दिल्ली हाई कोर्ट: सहमति से बने रिश्ते को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता, मामला रद

दिल्ली हाई कोर्ट: सहमति से बने रिश्ते को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता, मामला रद
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नई दिल्ली, : दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने संबंध, भले ही एक पक्ष शादीशुदा हो, को बाद में दुष्कर्म जैसे अपराध में नहीं बदला जा सकता। न्यायमूर्ति स्वर्णा कांता शर्मा ने यह टिप्पणी एक पायलट के खिलाफ दर्ज दुष्कर्म मामले को रद करते हुए की, जिसमें शिकायत एक केबिन क्रू सदस्य ने दर्ज की थी।

मामले का विवरण




शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि पायलट ने शादी का झांसा देकर उसे अगस्त 2018, अप्रैल 2019 और जून 2020 में तीन बार गर्भपात के लिए मजबूर किया। उसने मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न, धमकी और ब्लैकमेल का भी आरोप लगाया।

दूसरी ओर, पायलट का कहना था कि उनका रिश्ता पूरी तरह सहमति पर आधारित था, शादी का कोई वादा नहीं किया गया था, और उसने अपनी शादीशुदा स्थिति को कभी छुपाया नहीं।

कोर्ट का निर्णय

कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता को शुरू से ही पायलट की शादीशुदा स्थिति की जानकारी थी, फिर भी उसने दो साल तक संबंध जारी रखा। कोर्ट ने कहा कि एक शिक्षित महिला को यह समझना चाहिए कि सहमति से बने रिश्ते हमेशा विवाह में परिवर्तित नहीं होते और कभी-कभी टूट भी सकते हैं।

न्यायमूर्ति शर्मा ने स्पष्ट किया कि रिश्ता खत्म होने पर उसे दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराध में बदलना उचित नहीं है। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि निजी मनमुटाव को हल करने के लिए कानून का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

इस फैसले के साथ, दिल्ली हाई कोर्ट ने पायलट के खिलाफ दर्ज दुष्कर्म मामले को रद कर दिया, यह रेखांकित करते हुए कि सहमति से बने संबंधों के परिणामों की जिम्मेदारी दोनों पक्षों को लेनी होगी।

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