किसानों की आय बढ़ाने के लिए नया राष्ट्रव्यापी अध्ययन

नई दिल्ली। भारत ने बीते वर्षों में कृषि उत्पादन के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। कई कृषि उत्पादों के उत्पादन में देश दुनिया में पहले तीन स्थानों में शामिल है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी पिछले नौ वर्षों में लगातार बढ़ा है और इसमें 6.55 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इसके बावजूद कटाई के बाद फसल और उपज के नुकसान यानी पोस्ट हार्वेस्ट लॉस को लेकर गंभीर चुनौतियां बरकरार हैं।
सरकार का मानना है कि किसानों की आय बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने के लिए इन नुकसानों को कम करना अत्यंत आवश्यक है। इसी उद्देश्य से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय पूरे देश में एक व्यापक अध्ययन कराने जा रहा है, जिसमें राज्य और जिले स्तर तक विस्तृत आंकड़े जुटाए जाएंगे।
कटाई के बाद नुकसान अब भी सबसे बड़ी समस्या
कृषि उत्पादन में वृद्धि के बावजूद भारत में कटाई के बाद होने वाला नुकसान लगातार चिंता का कारण है। फसल का बड़ा हिस्सा कटाई, भंडारण, परिवहन, प्रसंस्करण और वितरण की कमजोर व्यवस्थाओं के चलते नष्ट हो जाता है। इससे न केवल किसानों की आय पर असर पड़ता है, बल्कि खाद्यान्न की उपलब्धता घटती है और निर्यात प्रतिस्पर्धा भी प्रभावित होती है।
सरकार का जोर है कि कटाई के बाद प्रबंधन को मजबूत करके ही इस नुकसान को कम किया जा सकता है। इसी दिशा में खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय नई रणनीति की तैयारी कर रहा है।
किसानों की आय बढ़ाने के लिए नया राष्ट्रव्यापी अध्ययन
मंत्रालय इससे पहले 2005-07, 2012-14 और 2020-22 में राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे अध्ययन करा चुका है। तकनीक और नीतियों में हुए बदलावों को ध्यान में रखते हुए अब चौथा व्यापक अध्ययन कराने का निर्णय लिया गया है। इसके लिए इच्छुक संस्थाओं से निविदाएं आमंत्रित की गई हैं।
अध्ययन में कटाई से लेकर पैकेजिंग तक सप्लाई चेन के सभी चरणों में नुकसान का विश्लेषण किया जाएगा। राष्ट्रीय, राज्य, जिला और कृषि जलवायु क्षेत्रवार आंकड़ों का मूल्यांकन होगा। प्रत्येक फसल के लिए नुकसान के कारणों की पहचान की जाएगी और उन्हें कम करने के समाधान सुझाए जाएंगे।सप्लाई चेन में जहां सबसे अधिक नुकसान होता है, उन प्रमुख बिंदुओं की विस्तृत जांच भी की जाएगी। साथ ही, अन्य देशों की नीतियों और प्रबंधन प्रणालियों की तुलना कर भारत के मॉडल का मूल्यांकन किया जाएगा।अध्ययन के बाद विशेषज्ञ सरकार को एक रोडमैप देंगे, जिसके आधार पर भविष्य की योजनाओं को आकार दिया जाएगा। निविदा स्वीकृत होने के बाद इस अध्ययन को पूरा करने के लिए 18 माह की समयसीमा निर्धारित है।
