लोकसभा चुनाव की बढ़त गंवाई...महाराष्ट्र में सफाया, झारखंड में भी संतोषजनक प्रदर्शन नहीं

लोकसभा चुनाव की बढ़त गंवाई...महाराष्ट्र में सफाया, झारखंड में भी संतोषजनक प्रदर्शन नहीं
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कांग्रेस फिर सियासी अंधेरे में नजर आ रही है। लोकसभा चुनाव में जो बढ़त हासिल की थी, महाराष्ट्र व झारखंड चुनाव में उसने गंवा दिया। महाराष्ट्र में पार्टी का लगभग सफाया ही हो गया। वहीं, झारखंड में भी उसका प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा। लोकसभा चुनाव में भले ही उसकी सीटों का आंकड़ा तीन अंकों में नहीं पहुंचा था, लेकिन प्रदर्शन बहुत बेहतर था। इससे कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी का उत्साह बढ़ना स्वाभाविक ही था, मगर यही उत्साह शायद कांग्रेस के खिलाफ चला गया।

कांग्रेस के सभी मुद्दे को जनता ने किया खारिज

कांग्रेस संविधान और जातिगणना पर लोकसभा चुनाव जैसा ही नारा लेकर महाराष्ट्र में उतरी थी। राहुल ने पूरी ताकत के साथ इस नारे को चलाया, मगर नतीजों के बाद ये मुद्दे सवालों के घेरे में हैं। इससे खुद राहुल की रणनीति पर भी सवाल उठना लाजिमी है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में बीते लोकसभा चुनाव में 99 सीटें जीतने वाली कांग्रेस की चुनावी राह फिर पथरीली नजर आने लगी है, पार्टी में उथल-पुथल मच गया है। एक महीने पहले उसे हरियाणा में हार मिली और जम्मू-कश्मीर में भी वह हाशिये पर चली गई। महाराष्ट्र और झारखंड में भी वह संकट में आ गई है।

उद्धव की शिवसेना से भी पिछड़ी

महाविकास आघाड़ी (एमवीए) के तहत कांग्रेस 101, एनसीपी (शरद पवार) 86 और शिवसेना (यूबीटी) 95 सीटों पर लड़ी थी। कांग्रेस से उम्मीद थी कि वह गठबंधन के साथियों को साथ लेकर आगे बढ़ेगी। पर सहयोगी दलों का नेतृत्व तो दूर, वह शिवसेना से पिछड़ती नजर आ रही है। झारखंड ने जरूर इंडिया गठबंधन की लाज रख ली है, हालांकि, वहां भी इसका श्रेय झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) को जाता है।

हताश कांग्रेस नेताओं का तर्क

लोगों में जो गुस्सा था वह लोकसभा चुनाव में निकल गया। जिसको लेकर हताश कांग्रेस नेताओं ने कहा कि शायद लोकसभा चुनाव ने लोगों को गुस्से को कम कर दिया और वह फिर एनडीए के साथ चले गए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के मुताबिक, भाजपा ने पानी की तरह पैसा बहाया। हम अनुमान लगाने में विफल रहे कि यह एक लहर वाला चुनाव होने जा रहा है। हमने इसकी कल्पना भी नहीं की थी। निश्चित रूप से इसके कई कारण हो सकते हैं। हमारी सीटाें का समायोजन सही नहीं था। गठबंधन के सभी प्रमुख नेता मुख्यमंत्री पद पर दावा कर रहे थे। वहीं, सत्तारूढ़ गठबंधन के लाडकी बहिन योजना का भी बहुत बड़ा असर होता दिख रहा है।

मिजाज नहीं पकड़ पाई कांग्रेस

कांग्रेस विधानसभा चुनाव के मिजाज को नहीं पकड़ पाई। उसने उन्हीं मुद्दों और नारों को जोरशोर से उठाया, जिससे लोकसभा चुनाव में उसकी सीटें बढ़ गईं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और एमवीए ने संविधान और जाति गणना को लेकर आक्रामक प्रचार किया था।

जनता के मिजाज में बदलाव

कांग्रेस कहती रही कि भाजपा 400 सीटों के साथ केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह संविधान को बदल देगी, आरक्षण को भी खत्म कर सकती है। उसने जातिगणना की भी वकालत की और 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को भी तोड़ने की बात कही। मगर, विधानसभा चुनाव में यह नहीं चला।

विदर्भ ने कांग्रेस को किया नाउम्मीद

राजनीतिक नजरिये से पार्टियों का भाग्य तय करने वाले विदर्भ इलाके ने भी कांग्रेस को निराश किया है। 11 जिलों में फैले विदर्भ में विधानसभा की 62 सीटें हैं। पिछले चुनाव में भाजपा को 29, कांग्रेस को 15, शरद पवार की एनसीपी को 6 और उद्धव वाली शिवसेना को 4 सीटें मिली थीं। इस बार भाजपा की सीटें बढ़कर 34 हो गई हैं। वहीं, कांग्रेस की सीटें घटकर 11, शरद पवार की एनसीपी की 1 रह गई हैं। उद्धव सेना अपनी चार सीटें बनाए रखने में सफल रही, शिंदे सेना को 5 सीटें मिली हैं।

परिणाम अप्रत्याशित...करेंगे विश्लेषण

महाराष्ट्र के नतीजे के बाद राहुल गांधी ने ट्वीट किया, नतीजे अप्रत्याशित हैं और इनका हम विश्लेषण कर रहे हैं। हरियाणा में हार के बाद भी राहुल ने ऐसा ही ट्वीट किया था, मगर विश्लेषण में क्या निकला, यह अभी तक सामने नहीं आया। कांग्रेस को महाराष्ट्र में जीत मिलती तो यह ऑक्सीजन की तरह होती, क्योंकि हरियाणा में हार से वह घोर निराशा में डूब गई थी। महाराष्ट्र में हार से अब कांग्रेस का संकट खत्म होने के बजाय और गहरा गया है।

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