सत्ता के मद के आगे प्रेस, न्यायपालिका को नहीं झुकना चाहिए: होसबाले

नयी दिल्ली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने आज कहा कि आपातकाल की 50 वर्षगांठ के मौके पर नयी पीढ़ी को यह सिखाने की जरूरत है कि सत्ता के मद और अहंकार में डूबे लोगों के समक्ष स्वतंत्र न्यायपालिका और स्वतंत्र पत्रकारिता को ना झुकना चाहिए और ना ही अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का समर्पण करना चाहिए।
श्री होसबाले ने गुरुवार को यहां डॉ. अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केन्द्र में आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने के मौके पर ओल्ड ब्वाज़ क्लब या एल्युमनी मीट बनाने से बचना चाहिए जहां लोग अपनी यादें ताज़ा करके लौट जाते हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान पीढ़ी को अलग तरीके से बताना होगा कि मौलिक अधिकारों का हनन किस तरह से हुआ था। इसका विश्लेषण करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आपातकाल के बाद श्रीमती इंदिरा गांधी तीन मोर्चाें पर हारी थीं। अदालत में राजनारायण के केस में उनकी हार हुई थी। गुजरात विधानसभा चुनावों में जनता फ्रंट से कांग्रेस चुनाव हार गयी थी और तीसरी हार देश के विभिन्न भागों में जयप्रकाश नारायण के भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, चुनाव सुधार आदि मांगों के आंदोलन के कारण विपरीत जनमत बनना थी।
श्री होसबाले ने कहा कि इस लड़ाई को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने आगे बढ़ाया था। उन्होंने यह भी कहा कि आपातकाल को याद करने के साथ ही हमें यह भी याद करना चाहिए कि जनता के आंदोलन के कौन से मुद्दों को लेकर आपातकाल की नौबत आयी थी। उन्होंने कहा कि 50 साल के दौरान उन मुद्दों पर काम हुआ है। प्रशासनिक सुधार, चुनाव सुधार, शिक्षा नीति में बदलाव आदि ऐसे ही कुछ मुद्दे हैं। इन मुद्दों पर आगे काम करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि देश में 1950 में गणतंत्र आया और संविधान लागू हुआ लेकिन 25 साल बाद ही इसे परीक्षा देनी पड़ी। गुलामी के कालखंड में एक बार ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि भारतीय लोग आज़ादी के हक़दार नहीं है। लेकिन आपातकाल में हमारे संघर्ष ने दिखा दिया कि हम लोकतंत्र और स्वतंत्रता की परीक्षा में जनसामान्य की चेतना और नौजवानों की ऊर्जा के कारण विजयी रहे।
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