5th जेन फाइटर जेट: भारत की बड़ी छलांग, DRDO ने तोड़ दिया अमेरिका का गुरूर, चीन-रूस भी हैरान!

यह बात सभी को पता है कि भारत लड़ाकू विमानों की कमी से जूझ रहा है. उसके पास मौजूदा समय में स्क्वाड्रन की संख्या 42 से घटकर 30 पर आ गई है. लेकिन, सबसे बड़ी चुनौती नए फाइटर जेट्स हासिल करने की है. दरअसल, फाइटर जेट्स कोई वाशिंग मशीन या रेफ्रिजरेटर नहीं होते हैं कि कोई व्यक्ति मार्केट गया और उसे खरीदकर लेते आया. बल्कि, ये बेहद जटिल तकनीक वाले विमान हैं और भारत की कोशिश है कि वह अब भविष्य में स्वदेशी फाइटर जेट्स का इस्तेमाल करे. इस दिशा में भारत अपने तेजस प्रोग्राम के साथ पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान AMCA यानी एम्का प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है.
अब इस एम्का प्रोजेक्ट में देसी वैज्ञानिकों को एक बड़ी सफलता मिली है. दरअसल, डीआरडीओ ने मॉर्फिंग विंग टेक्नोलॉजी का सफल परीक्षण किया है. यह एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जो दुनिया के कुछ चुनिंदा कंपनियों जैसे एयरबस और नासा के पास है. एक तरह से इस तकनीक पर अमेरिका और यूरोप का कब्जा है. चीन और रूस जैसे देश भी पांचवी पीढ़ी के फाइटर जेट्स बना चुके हैं लेकिन, उनके पास भी ऐसी सटीक तकनीक होने को लेकर सवाल किए जाते हैं.
पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स के लिए क्यों जरूरी है ये तकनीक?
फिफ्थ जेन फाइटर जेट के लिए यह एक बहुत बड़ी टेक्नोलॉजी है. इस टेक्नोलॉजी में फाइटर जेट अपने फंख पक्षियों की तरह समेट सकते है. उसको छोटा-बड़ा कर सकते हैं. जरूरत पड़ने पर उसे छिपा सकते हैं. वह आसमान में संतुलित स्थित पाने लेने के बाद अपने फंख को पूरी तरह छिपा सकते हैं. यह सब कुछ सेकेंडों के भीतर होता है. ऐसे में ये विमान आसानी से दुश्मन के राडार से बच जाएंगे. पंख समेटने के कारण उनका आकार भी काफी सिमट जाएगा. पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट के लिए यह एक बहुत बड़ी तकनीकी जरूरत है. दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों की चुनिंदा कंपनियों के पास ही यह तकनीक उपलब्ध है.
इस तकनीक को डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है. इसका सफल परीक्षण किया जा चुका है. आने वाले वक्त में इसे फाइटर जेट्स के साथ जोड़ा जाएगा. जानकारों का कहना है कि इस तकनीक का सीधा फायदा एम्का प्रोजेक्ट के साथ-साथ मानव रहित विमानों के विकास में मिलेगा.
