मानवाधिकार आयोग में अध्यक्ष-सदस्यों की नियुक्ति पर विवाद क्यों, क्या है प्रक्रिया; विपक्ष का क्या सवाल?

मानवाधिकार आयोग में अध्यक्ष-सदस्यों की नियुक्ति पर विवाद क्यों, क्या है प्रक्रिया; विपक्ष का क्या सवाल?
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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) का नया अध्यक्ष नियुक्त किए जाने को लेकर विवाद शुरू हो गया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एनएचआरसी के अध्यक्ष और इसके सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाए हैं। दोनों ने एनएचआरसी में हुई इन नियुक्तियों की प्रक्रिया को ही मौलिक रूप से गलत और 'पहले से तय अभ्यास' करार दिया। कांग्रेस की तरफ से एनएचआरसी अध्यक्ष और इसके सदस्यों की नियुक्ति को लेकर उठाए गए सवालों के बाद देश में सियासी सरगर्मी बढ़ना तय माना जा रहा है।


एनएचआरसी में हुई नियुक्तियों पर विपक्ष की तरफ से सवाल उठाए जाने के बाद यह जानना अहम हो गया है कि आखिर इस आयोग में नियुक्ति होती कैसे है? विपक्ष ने इस मुद्दे पर क्या सवाल उठाए हैं? जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम के अलावा एनएचआरसी के अध्यक्ष के लिए किस और नाम पर चर्चा हुई? आइये जानते हैं...

गौरतलब है कि इस साल जून में ही रिटायर्ड जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा का कार्यकाल पूरा होने के बाद से एनएचआरसी का अध्यक्ष पद खाली था। बताया गया है कि 18 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगवुाई वाली एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने एनएचआरसी के अगले अध्यक्ष को चुनने के लिए बैठक की थी। इसी में जस्टिस रामसुब्रमण्यम के नाम पर चर्चा हुई थी।

एनएचआरसी ने सोमवार को एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि भारत की माननीय राष्ट्रपति ने न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम (सेवानिवृत्त) को अध्यक्ष और प्रियंक कानूनगो और डॉ. न्यायमूर्ति बिद्युत रंजन सारंगी (सेवानिवृत्त) को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का सदस्य नियुक्त किया है।’’ गौरतलब है कि कानूनगो इससे पहले राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष रह चुके हैं।

कौन करता है एनएचआरसी अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति?

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन एक अध्यक्ष, चार पूर्ण कालिक सदस्यों और सात मानद सदस्यों से होता है। आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के लिए संविधान में उच्च योग्यता निर्धारित की गई है। इसमें नियुक्तियां प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति करती है। इसमें

- प्रधानमंत्री।

- लोकसभा अध्यक्ष।

- राज्यसभा के उप-सभापति।

- संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के मुख्य विपक्षी नेता और

- केंद्रीय गृहमंत्री शामिल होते हैं।

इस समिति की सिफारिशों के आधार पर ही राष्ट्रपति मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष-सदस्यों की नियुक्ति करती हैं।

एनएचआरसी के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के क्या हैं नियम?

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष पद पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के अन्य जस्टिस भी नियुक्त किए जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अरुण मिश्रा 2019 में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम में संशोधन के बाद एनएचआरसी प्रमुख पद पर नियुक्त होने वाले पहले गैर-सीजेआई रहे। उन्होंने भारत के पूर्व चीफ जस्टिस एचएल दत्तू का स्थान लिया था। मिश्रा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद 2 जून से एनएचआरसी सदस्य विजया भारती सयानी इसकी कार्यवाहक अध्यक्ष बन गई थीं।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष या 70 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) तक निर्धारित है। इसके अतिरिक्त ये फिर से नियुक्त किए जाने के भी पात्र हो सकते हैं।

आयोग में एक सदस्य सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत या रिटायर्ड जस्टिस, एक सदस्य हाईकोर्ट का कार्यरत या रिटायर्ड चीफ जस्टिस होना चाहिए।

आयोग में तीन अन्य लोगों को मानवाधिकारों से संबंधित जानकारी अथवा कार्यानुभव होना चाहिये। इसमें कम-से-कम एक महिला सदस्य का होना आवश्यक है।

इन पूर्णकालिक सदस्यों के अतिरिक्त आयोग में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC), राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST), राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW), राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC), राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष तथा दिव्यांग व्यक्तियों के कार्यालय के मुख्य आयुक्त को भी एनएचआरसी का सदस्य नियुक्त किया गया है।

नई नियुक्तियों पर विपक्ष के क्या सवाल?

