महाराष्ट्र और झारखंड में भी कांग्रेस पर भारी ना पड़ जाए आपसी लड़ाई, तैयार की जा रही है नई रणनीति
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों से नाराज हैं। समीक्षा बैठक में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के सामने जमकर अपनी भड़ास निकाली थी। राहुल का मनना है कि कांग्रेस के बब्बर शेर (हुड्डा, सैलजा, सुरजेवाला) आपस में लड़ गए और कांग्रेस जीतती हुई बाजी हार गई। महाराष्ट्र के नेताओं के साथ बैठक में राहुल ने सब कह डाला। इधर चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव तारीखों की घोषणा कर दी है। 23 नवंबर को दोनों राज्यों के नतीजे आएंगे, लेकिन एक सवाल मौजू है कि कहीं कांग्रेस के बब्बर शेर फिर आपस में न लड़ जाएं।
महाराष्ट्र में 20 नवंबर और झारखंड में 13 और 20 नवंबर को मतदान होना है। दोनों ही राज्यों में कांग्रेस के नेताओं के खेमे हैं। पृथ्वीराज चौह्वाण, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले, विधायक दल नेता विजय वेडिट्टीवार, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बाला साहब थोराट के अलावा गुटों की कमी नहीं है। कमोबेश इसी तरह की स्थिति झारखंड में भी बन रही है। महाराष्ट्र के एक पुराने कांग्रेस नेता का कहना है कि चाहे झारखंड हो या महाराष्ट्र, दोनों राज्यों में हमें सहयोगियों से तालमेल करके ही चुनाव भी लड़ना है।
कांग्रेस के पुराने रोग से क्यों परेशान हैं राहुल गांधी?
हरियाणा के विधानसभा चुनाव में पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को सबसे कद्दावर मानकर चल रही थी। भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने 90 सदस्यीय विधानसभा में अपने आगे किसी की न चलने दी। करीब 72 प्रत्याशी हुड्डा के प्रिय रहे। पूर्व केन्द्रीय मंत्री कुमारी सैलजा हुड्डा के राजनीतिक राग से खिन्न होकर घर बैठ गईं। देर से चुनाव मैदान में उतरीं। उतरने से पहले अपनी नाराजगी जाहिर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। तीसरा बड़ा किरदार रणदीप सुरजेवाला ने निभाया। सुरजेवाला पहले से हुड्डा विरोधी कैंप के जाट नेता हैं। हरियाणा के कांग्रेस के नेता कहते हैं कि तीनों बड़े नेताओं में तालमेल के अभाव में पार्टी के तमाम नेता आपस में भितरघात में जुट गए। राहुल गांधी को पता है कि राव इंद्रजीत सिंह कांग्रेस में थे और पार्टी को छोड़ गए। चौधरी वीरेन्द्र सिंह ने भी कांग्रेस छोड़ी, क्यों छोड़ी? किरण चौधरी, कुलदीप विश्नोई को क्यों पार्टी छोड़नी पड़ी? पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर कांग्रेस छोडक़र क्यों गए थे? इन सभी के कारण राहुल गांधी को पता हैं। राहुल जानते और मानते हैं कि कांग्रेस के तमाम बड़े नेता अपनी पार्टी में अपनी जात बिरादरी के दूसरे नेताओं को पनपने नहीं देते। चाहे वह हुड्डा हों या फिर सैलजा। इसका नतीजा पार्टी को भुगतना पड़ता है। राहुल गांधी का सचिवालय भी हरियाणा चुनाव नतीजे की गर्मी को महसूस कर रहा है। इस नतीजे ने दीपक बावरिया, अजय माकन, सुनील कानूगोलू के कामकाज के तरीके को लेकर भी राहुल गांधी को निराश किया है।
चुनावों में कैसे जीतेगी कांग्रेस?
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी के विश्वसनीय तथा पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल का रुतबा कांग्रेस में काफी है। केसी वेणुगोपाल पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की इन दिनों आवाज माने जाते हैं। केसी वेणुगोपाल राहुल गांधी को बखूबी समझते हैं। वह पार्टी के नेताओं को गुटबाजी से दूर रहकर और मिलकर चुनाव जीतने का मंत्र बड़े मन से बताते हैं। राहुल गांधी भी लगातार कांग्रेस के नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं को गुटबाजी से दूर रहने की अपील करते हैं। हरियाणा की चुनाव समीक्षा के दौरान भी राहुल गांधी ने शीर्ष नेताओं को बताया कि करीब डेढ़ दर्जन सीट पार्टी अपने नेताओं के भीतर मचे घमासान के कारण हार गई। इस घमासान का असर दूसरे दल से तालमेल, प्रत्याशी चयन, टिकट बंटवारा,चुनाव प्रचार अभियान में जिम्मेदारी का बंटवारा समेत तमाम पर पड़ा। महाराष्ट्र और झारखंड के नेताओं को मुख्य विपक्षी दल अभी से इसके लिए ताकीद कर रहे हैं कि वह अनावश्यक बयानबाजी, गुटबाजी, भितरघात जैसी स्थितियों से दूर रहें। गठबंधन की राजनीति को पार्टी के हित में स्वीकार करें।
हरियाणा की जीत से कम महत्वपूर्ण नहीं जम्मू-कश्मीर के नतीजे
संघ के एक बड़े नेता कहते हैं कि हरियाणा में तीसरी बार भाजपा की सरकार से कम महत्वपूर्ण जम्मू-कश्मीर के चुनाव नतीजे नहीं हैं। जम्मू-कश्मीर के नतीजे एतिहासिक हैं। भाजपा मुख्यालय दीन दयाल उपाध्याय मार्ग में दोनों राज्यों के नतीजे से पार्टी के भीतर आए उत्साह को साफ देखा जा सकता है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह खुद हरियाणा में आब्जर्वर बनकर जा रहे हैं। दोनों राज्यों के नतीजों से संघ और भाजपा के दोनों के भीतर देश के शीर्ष नेतृत्व को काफी राहत मिली है। माना जा रहा है कि महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव में भाजपा एक बार फिर नए प्रयोगों को करने से नहीं हिचकेगी। भाजपा ने जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में न केवल आपसी रार को थामने में सफलता पाई बल्कि चुनाव प्रचार अभियान को भी एक दिशा देने में सफल रही। दोनों ही राज्यों में पार्टी का फोकस विपक्ष के मतों के बंटवारे और उसमें सेंध लगाने के उपायों पर अधिक रहा। वहीं भाजपा के मतों को सहेजने और बढ़ाने की रणनीति को पार्टी ने खास अहमियत दी। चुनाव से कुछ समय पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री को बदलना और चुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री खट्टर का महत्व बनाए रखकर आगे बढ़ना फायदेमंद रहा।