जम्मू कश्मीर में किसका खेल बिगड़ेंगे ये 36 दल! बीते 4 सालों में बदला इनका का 'सियासी चेहरा'
अगले कुछ दिनों में होने वाले जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने अपने सियासी मोहरे फिट करने शुरू कर दिए हैं। इसमें कांग्रेस, बीजेपी, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी समेत अवामी लीग, अवामी नेशनल कांफ्रेंस समेत बहुजन समाज पार्टी जैसे क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दल सियासी मैदान में ताल ठोकने को उतर चुके हैं।
जम्मू कश्मीर में सियासत चरम पर पहुंच रही है। आखिरकार 10 साल बाद होने वाले विधानसभा के चुनाव में बड़े राजनीतिक दल तो सक्रियता के साथ सियासी मैदान में डटे ही हैं। लेकिन छोटे-छोटे राजनीतिक दलों से लेकर बड़े-बड़े नेताओं के नए बने दल भी अपनी सियासी चौसर सजाने में लगे हुए हैं। हालात यह हो गए हैं कि कभी जम्मू कश्मीर में गिनी चुनी चुनावी पार्टियां ही सियासी मैदान में दो-दो हाथ करने को उतरती थी। लेकिन इस बार चुनाव आयोग के आंकड़ों में ही जम्मू कश्मीर से तकरीबन तीन दर्जन छोटे-बड़े राजनीतिक दल रजिस्टर्ड हैं। सियासी जानकारों की मानें तो तो यह सभी छोटे-बड़े दल इस बार विधानसभा चुनाव में मजबूती से अपने प्रत्याशी भी उतार रहे हैं। इसमें कुछ नए राजनीतिक दल तो ऐसे भी हैं जिनके नेताओं का जम्मू कश्मीर के सियासत में अपना एक वजूद हुआ करता था। यही वजह है कि सियासी जानकार आने वाले चुनाव में इन छोटे दलों की हैसियत को कमतर नहीं आंक रहे हैं।
अगले कुछ दिनों में होने वाले जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने अपने सियासी मोहरे फिट करने शुरू कर दिए हैं। इसमें कांग्रेस, बीजेपी, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी समेत अवामी लीग, अवामी नेशनल कांफ्रेंस समेत बहुजन समाज पार्टी जैसे क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दल सियासी मैदान में ताल ठोकने को उतर चुके हैं। 10 साल पहले जब जम्मू कश्मीर में विधानसभा के चुनाव हुए थे, तो मुख्य रूप से यही दल सियासी मैदान में सबसे प्रभावी रूप से सक्रिय थे। लेकिन बीते 4 वर्षों में जम्मू कश्मीर में बदली सियासत के चलते कई छोटे-छोटे राजनीतिक दलों का गठन हो गया। इसमें कांग्रेस और पीडीपी से अलग हुए दो बड़े नेताओं के राजनीतिक दल भी शामिल है। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने पार्टी से अलग होकर डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी बना ली। तो वही पीडीपी से बागी नेता गुलाम नबी आजाद ने भी अपनी सियासी राह अलग करते हुए जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी नाम से राजनीतिक दल का गठन कर सियासत में ताल ठोक दी। देश की प्रमुख पार्टियों के साथ-साथ जम्मू कश्मीर के यह दो नेता भी अपनी नई पार्टी के साथ प्रत्याशियों को मैदान में उतारकर चुनाव को रोचक बना रहे हैं।
केंद्रीय चुनाव आयोग के आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो पता चलता है कि बीते चार वर्षों के दौरान जम्मू कश्मीर में लगभग डेढ़ दर्जन से ज्यादा दल जम्मू कश्मीर की सियासत में सामने आए हैं। इन सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग में अपना रजिस्ट्रेशन भी कराया है ताकि विधानसभा के चुनावी मैदान में वह अपने प्रत्याशी उतार सके। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक जिन दलों ने बीते कुछ वर्षों में ही अपने दल को राजनीतिक दल के तौर पर रजिस्टर्ड कराया है, उसमें जम्मू कश्मीर नेशनलिस्ट पीपुल्स फ्रंट, नेशनल आवामी यूनाइटेड पार्टी, गरीब डेमोक्रेटिक पार्टी, नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी, वॉइस ऑफ़ लेबर पार्टी, तहरीक ए जम्मू कश्मीर, अमन और शांति पार्टी, एकजुट जम्मू पार्टी, इंसाफ ए हक पार्टी समेत तकरीबन डेढ़ दर्जन सियासी दलों ने चुनाव आयोग में अपना रजिस्ट्रेशन कराया है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक जम्मू कश्मीर में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के साथ-साथ नए दलों के रजिस्ट्रेशन के साथ इनकी संख्या तकरीबन तीन दर्जन के करीब पहुंच चुकी है।