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एनएचआरसी के अध्यक्ष और सदस्यों के चयन को लेकर इस आधार पर अपनी असहमति दर्ज कराई है। उन्होंने चयन के लिए अपनाई गई प्रक्रिया को मौलिक रूप से गलत और पूर्व-निर्धारित बताया। दोनों ने इसे लेकर एक डिसेंट नोट छोड़ा है, जिसके तहत कहा गया है कि नियुक्ति में आपसी परामर्श और आम सहमति की अनदेखी की गई।

नियुक्ति को लेकर विपक्ष की क्या मांग थी?

1. अध्यक्ष पद के लिए

विपक्ष की तरफ से एनएचआरसी के अध्यक्ष पद के लिए दोनों सदनों के नेताओं ने जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन और जस्टिस कुट्टीयिल मैथ्यू जोसेफ के नाम प्रस्तावित किए थे। उन्होंने कहा, ‘‘हमने योग्यता और समावेश की जरूरत को ध्यान में रखते हुए अध्यक्ष पद के लिए जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन और जस्टिस कुट्टीयिल मैथ्यू जोसेफ के नाम प्रस्तावित किए थे।’’

उन्होंने कहा है, ‘‘अल्पसंख्यक पारसी समुदाय के प्रतिष्ठित न्यायविद जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन अपने बौद्धिक ज्ञान और संवैधानिक मूल्यों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके शामिल होने से भारत के बहुलवादी समाज का प्रतिनिधित्व करने के लिए एनएचआरसी की प्रतिबद्धता के बारे में एक मजबूत संदेश जाता।’’

खरगे और गांधी ने कहा कि इसी तरह अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस जोसेफ ने लगातार ऐसे फैसले दिए हैं, जिनमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता और हाशिए पर पड़े समूहों की सुरक्षा पर जोर दिया गया है। दोनों ने कहा कि वह इस महत्वपूर्ण पद के लिए आदर्श उम्मीदवार होते।

2. सदस्यों के लिए

उन्होंने कहा, ‘‘इसके अलावा, सदस्यों के पद के लिए हमने जस्टिस एस. मुरलीधर और जस्टिस अकील अब्दुल हमीद कुरैशी के नामों की सिफारिश की। इन दोनों का मानवाधिकारों को कायम रखने में बेहतरीन रिकॉर्ड है।’’

दोनों नेताओं ने कहा कि जस्टिस मुरलीधर को सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने वाले उनके ऐतिहासिक निर्णयों के लिए व्यापक रूप से सम्मान प्राप्त है, जिसमें हिरासत में हिंसा और नागरिक स्वतंत्रता की सुरक्षा पर उनका काम भी शामिल है और मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित जस्टिस कुरैशी ने लगातार संवैधानिक सिद्धांतों की रक्षा की है और शासन में जवाबदेही के लिए मजबूत प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया है।

कांग्रेस नेताओं ने असहमति पत्र में क्या कहा?

उनके असहमति पत्र में कहा गया, ‘‘यह एक पूर्व-निर्धारित कोशिश थी। इसमें आपसी परामर्श और आम सहमति की स्थापित परंपरा को नजरअंदाज किया गया, जो ऐसे मामलों में आवश्यक है। यह रवैया निष्पक्षता के सिद्धांतों को कमजोर करता है, जो चयन समिति की विश्वसनीयता के लिए महत्वपूर्ण हैं।’’

खरगे और गांधी ने कहा कि विचार-विमर्श को बढ़ावा देने और सामूहिक निर्णय सुनिश्चित करने के बजाय, समिति ने नामों को अंतिम रूप देने के लिए संख्या की दृष्टि से बहुमत पर भरोसा किया और बैठक के दौरान उठाई गई वैध चिंताओं और दृष्टिकोणों की अनदेखी की।

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