अरावली संरक्षण विवाद: कांग्रेस का सरकार पर आरोप, सुप्रीम कोर्ट ने नई परिभाषा पर लगाई रोक

अरावली संरक्षण विवाद: कांग्रेस का सरकार पर आरोप, सुप्रीम कोर्ट ने नई परिभाषा पर लगाई रोक
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नई दिल्ली |कांग्रेस ने सोमवार को केंद्र और राज्य की डबल इंजन सरकार पर अरावली पर्वत श्रृंखला को नुकसान पहुंचाने का गंभीर आरोप लगाया है। पार्टी का दावा है कि सरकार की नीतियों के कारण अरावली का अस्तित्व खतरे में है। कांग्रेस का कहना है कि सिर्फ खनन ही नहीं, बल्कि जिस तरह से रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स को बढ़ावा दिया जा रहा है, वह अरावली के पहले से तबाह हो चुके पारिस्थितिकी तंत्र में और तबाही मचाएगा।

क्या बोले पूर्व मंत्री?

इसको लेकर कांग्रेस महासचिव और पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट में लिखा ' इस समय देश अरावली को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के ताजा निर्देशों का इंतजार कर रहा है। यहां इस बात के और सबूत हैं कि अरावली की नई परिभाषा पहले से ही बर्बाद हो चुके इस पारिस्थितिकी तंत्र में और ज्यादा तबाही मचाएगी। मुद्दा सिर्फ खनन का नहीं है-फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की सिफारिशों के खिलाफ, नई दिल्ली और जयपुर की डबल इंजन सरकार रियल एस्टेट डेवलपमेंट के दरवाजे भी खोल रही है।'

न्यायालय ने पिछले फैसले पर लगाई रोक

मामले में कांग्रेस ने अरावली की नई परिभाषा का विरोध किया। कांग्रेस का आरोप है कि इस नई परिभाषा के लागू होने से अरावली का 90 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा कानूनी सुरक्षा के दायरे से बाहर हो जाएगा। इसका सीधा मतलब यह होगा कि इन इलाकों को खनन और अन्य निर्माण कार्यों के लिए खोलकर उन्हें नष्ट कर दिया जाएगा। हालांकि इस मुद्दे पर विवाद बढ़ने के बाद केंद्र सरकार ने राज्यों को निर्देश दिया था कि वे पर्वत श्रृंखला के अंदर नई खनन लीज न दें। वहीं, सर्वोच्च न्यायालय ने भी अरावली की परिभाषा को लेकर चल रहे विवाद पर खुद संज्ञान लिया है। इस मसले पर आज सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद न्यायालय ने पिछले फैसले पर रोक लगा दी है।

क्या थी पहले की परिभाषा

इससे पहले 20 नवंबर को शीर्ष अदालत ने अरावली पहाड़ियों और श्रृंखलाओं की एक समान परिभाषा स्वीकार की थी। कोर्ट ने विशेषज्ञों की रिपोर्ट आने तक दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैले अरावली क्षेत्र में नई खनन लीज देने पर रोक लगा दी थी। वहीं सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया था। समिति ने सिफारिश की थी कि अरावली जिलों में किसी भी ऐसी भू-आकृति को 'अरावली पहाड़ी' माना जाए जिसकी ऊंचाई आसपास की जमीन से 100 मीटर या उससे ज्यादा हो। वहीं, 'अरावली श्रृंखला' उसे माना जाएगा जहां 500 मीटर के दायरे में ऐसी दो या दो से अधिक पहाड़ियां मौजूद हों।

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