ग्रेट निकोबार परियोजना: पर्यावरण मंत्री सवालों के जवाब नहीं दे पाए, कांग्रेस ने किया हमला

नई दिल्ली कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने 'ग्रेट निकोबार बुनियादी ढांचा परियोजना' को लेकर रविवार को पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव पर पलटवार किया। रमेश ने कहा कि देश को एक संभावित पर्यावरणीय और मानवीय संकट के प्रति आगाह करना कोई नकारात्मक राजनीति नहीं है, बल्कि गहरी चिंता को जताने का एक स्पष्ट तरीका है। दरअसल, इस परियोजना का विरोध करने को लेकर यादव ने कांग्रेस की आलोचना की थी।
रमेश ने कहा कि पर्यावरण मंत्री इस परियोजना को लेकर कई बार पूछे गए बुनियादी सवालों का जवाब नहीं दे पा रहे हैं। उन्होंने एक्स पर लिखा, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कांग्रेस पर ग्रेट निकोबार बुनियादी ढांचा परियोजना को लेकर नकारात्मक राजनीति करने का आरोप लगाया है। लेकिन देश का ध्यान एक बड़े पर्यावरणीय और मानवीय संकट की ओर खींचना नकारात्मक राजनीति नहीं है, बल्कि यह गंभीर चिंता का संकेत है।
उन्होंने कहा, मंत्री उन बुनियादी सवालों का जवाब नहीं दे पा रहे हैं, जो कांग्रेस इस परियोजना को लेकर लगातार पूछ रही है। रमेश ने पूछा कि क्या यह परियोजना राष्ट्रीय वन नीति 1988 का उल्लंघन नहीं कर रही है, जिसमें लाखों पेड़ों को काटा जाएगा। इस नीति में साफ तौर पर कहा गया है कि उष्णकटिबंधीय वर्षा और आर्द्र वन, खासकर अंडमान और निकोबार जैसे क्षेत्रों में, पूरी तरह से सुरक्षित रखे जाने चाहिए।
'घने जंगलों के बीच नए पेड़ लगाना विकल्प नहीं हो सकता'
उन्होंने कहा कि पुराने और घने जंगलों की जगह नए पेड़ लगाना कभी भी उसका सही विकल्प नहीं हो सकता और इस परियोजना में जो वृक्षारोप की योजना बनाई गई है, वह पूरी तरह से दिखावा है। रमेश ने पूछा कि हरियाणा जैसे दूर और बिल्कुल अलग जलवायु के राज्य में पेड़ लगाकर ग्रेट निकोबार जैसे अनोखे वर्षावनों के नुकसान की भरपाई कैसे की जा सकती है? उन्होंने यह भी बताया कि हरियाणा सरकार ने पहले ही उस जमीन का 25 हिस्सा पहले ही खनन के लिए दे दिया है, जबकि यह वह वृक्षारोपण के लिए आरक्षित होनी चाहिए थी।
'जनजातीय परिषद की चिंताओं को किया जा रहा अनदेखा'
रमेश ने पूछा कि इस परियोजना को मंजूरी देने से पहले राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग से कोई राय क्यों नहीं ली गई? ग्रेट निकोबार की जनजातीय परिषद की चिंताओं को क्यों अनदेखा किया है? द्वीपों में सभी परियोजनाओं में समुदाय की एकता को प्राथमिकता देने की बात करने वाली नीति को क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है? उन्होंने यह भी पूछा कि जमीन अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 के तहत किए गए सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन में इस नीति और निकोबार के लोगों की मौजूदगी को क्यों खारिज कर दिया गया है?
'संकटग्रस्त प्रजातियों को विलुप्ति के कगार पर ले जाएगी परियोजना'
कांग्रेस नेता ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम (2006) के मुताबिक, शॉम्पेन समुदाय ही एकमात्र कानूनी रूप से वैध प्राधिकरण है, जो जनजातीय आरक्षित क्षेत्र की रक्षा, प्रबंधन और देखरेख कर सकता है। फिर इस परियोजना की मंजूरी प्रक्रिया में इसे क्यों नजरअंदाज किया गया? रमेश ने यह भी बताया कि इस द्वीप में लेदरबैक कछुए, मेगापोड पक्षी, खारे पानी के मगरमच्छ और समृद्ध प्रवाल भित्ति (कोरल रीफ) जैसी कई संकटग्रस्त प्रजातियां पाई जाती हैं। क्या यह परियोजना इन प्रजातियों को विलुप्ति के कगार पर नहीं ले जाएगी?
