बिहार चुनाव में अपराध और राजनीति का गठजोड़, जेल से मैदान में कई उम्मीदवार

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 एक बार फिर अपराध और राजनीति के घालमेल को सामने ला रहा है। मोकामा में जन सुराज पार्टी समर्थक दुलारचंद यादव की हत्या और उस मामले में जदयू नेता व बाहुबली अनंत सिंह की गिरफ्तारी ने राज्य की सियासत पर पुराने सवालों को फिर से जिंदा कर दिया है—क्या बिहार की राजनीति अपराध के साये से कभी मुक्त हो पाएगी? चुनाव के पहले चरण से पहले ही यह बहस तेज हो गई है, क्योंकि इस बार भी कई ऐसे नेता मैदान में हैं जो जेल की सलाखों के पीछे से चुनाव लड़ रहे हैं।
मोकामा के बाहुबली अनंत सिंह, जिन्हें ‘छोटे सरकार’ कहा जाता है, एक बार फिर सुर्खियों में हैं। हत्या, अपहरण, अवैध हथियार और रंगदारी जैसे 28 से अधिक मामलों में आरोपी अनंत सिंह फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं। इसके बावजूद जदयू ने उन पर पूरा भरोसा जताया है। उनकी पत्नी और मौजूदा विधायक नीलम देवी उनके प्रचार की अगुवाई कर रही हैं। केंद्रीय मंत्री ललन सिंह और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने भी उनके समर्थन में रोड शो किया। यह पहली बार नहीं जब अनंत सिंह जेल में रहते हुए चुनावी मैदान में हैं—2020 में भी उन्होंने इसी स्थिति में जीत दर्ज की थी।
दानापुर से आरजेडी के विधायक रीतलाल यादव भी जेल से चुनाव लड़ रहे हैं। उन पर हत्या, जबरन वसूली और साजिश के 30 से ज्यादा मामले दर्ज हैं। हाल ही में उन्हें बेउर जेल से भागलपुर सेंट्रल जेल भेजा गया, मगर उनका प्रचार आरजेडी नेतृत्व खुद संभाल रहा है। लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव और मीसा भारती उनके लिए प्रचार कर रहे हैं। दानापुर में लालू यादव ने उनके समर्थन में रोड शो भी किया।
वामपंथी दलों के उम्मीदवारों को भी इस बार प्रशासनिक कार्रवाइयों का सामना करना पड़ा है। सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के जितेंद्र पासवान को नामांकन के तुरंत बाद पुलिस ने गिरफ्तार किया। पार्टी ने इसे राजनीतिक साजिश बताया और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला करार दिया। वहीं दरौली सीट से वामपंथी विधायक सत्यदेव राम भी नामांकन के बाद गिरफ्तार किए गए। उन पर पुराने प्रदर्शन से जुड़े मामले में वारंट था, जिसे सीपीआई (एमएल) ने सरकार द्वारा विपक्षी दमन बताया।
सासाराम से आरजेडी प्रत्याशी सत्येंद्र शाह को झारखंड पुलिस ने 2004 के बैंक लूट मामले में गिरफ्तार किया है। पार्टी का कहना है कि मामला पुराना है और इसका इस्तेमाल राजनीतिक बदले के लिए किया जा रहा है। इसी तरह सीतामढ़ी के परिहार से निर्दलीय उम्मीदवार महेंद्र सिंह यादव भी जेल से चुनाव लड़ रहे हैं। गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थकों ने प्रदर्शन करते हुए प्रशासन पर पक्षपात का आरोप लगाया।
बिहार के इन चुनावों में एक बार फिर वही पुराना सवाल गूंज रहा है—क्या राज्य की राजनीति में अपराध का प्रभाव कभी खत्म हो सकेगा, या फिर ‘बाहुबल और प्रभाव’ ही आगे भी जीत की गारंटी बने रहेंगे?
