माधव गौशाला से कपासन तक: जब सांवलिया सेठ बने पावणा, तुलसी विवाह की परंपरा ने जीता सबका मन

भीलवाड़ा. श्री सांवलिया सेठ मंदिर ट्रस्ट नौगांवा, जो माधव गौशाला में स्थित है, सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं है, बल्कि धर्म और आस्था का एक जीवंत, स्पंदनशील केंद्र है. यह हमें न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि विवाह जैसे पवित्र संबंधों को सच्ची निष्ठा और प्रेम से कैसे निभाया जाता है. हाल ही में इस पावन भूमि पर इसका एक अनुपम और हृदयस्पर्शी उदाहरण देखने को मिला, जिसने उपस्थित सभी लोगों को भावविभोर कर दिया.
तुलसी विवाह से गृह प्रवेश तक: एक अद्भुत यात्रा
यह कहानी शुरू हुई तीन महीने पहले, जब एक भव्य सामूहिक विवाह समारोह का आयोजन किया गया था. उस शुभ अवसर पर, पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार, तुलसी विवाह संपन्न हुआ. तुलसी विवाह, भारतीय संस्कृति में एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जहाँ भगवान शालिग्राम (जो भगवान विष्णु का एक रूप हैं) का विवाह तुलसी से किया जाता है. यह विवाह प्रतीकात्मक रूप से सभी सांसारिक विवाहों के लिए एक आदर्श स्थापित करता है, जहाँ प्रेम, समर्पण और विश्वास की नींव पर एक अटूट बंधन का निर्माण होता है. अब, भड़ल्या नवमी के पावन अवसर पर, इस विवाह की रस्मों को आगे बढ़ाते हुए, सेन समाज सामूहिक विवाह समिति मातृकुंडिया के अध्यक्ष नारायण सेन और चित्तौड़गढ़ सेन समाज की अध्यक्ष पूनम देवी सेन ने एक असाधारण और प्रेरणादायक पहल की. उन्होंने अपने नए मकान, कपासन में गृह प्रवेश के शुभ अवसर पर, पावणों के रूप में किसी मनुष्य को नहीं, बल्कि स्वयं सांवलिया सेठ को निमंत्रण दिया! यह दर्शाता है कि उनके हृदय में सांवलिया सेठ के प्रति कितनी गहरी श्रद्धा और अटूट विश्वास है. उन्होंने पूरे मान-सम्मान के साथ, तुलसी को भी सांवलिया सेठ के साथ अपने नए घर में आमंत्रित किया, मानो वह उनकी अपनी बेटी हो जिसे वे नए जीवन में प्रवेश करा रहे हैं.
श्रद्धा, परंपरा और भावनाओं का संगम
यह दृश्य कितना अलौकिक, कितना भावुक और कितना अविस्मरणीय रहा होगा! दादा पुरुषोत्तम, पंडित प्रकाश शर्मा और माधव गौशाला के भक्तगण, स्वयं सांवलिया सेठ की प्रतिमा के साथ इस गृह प्रवेश में शामिल होने के लिए कपासन पहुंचे. उनके आगमन पर, सेन परिवार ने उनका विधिवत स्वागत-सत्कार किया, मानो उनके घर में स्वयं देव पधारे हों. फूलों की वर्षा हुई, मंत्रों का उच्चारण हुआ और वातावरण भक्तिमय हो उठा. इस अवसर पर, सबसे हृदयस्पर्शी क्षण वह था जब परंपरा के अनुसार, बेटी तुलसी को पूरा मान-सम्मान देते हुए, भावपूर्ण विदाई दी गई. यह सिर्फ एक रस्म नहीं थी, बल्कि यह उस अटूट प्रेम और सम्मान का प्रतीक था जो माता-पिता अपनी बेटी के लिए महसूस करते हैं, भले ही वह एक पौधा ही क्यों न हो. आंखों में नमी और होठों पर मुस्कान के साथ, परिवार ने तुलसी को उसके नए "घर" में विदा किया, यह विश्वास करते हुए कि वह वहां भी अपनी दिव्यता और पवित्रता बिखेरेगी.
एक प्रेरणादायक संदेश
यहएक धार्मिक अनुष्ठान या पारिवारिक समारोह से कहीं बढ़कर है. यह हमें सिखाती है कि कैसे विश्वास, परंपरा और रिश्तों का गहरा सम्मान एक साथ मिलकर जीवन को और भी सुंदर और सार्थक बना सकते हैं. सांवलिया सेठ मंदिर और इस पवित्र परंपरा ने एक बार फिर साबित कर दिया कि भारतीय संस्कृति में रिश्तों का महत्व कितना गहरा है, और कैसे हम अपने देवी-देवताओं को भी अपने परिवार का अभिन्न अंग मानते हैं. यह सच्ची श्रद्धा और समर्पण का एक अद्भुत संगम था, जिसने उपस्थित सभी लोगों के हृदयों को छू लिया और उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि रिश्तों को निभाने का सच्चा अर्थ क्या है. नारायण सेन और पूनम देवी सेन ने एक ऐसा अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है, जो आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करेगा कि वे अपने धार्मिक मूल्यों और पारंपरिक रीति-रिवाजों को सहेज कर रखें और उन्हें अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाएं. यह एक ऐसा क्षण था जो केवल देखा नहीं गया, बल्कि अनुभव किया गया और आत्मा में गहराई तक उतर गया.