किताब को लेकर भूपेंद्र यादव पर कसा तंज
उन्होंने यह भी सवाल किया कि इस परियोजना से जुड़ी अहम जानकारी जैसे कि ट्रांसशिपमेंट पोर्ट के स्थान को बदलने के लिए की गई ग्राउंड ट्रुथिंग रिपोर्ट को सार्वजनिक क्यों नहीं किया जा रहा है? रमेश ने कहा कि यह द्वीप 2004 की सुनामी में गंभीर रूप से प्रभावित हुआ था और यह एक उच्च भूकंपीय क्षेत्र में आता है। फिर इस परियोजना की स्थिरता को कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है? उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि करीब बीस साल पहले 'सुप्रीम कोर्ट ऑन फॉरेस्ट कंजर्वेशन' नाम की एक किताब प्रकाशित हुई थी, जिसे ऋत्विक दत्ता और भूपेंद्र यादव ने लिखा था। रमेश ने कहा कि दुख की बात है कि इस किताब के पहले लेख ऋत्विक दत्ता को उनके पर्यावरणीय कार्यों के लिए जांच एजेंसियों का सामना करना पड़ रहा है, जबकि दूसरे लेखक (भूपेंद्र यादव) अब मंत्री हैं। उन्होंने सवाल किया- वह भूपेंद्र यादव कब जागेंगे?
पर्यावरण मंत्री ने अपने बयान में क्या कहा था?
भूपेंद्र यादव ने बीते गुरुवार को कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी ग्रेट निकोबार परियोजना का विरोध करके भ्रम फैला रही है और नकारात्मक राजनीति कर रही है। नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में यादव ने कहा था कि यह विशाल परियोजना भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और हिंद महासागर क्षेत्र में रणनीतिक संपर्क के लिए जरूरी है। यादव ने यह भी कहा था कि ग्रेट निकोबार के जंगल क्षेत्र का केवल 1.78 फीसदी हिस्सा ही इस परियोजना में उपयोग होगा।
सोनिया गांधी ने भी साधा परियोजना पर निशाना
उनका यह बयान कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी के उस लेख के बाद आया, जिसमें उन्होंने इस 72,000 करोड़ रुपये की परियोजना को एक 'योजनाबद्ध मूर्खता' बताया था। उन्होंने कहा था कि यह परियोजना शॉम्पेन और निकोबारी जनजातियों के अस्तित्व को खतरे में डालती है, दुनिया के सबसे अनोखे पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट करती है और प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। सोनिया गांधी ने यह भी आरोप लगाया कि यह परियोजना सभी कानूनी और विचार-विमर्श की प्रक्रियाओं का मजाक उड़ाते हुए आगे बढ़ाई जा रही है। उन्होंने कहा कि निकोबारी आदिवासियों के पैतृक गांव उसी जमीन पर आते हैं, जहां यह परियोजना बनाई जा रही है। 2004 की सुनामी के दौरान निकोबारी लोग पहले ही अपने गांवों से बाहर निकाले जा चुके हैं और अब यह परियोजना उन्हें हमेशा के लिए वहां से बेदखल कर देगा। इसका मतलब होगा कि वे अपने पैतृक गांवों में कभी वापस नहीं लौट पाएंगे। सोनिया गांधी ने यह भी कहा कि शॉम्पेन जनजाति के लिए यह परियोजना और भी बड़ा खतरा है, क्योंकि इससे उनके आरक्षित क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा समाप्त कर दिया जाएगा और वहां बड़ी संख्या में लोग और पर्यटक आने लगेंगे।
इसके जवाब में भूपेंद्र यादव ने हाल ही में उसी अखबार में एक लेख लिखकर इस परियोजना का बचाव किया। उन्होंने कहा कि यह योजना हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री और हवाई संपर्क का एक बड़ा केंद्र बनाने के लिए तैयार की गई है, जिसमें एक अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल, एक नया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, 450 मेगावोल्ट की गैस और सोलर आधारित पावर प्लांट और 16 वर्ग किलोमीटर में फैला एक सुव्यस्थित क्षेत्र शामिल है।