अब जब जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है तो सभी राजनीतिक दल अपने प्रत्याशी भी सियासी मैदान में उतार रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह जरूर हो जाता है कि जो राजनीतिक दल या बड़े नेता पिछले विधानसभा के चुनाव में दूसरे दलों के साथ सियासी पारी को अंजाम दे रहे थे वह इस बार किसका खेल बिगाड़ने की हैसियत में है। जम्मू कश्मीर की सियासत को करीब से जानने वाले पनून कश्मीर के ओपी रैना कहते हैं कि अभी तक कुछ वर्षों में जिस तरीके से स्थानीय लोगों ने सियासी नजरिए से दलों का गठन किया है, उनमें से सभी सियासी खेल बिगाड़ेंगे इसकी संभावना है ना के बराबर है। क्योंकि बहुत से राजनीतिक दल ऐसे भी बने हैं जो कि पुराने समय में किसी ने किसी रूप में राजनीतिक दलों का समर्थन करते आते थे। क्योंकि उनका उस वक्त भी उतना वजूद नहीं होता था। इसलिए इसकी संभावना बहुत कम है कि नई पार्टी बना लेने से वह राजनीतिक दल कुछ बहुत बड़ा कर पाएंगे।
हालांकि रैना का कहना है कि कांग्रेस के बड़े नेता गुलाम नबी आजाद जब अपनी सियासी पार्टी से प्रत्याशियों को मैदान में उतार रहे हैं उसका असर जरूर देखा जा सकता है। इसी तरह पीडीपी के बागी नेता अल्ताफ बुखारी की पार्टी भी कुछ हद तक एक विशेष क्षेत्र में प्रभाव डाल सकती है। लेकिन यह कहना कि यह सभी दल बड़े स्तर पर व्यापक प्रभाव डालेंगे यह फिलहाल अभी कहना थोड़ी जल्दबाजी होगा। रैना कहते हैं कि जम्मू कश्मीर की सियासत को अब बिल्कुल एक नए नजरिए से देखा जा रहा है। विधानसभा के चुनाव भी इस नए नजरिए के साथ हो रहे हैं। वह कहते हैं कि अभी विपक्षी दलों का गठबंधन INDIA ब्लॉक फिलहाल जम्मू कश्मीर में भी मजबूती के साथ चुनाव लड़ने का दावा कर रहा है। जबकि भारतीय जनता पार्टी ने इस बार मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव लगाकर जम्मू कश्मीर में सियासत की एक नई हवा बहा दी है। इसलिए राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी अपनी मजबूत दावेदारी जम्मू कश्मीर में कर रही है।
हालांकि छोटे-छोटे दलों की सियासत में एंट्री को लेकर स्थानीय सियासी जानकार मकबूल अहमद बट मानते हैं कि इस बार पहले की तुलना में बदला हुआ चुनाव देखने को मिलेगा। वह कहते हैं कि छोटे-छोटे दलों का सियासी मैदान में उतारने का सीधा मतलब है कि वह अपनी हिस्सेदारी लोकतंत्र में चाहते हैं। यही वजह है कि कभी जो लोग बड़े दलों के समर्थन में जुटते थे वह अपना राजनीतिक दल बनाकर सियासी मैदान में उतर रहे हैं। बट का मानना है की जम्मू कश्मीर की स्थानीय पार्टियों में शामिल नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और जेकेपीसी जैसे राजनीतिक दलों के लिए इस चुनाव में चुनौती तो होगी। क्योंकि जिन सियासत करने वालों ने नई पार्टियों का गठन किया है उनमें से बहुत से लोग परोक्ष या अपरोक्ष रूप से जम्मू कश्मीर की इन्हीं छोटी-छोटी और बड़ी पार्टियों को पहले समर्थन किया करते थे। लेकिन इस चुनाव में बहुत से लोगों ने अपना सियासी दल बनाकर स्थानीय लोगों को जोड़ने की कवायद शुरू की है।