तंबाकू और सिगरेट होंगे और महंगे: केंद्र सरकार ला रही नया टैक्स कानून, मशीनों पर भी लगेगा सेस

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केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य के लिए हानिकारक समझे जाने वाले सिगरेट, पान मसाला और तंबाकू उत्पादों पर टैक्स का बोझ बढ़ाने की तैयारी शुरू कर दी है। वर्तमान क्षतिपूर्ति सेस की अवधि मार्च दो हजार पच्चीस में समाप्त हो रही है, इसलिए सरकार इसकी जगह दो नए कानून ला रही है—सेंट्रल एक्साइज संशोधन दो हजार पच्चीस और स्वास्थ्य सुरक्षा से राष्ट्रीय सुरक्षा सेस। सोमवार को दोनों बिल संसद में पेश कर दिए गए।
वर्तमान में इन उत्पादों पर अट्ठाईस प्रतिशत जीएसटी के साथ क्षतिपूर्ति सेस भी लगाया जा रहा है। लेकिन अगले साल मार्च के बाद क्षतिपूर्ति सेस कानूनी रूप से समाप्त हो जाएगा, जिससे सरकार के राजस्व में कमी आएगी। इसी कमी की पूर्ति के लिए नए टैक्स सिस्टम का ढांचा तैयार किया गया है।
नए कानून के तहत सिगरेट, पान मसाला और तंबाकू उत्पादों के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाली मशीनों और उपकरणों पर सेस लगाया जाएगा। मशीन चाहे सौ यूनिट क्षमता वाली हो और उत्पादन पचास यूनिट ही क्यों न हो, सेस सौ यूनिट पर ही लगेगा। इससे टैक्स वसूली और सख्त एवं व्यवस्थित हो जाएगी।
सिगरेट पर टैक्स बढ़ाने के भी प्रस्ताव शामिल हैं। पुराने कानून में सिगार पर बारह प्रतिशत या प्रति हजार पीस पर चार हजार छह रुपए टैक्स लगता था, जिसे अब बढ़ाकर पच्चीस प्रतिशत या पांच हजार रुपए किया जा सकता है। इसी तरह सिगरेट के विभिन्न साइज पर टैक्स में भारी बढ़ोतरी का प्रस्ताव है। जैसे कि पैंसठ एमएम सिगरेट पर अभी प्रति हजार पीस चार सौ चालीस रुपए टैक्स लगता है, जो बढ़कर तीन हजार रुपए हो सकता है। सत्तर एमएम से बड़ी सिगरेट पर टैक्स सात हजार रुपए प्रति हजार पीस तक करने का प्रस्ताव है।
सरकार का तर्क है कि क्षतिपूर्ति सेस समाप्त होने के बाद इन उत्पादों पर कुल टैक्स कम हो जाएगा, जिससे इनकी खपत बढ़ सकती है। इसलिए टैक्स ढांचा संशोधित कर इन्हें महंगा रखा जाएगा ताकि उपभोग कम हो और सरकार का राजस्व भी सुरक्षित रहे। सितंबर में जीएसटी दरों में बदलाव के बाद चालीस प्रतिशत का नया स्लैब बनाया गया है, पर तंबाकू और पान मसाला अभी भी अट्ठाईस प्रतिशत वर्ग में हैं। इन्हें चालीस प्रतिशत स्लैब में कब जोड़ा जाएगा, इस पर निर्णय जीएसटी काउंसिल की अध्यक्ष वित्त मंत्री लेंगी।
एक्साइज ड्यूटी बढ़ने से राज्यों को भी फायदा होगा, क्योंकि केंद्र के हिस्से के इस राजस्व में राज्यों का भी हिस्सा शामिल होता है।
