’10 वर्षों में नौकरियां घटी, कोई जुमलेबाजी इसे नहीं बदल सकती’, सरकारी आंकड़ों पर कांग्रेस का पलटवार

’10 वर्षों में नौकरियां घटी, कोई जुमलेबाजी इसे नहीं बदल सकती’, सरकारी आंकड़ों पर कांग्रेस का पलटवार
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जयराम रमेश ने तर्क दिया कि कोरोना महामारी के दौरान रोजगार में वृद्धि इसी तरफ इशारा करती है क्योंकि उस दौरान अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा बंद हो गया था और 2020-21 के दौरान कई औपचारिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में नौकरियों में 12 लाख की कमी देखी गई थी। वहीं कृषि क्षेत्र में 1.8 करोड़ नई नौकरियां सृजित हुईं थी।

कांग्रेस ने सोमवार को सरकार के उस दावे पर पलटवार किया है, जिसमें सरकार ने कहा है कि साल 2021 से 2024 के बीच देश में रोजगार के आठ करोड़ अवसर पैदा हुए हैं। सरकार ने ये भी बताया कि ईपीएफओ डेटाबेस में 6.2 करोड़ नए ग्राहक जुड़े हैं। कांग्रेस ने इस दावे को भी आधा सच बताकर खारिज कर दिया और कहा कि कोई भी जुमलेबाजी इस तथ्य को नहीं बदल सकती कि 2014-24 के बीच नौकरियों में कमी आई है।


रिजर्व बैंक के डेटा को कांग्रेस ने खारिज किया

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि 'इस 'डगमगाती' सरकार के पिछले कुछ महीनों में 'यू-टर्न और घोटालों' के बीच अपने आर्थिक रिकॉर्ड में कुछ सांत्वना खोजने की कोशिश की है।' जयराम रमेश ने कहा कि 'सरकार ने जुमलेबाजी से एक और आंकड़ा पेश किया है, जिसके मुताबिक सितंबर 2017 से मार्च 2024 के बीच कर्मचारी भविष्य निधि संगठन डेटाबेस में 6.2 करोड़ नए सदस्य जुड़े हैं। यह दावा सबसे पहले रिजर्व बैंक के KLEMS (K: Capital, L: Labour, E: Energy, M: Materials and S: Services) डेटा से सामने आया था और हम जुलाई में ही इस दावे का खंडन कर चुके हैं।'

आरोप- सरकार असंगठित क्षेत्र के रोजगार को उपलब्धि बता रही

जयराम रमेश ने तर्क दिया कि आठ करोड़ नई नौकरियों के अपने दावे में सरकार ने रोजगार की गुणवत्ता और परिस्थितियों को नजरअंदाज किया है। उन्होंने दावा किया कि 'रोजगार वृद्धि' का एक बड़ा हिस्सा उन महिलाओं का है, जो असंगठित तौर पर घरेलू काम करती है और सरकार ने उसे रोजगार के रूप में दर्ज किया है। कांग्रेस नेता ने कहा कि श्रम बाजार में वेतनभोगी, संगठित रोजगार की हिस्सेदारी कम हुई है और लोग श्रमिक या कम उत्पादकता वाले अनौपचारिक क्षेत्रों जैसे खेती में काम कर रहे हैं, जिन्हें रिजर्व बैंक के KLEMS के डेटा में शामिल कर लिया है।

अपनी बात के समर्थन में जयराम रमेश ने तर्क दिया कि कोरोना महामारी के दौरान रोजगार में वृद्धि इसी तरफ इशारा करती है क्योंकि उस दौरान अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा बंद हो गया था और 2020-21 के दौरान कई औपचारिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में नौकरियों में 12 लाख की कमी देखी गई थी। वहीं कृषि क्षेत्र में 1.8 करोड़ नई नौकरियां सृजित हुईं थी। दरअसल कारखाने और कंपनियों के बंद होने से लोग अपने घर लौट आए और अपने घर पर ये खेती से कामों से जुड़ गए, जिन्हें सरकार ने नई नौकरियों के रूप में दर्ज कर लिया।

ईपीएफओ के आंकड़ों बताया बाजीगरी

कांग्रेस नेता ने कहा कि कम उत्पादकता, खराब वेतन वाली नौकरियों की ओर यह बदलाव आर्थिक तौर पर मजाक है, लेकिन सरकार इसे एक उपलब्धि के रूप में बता रही है। देश में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी होने का दावा करते हुए जयराम रमेश ने कहा कि ईपीएफओ को लेकर जो दावा किया जा रहा है, उसमें इस बात की अनदेखी की जा रही है कि ईपीएफओ सिर्फ संगठित क्षेत्र को ट्रैक करता है, जो देश में कुल रोजगार का 10 प्रतिशत से भी कम है। साथ ही अब ईपीएफओ में पंजीकरण प्रक्रिया आसान हो गई है। ऐसे में ईपीएफओ के सदस्य बिना अंतिम निपटान किए अब नियोक्ता बदलते समय अपने पीएफ खातों को स्थानांतरित कर सकते हैं। साथ ही कई सेवानिवृत्त लोग बेहतर रिटर्न की चाह में अपना पैसा नहीं निकालते हैं, उन्हें भी ईपीएफओ के डेटा में नियोजित दिखाया जाता है।

जयराम रमेश ने सरकार के दावों को आंकड़ों की बाजीगरी करार दिया और कहा कि ये सच्चाई है कि भारत में बेरोजगारी दर 45 वर्षों में सबसे अधिक है। स्नातक युवाओं में बेरोजगारी दर 42 प्रतिशत है। जयराम रमेश ने कहा कि यह संकट सरकार ने खुद खड़ा किया है और इसकी वजह नोटबंदी जैसा तुगलकी फरमान, जल्दबाजी में जीएसटी लागू करने का फैसला, अनियोजित कोरोना लॉकडाउन और चीन से बढ़ता आयात है। उन्होंने कहा कि साथ ही सरकार की आर्थिक नीति कुछ बड़े व्यापारिक समूहों के पक्ष में है, जिससे प्रतिस्पर्धा खत्म हो रही है और मुद्रास्फीति प्रभावित हो रही है।

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