देवशयनी एकादशी: रविवार को चातुर्मास की शुरुआत, मांगलिक कार्यों पर लगेगा विराम

रविवार को  चातुर्मास की शुरुआत, मांगलिक कार्यों पर लगेगा विराम
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पंचांग गणना के अनुसार रविवार को देवशयनी एकादशी पर साध्य योग में चातुर्मास का आरंभ होगा। इसके साथ ही विवाह आदि मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाएगा।




चार माह धर्म, अध्यात्म, तीर्थाटन में समय बीतेगा। आस्थावान व्रत, अनुष्ठान व चातुर्मास के नियमों का पालन करेंगे। हिंदू धर्म परंपरा में चातुर्मास के चार माह त्योहारों की झड़ी भी लगेगी तथा राखी, जन्माष्टमी, दशहरा, दीपावली सहित अन्य त्योहार मनाए जाएंगे।

करें ये काम, मिलेगा पुण्य, होगा

दो नवंबर को देव उठने के बाद एक बार फिर मांगलिक कार्य शुरू होंगे। ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने बताया कि सनातन हिंदू धर्म परंपरा में देवशयनी एकादशी से चातुर्मास की शुरुआत मानी गई है।

इसे चौमासा व वर्षावास भी कहते हैं। धर्मशास्त्र में चातुर्मास के चार माह धर्म, अध्यात्म के बताए गए हैं। इस दौरान भक्तों को तीर्थाटन, दान, धर्म, उपवास, भागवत पारायण करते हुए पुण्यों का संचय करना चाहिए।

इससे इष्ट देव की कृपा होती है, साथ ही ज्ञात व अज्ञात दोषों से निवृत्ति मिलती है तथा भाग्योन्नति होती है। इस बार 6 जुलाई रविवार के दिन विशाखा नक्षत्र में चातुर्मास का आरंभ हो रहा है।

इसी दिन साध्य योग और वणिज उपरांत बव करण भी है। तुला राशि के चंद्रमा की साक्षी में चातुर्मास का आरंभ विशेष लाभप्रद रहेगा। एक मान्यता के अनुसार गुरु पूर्णिमा वाले दिन से भी चातुर्मास के आरंभ की मान्यता बताई जाती है।

तीर्थाटन एवं सत्संग का विशेष लाभ

चातुर्मास में भगवत भजन, यम, नियम, संयम से मन और बुद्धि को साधते हुए भगवत आराधना करना चाहिए। कई साधक तीर्थ पर जाकर कल्पवास का व्रत लेते हैं और 42 दिन, डेढ़ महीना या 3 महीना स्वयं को साधने का प्रयास करते हैं। इसका वैज्ञानिक एवं धार्मिक लाभ भी प्राप्त होता है। धार्मिक दृष्टिकोण में प्रबलता आती है।

चातुर्मास में यह व्रत त्योहार खास

पंचांग की गणना के अनुसार चातुर्मास के व्रत त्यौहार गुरु पूर्णिमा से आरंभ होकर जया पार्वती का व्रत, महाकालेश्वर की सवारी, कामदा एकादशी, हरियाली अमावस्या, नाग पंचमी, कल्कि जयंती, तुलसीदास जयंती, पवित्रा एकादशी, रक्षाबंधन , कजली तीज, श्री कृष्ण जन्माष्टमी, गोगा नवमी, अजा एकादशी, गोवत्स द्वादशी, कुशोत्पाटिनी अमावस्या, पिठोरा अमावस्या, रामदेव बीज, सामवेदियों का उपाकर्म, हरितालिका तीज, पार्थिव गणेश की स्थापना, ऋषि पंचमी, सूर्य छठ, संतान सप्तमी, तेजा दशमी, वामन जयंती, अनंत चौदस, महालय श्राद्ध, शारदीय नवरात्र, दशहरा, शरद पूर्णिमा, करवा चौथ, अहोई अष्टमी, धनतेरस, नरकहरा चतुर्दशी, दीपावली, भाई दूज, गोवर्धन पूजा, सौभाग्य पंचमी, पांडव पंचमी, सूर्य छठ, गोपाष्टमी, आंवला नवमी, देवउठनी एकादशी, बैकुंठ चौदस, कार्तिक की पूर्णिमा।

दो नवंबर को देव उठने के बाद एक बार फिर मांगलिक कार्य शुरू होंगे। ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने बताया कि सनातन हिंदू धर्म परंपरा में देवशयनी एकादशी से चातुर्मास की शुरुआत मानी गई है।

इसे चौमासा व वर्षावास भी कहते हैं। धर्मशास्त्र में चातुर्मास के चार माह धर्म, अध्यात्म के बताए गए हैं। इस दौरान भक्तों को तीर्थाटन, दान, धर्म, उपवास, भागवत पारायण करते हुए पुण्यों का संचय करना चाहिए।

इससे इष्ट देव की कृपा होती है, साथ ही ज्ञात व अज्ञात दोषों से निवृत्ति मिलती है तथा भाग्योन्नति होती है। इस बार 6 जुलाई रविवार के दिन विशाखा नक्षत्र में चातुर्मास का आरंभ हो रहा है।

इसी दिन साध्य योग और वणिज उपरांत बव करण भी है। तुला राशि के चंद्रमा की साक्षी में चातुर्मास का आरंभ विशेष लाभप्रद रहेगा। एक मान्यता के अनुसार गुरु पूर्णिमा वाले दिन से भी चातुर्मास के आरंभ की मान्यता बताई जाती है।

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चातुर्मास में भगवत भजन, यम, नियम, संयम से मन और बुद्धि को साधते हुए भगवत आराधना करना चाहिए। कई साधक तीर्थ पर जाकर कल्पवास का व्रत लेते हैं और 42 दिन, डेढ़ महीना या 3 महीना स्वयं को साधने का प्रयास करते हैं। इसका वैज्ञानिक एवं धार्मिक लाभ भी प्राप्त होता है। धार्मिक दृष्टिकोण में प्रबलता आती है।

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व्रत त्योहार खास

पंचांग की गणना के अनुसार चातुर्मास के व्रत त्यौहार गुरु पूर्णिमा से आरंभ होकर जया पार्वती का व्रत, महाकालेश्वर की सवारी, कामदा एकादशी, हरियाली अमावस्या, नाग पंचमी, कल्कि जयंती, तुलसीदास जयंती, पवित्रा एकादशी, रक्षाबंधन , कजली तीज, श्री कृष्ण जन्माष्टमी, गोगा नवमी, अजा एकादशी, गोवत्स द्वादशी, कुशोत्पाटिनी अमावस्या, पिठोरा अमावस्या, रामदेव बीज, सामवेदियों का उपाकर्म, हरितालिका तीज, पार्थिव गणेश की स्थापना, ऋषि पंचमी, सूर्य छठ, संतान सप्तमी, तेजा दशमी, वामन जयंती, अनंत चौदस, महालय श्राद्ध, शारदीय नवरात्र, दशहरा, शरद पूर्णिमा, करवा चौथ, अहोई अष्टमी, धनतेरस, नरकहरा चतुर्दशी, दीपावली, भाई दूज, गोवर्धन पूजा, सौभाग्य पंचमी, पांडव पंचमी, सूर्य छठ, गोपाष्टमी, आंवला नवमी, देवउठनी एकादशी, बैकुंठ चौदस, कार्तिक की पूर्णिमा।

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