सुप्रीम कोर्ट ने घुसपैठियों पर कड़ा रुख अपनाया अवैध प्रवेश के बाद अधिकारों की मांग पर उठाए सवाल

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने घुसपैठियों के अधिकारों पर सवाल उठाते हुए कड़ी टिप्पणी की है. शीर्ष अदालत ने कहा कि पहले लोग अवैध रूप से भारत में प्रवेश कर जाते हैं, उसके बाद उनके लिए अधिकारों की मांग की जाती है. अदालत ने यह भी पूछा कि क्या उनका स्वागत करना ही सही है.
प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाल्या बाग्ची की पीठ ने ये टिप्पणी पांच रोहिंग्याओं की गिरफ्तारी के बाद उनकी जानकारी न मिलने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान की. चीफ जस्टिस ने सीधे वकील से पूछा कि क्या भारत सरकार ने उन्हें शरणार्थी का दर्जा दिया है. वकील ने नकारात्मक उत्तर दिया तो कोर्ट ने कहा कि अगर शरणार्थी का दर्जा नहीं है तो वे घुसपैठिए हैं.
कोर्ट ने यह भी पूछा कि अवैध प्रवेश करने वाले घुसपैठियों को क्या सुविधाएं दी जानी चाहिए और उन्हें वापस भेजने में क्या समस्या है. पीठ ने कहा कि पहले वे सीमा पार करते हैं, अवैध रूप से देश में घुसते हैं और फिर भोजन, आश्रय और बच्चों की शिक्षा जैसी सुविधाओं की मांग करते हैं. अदालत ने सवाल किया कि क्या भारतीय कानून और संसाधनों को इस तरह प्रभावित किया जाना चाहिए, जबकि भारत में भी बहुत गरीब लोग हैं.
सुनवाई के दौरान यह भी बताया गया कि याचिकाकर्ता ने 2020 के पूर्व आदेश का हवाला देते हुए कहा कि रोहिंग्याओं को केवल कानूनी प्रक्रिया के अनुसार ही निर्वासित किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि अवैध प्रवेश होने पर भी थर्ड-डिग्री का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.
सुनवाई 16 दिसंबर तक स्थगित कर दी गई है. कोर्ट ने कहा कि उस दिन रोहिंग्याओं से जुड़े मामलों पर विचार होगा और पहले यह तय किया जाएगा कि वे शरणार्थी हैं या घुसपैठिए और अवैध प्रवेश की स्थिति में सरकार की कार्रवाई उचित थी या नहीं.
