सुप्रीम कोर्ट की गोवा के मुख्य सचिव को फटकार, हाईकोर्ट के नियम अवैध तरीके से बदलने का मामला
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को गोवा के मुख्य सचिव को कड़ी फटकार लगाई, जब उन्होंने राज्य सरकार के उस फैसले का बचाव किया, जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट की ओर से जारी नियमों में अवैध तरीके से बदला गया था। यह बदलाव हाईकोर्ट की गोवा पीठ के कर्मचारियों की सेवा-शर्तों से जुड़ा था। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने उनसे अगली सुनवाई में निजी रूप से डिजिटल तरीके से पेश होने को कहा और उनके आचरण पर स्पष्टीकरण मांगा।
'नियमों में बदलाव को तुरंत वापस ले गोवा सरकार'
शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इस मामले में मुख्य सचिव का व्यवहार गलत है और यह बहुत गंभीर है। कोर्ट ने यह भी कहा कि गोवा सरकार द्वारा किए गए बदलाव को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए, क्योंकि यह न्यायिक प्रक्रिया के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा, क्या उन्हें सबक सिखाने की जरूरत है? यह एक बेशर्मी भरा कृत्य है। वह उन नियमों का इतने आत्मविश्वास के साथ बचाव कर रहे हैं, जिन्हें वापस लिया जाना चाहिए। हमें यह जानकर हैरानी हुई कि वह उनका (बदले गए नियमों) बचाव कर रहे हैं।
'हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से सलाह-मशविरा भी नहीं लिया'
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आपत्ति जताई कि बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से इस मामले पर कई सलाह-मशविरा नहीं किया गया, जबकि बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा पीठ के कर्मचारियों और अधिकारियों की भर्ती और सेवा शर्तों के लिए नए नियम 2023 में प्रकाशित किए गए थे। बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व कर्मचारियों ने यह शिकायत की थी कि उनकी सेवानिवृत्ति के वर्षों बाद भी उन्हें उनकी पेंशन जैसे बकाया लाभ नहीं दिए गए। इसके बाद शीर्ष कोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया।
'चीफ जस्टिस के नाम पर क्यों प्रकाशित किए नियम'
गोवा सरकार के वकील अभय अनिल अंतुरकर ने समय मांगते हुए कहा कि वह इसके लिए विशेष निर्देश हासिल करेंगे, लेकिन कोर्ट ने कहा कि अब मुख्य सचिव यह स्पष्ट करेंगे कि नियमों को क्यों वापस नहीं लिया गया और इन्हें चीफ जस्टिस के नाम पर क्यों प्रकाशित किया गया।सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी राज्य सरकार की ओर से पक्ष रखा और कहा कि वह इन नियमों या कार्रवाई का बचाव नहीं कर रहे हैं, बल्कि गलती को सुधारने के लिए समय चाहते हैं।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कृत्य बेशर्मी भरा था और यह बदलाव चीफ जस्टिस के नाम पर प्रकाशित किए गए थे, जबकि ये नियम चीफ जस्टिस की अनुमति के बिना और बिना किसी सलाह-मशविरा के प्रकाशित किए गए थे। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में 24 जुलाई को दिए गए आदेश के बाद उम्मीद की जा रही थी कि गोवा सरकार अपनी गलती को सुधार लेगी, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से कानून का उल्लंघन था।