सऊदी अरब,पाकिस्तान रक्षा समझौते से भारत में चिंता, पूर्व राजनयिक बोले– रिश्तों को संभलकर आगे बढ़ाना होगा

सऊदी अरब,पाकिस्तान रक्षा समझौते से भारत में चिंता, पूर्व राजनयिक बोले– रिश्तों को संभलकर आगे बढ़ाना होगा
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नई दिल्ली सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुए रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौता को भारत के लिए सकारात्मक संकेत नहीं माना जा रहा है। भारत के दो पूर्व राजदूतों ने शुक्रवार को इसे 'चिंता का विषय' बताते हुए कहा कि इस हालात में भारत को सऊदी अरब के साथ अपने संबंधों को बेहद सावधानी और कुशलता से संभालना होगा। हालांकि, दोनों पूर्व राजनयिकों ने यह भी स्पष्ट किया कि इस समझौते के बावजूद भारत और सऊदी अरब के बीच संबंध मजबूत बने रहेंगे।

क्या है यह समझौता?

यह समझौता बुधवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के बीच सऊदी अरब में हुई एक दिन की बैठक के दौरान हुआ। समझौते के मुताबिक, अगर किसी एक देश पर हमला होता है, तो उसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। यह घटना ऐसे समय में हुई है जब हाल ही में इस्राइल ने कतर में हमास नेतृत्व पर हमला किया था। कतर, अमेरिका का महत्वपूर्ण सहयोगी माना जाता है।

पूर्व राजदूत अशोक कंठा की राय

भारत के पूर्व राजदूत अशोक कंठा, जिन्होंने चीन में भारत का प्रतिनिधित्व किया था, ने कहा,'यह हमारे दृष्टिकोण से अच्छा विकास नहीं है। यह सऊदी अरब की तरफ से आने वाला कोई सकारात्मक संकेत नहीं है।' उन्होंने कहा कि यह भारत-सऊदी अरब संबंधों पर सीधे तौर पर क्या असर डालेगा, कहना जल्दबाजी होगी। पूर्व राजदूत ने बताया कि भारत और सऊदी अरब के बीच रिश्ते कई स्तरों पर मजबूत और बहुआयामी हैं। 'हमारे संबंध मजबूत रहेंगे। यह समझौता थोड़ा असहज और अप्रत्याशित जरूर है, लेकिन इससे पूरी साझेदारी खत्म नहीं होगी।'

विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया

भारत के विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को एक बयान जारी कर कहा था कि वह इस समझौते पर नजर रख रहा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, 'हमें पता था कि यह विकास, जो लंबे समय से विचाराधीन था, अब औपचारिक रूप ले चुका है। भारत इस समझौते के राष्ट्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर प्रभाव का अध्ययन करेगा।'

पूर्व राजदूत वेणु राजमणि की चिंता

नीदरलैंड में भारत के पूर्व राजदूत वेणु राजमणि ने इस समझौते को लेकर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा, 'यह समझौता निश्चित रूप से चिंता का विषय है। इसमें साफ लिखा है कि अगर किसी एक देश पर हमला होता है तो उसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा।' राजमणि ने यह भी कहा कि इस समझौते की तत्काल पृष्ठभूमि इस्राइल की तरफ से कतर पर हमले से जुड़ी हो सकती है, लेकिन पाकिस्तान खुद को लगातार इस्लामिक देशों और खाड़ी देशों के साथ जोड़ रहा है।

उन्होंने आगे कहा, 'यह भारत के लिए भी असर डाल सकता है। अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि इसका भारत-सऊदी रिश्तों पर कितना असर पड़ेगा। लेकिन इतना तय है कि भारत को सऊदी अरब के साथ अपने रिश्ते बेहद सावधानी और रणनीति के साथ आगे बढ़ाने होंगे।' उन्होंने यह भी जोड़ा कि सऊदी अरब की नजर में यह समझौता भारत के खिलाफ नहीं भी हो सकता है, लेकिन इससे पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच सुरक्षा संबंध और मजबूत होंगे। 'जो साफ दिख रहा है वह यह है कि सऊदी अरब पाकिस्तान को छोड़ नहीं रहा, बल्कि सुरक्षा के स्तर पर और करीब ला रहा है। यह भारत के लिए अच्छा संकेत नहीं है।'

भारत-सऊदी अरब संबंधों का महत्व

भारत और सऊदी अरब के बीच संबंध ऊर्जा, व्यापार, प्रवासी भारतीयों और सुरक्षा सहयोग जैसे कई मोर्चों पर मजबूत हैं। सऊदी अरब भारत के लिए कच्चे तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है और वहां 25 लाख से ज्यादा भारतीय काम करते हैं, जो भारत की अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका निभाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह समझौता भारत-सऊदी संबंधों को सीधे तौर पर नहीं तोड़ेगा, लेकिन विश्वास की कमी और सुरक्षा के क्षेत्र में सावधानी बढ़ सकती है।

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