शक्की पति ने बनाया जिंदगी को नर्क, केरल हाईकोर्ट ने कहा — ‘यह मानसिक क्रूरता है’

भारत में तलाक के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। अब केरल हाईकोर्ट के एक फैसले ने वैवाहिक रिश्तों में विश्वास और स्वतंत्रता को लेकर नई बहस छेड़ दी है। अदालत ने कहा है कि —
अगर पति अपनी पत्नी पर लगातार शक करता है, उसकी आजादी में हस्तक्षेप करता है या उसकी गतिविधियों पर नजर रखता है, तो यह मानसिक क्रूरता (Mental Cruelty) के दायरे में आता है।
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क्या था मामला
कोट्टायम जिले की एक महिला ने अपने पति के खिलाफ तलाक की अर्जी दी थी। महिला ने बताया कि 2013 में शादी के बाद से ही पति उस पर शक करता था।
किसी पुरुष से बात करने पर मारपीट करता,
नर्सिंग की नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया,
विदेश में रहते हुए उसे कमरे में बंद करता और फोन पर बात करने से रोकता था।
महिला ने कहा, पति का व्यवहार उसकी स्वतंत्रता और मानसिक शांति पर हमला था।
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फैमिली कोर्ट का फैसला पलटा
पहले फैमिली कोर्ट ने महिला की अर्जी खारिज कर दी थी। लेकिन केरल हाईकोर्ट ने यह कहते हुए फैसला पलट दिया कि —
“एक शक्की पति शादीशुदा जिंदगी को नर्क बना सकता है।”
न्यायालय ने कहा, विवाह भरोसे पर टिका होता है और जब विश्वास की जगह शक ले लेता है, तो रिश्ता टिक नहीं सकता।
लगातार शक करना, स्वतंत्रता में दखल देना और पत्नी की ईमानदारी पर सवाल उठाना मानसिक उत्पीड़न के समान है।
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क्या कहता है कानून
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में तलाक अधिनियम 1869 की धारा 10(1)(x) का हवाला दिया। इस धारा के अनुसार,
अगर पति का व्यवहार मानसिक क्रूरता के अंतर्गत आता है, तो पत्नी को तलाक का अधिकार है।
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न्यायालय का संदेश
अदालत ने कहा —
“शक से भरा रिश्ता, प्रेम से खाली विवाह है। ऐसे विवाह का अंत होना ही न्यायसंगत है।”
