिया गया।

संघ की सफाईः मणिपुर में शांति लाने की जिम्मेदारी पक्ष-विपक्ष, समाज सबकी है। संघ प्रमुख का बयान समाज की पीड़ा दिखाता है न कि किसी पर दोषारोपण।

Next Story