TMC सरकार ने चार दागी अफसरों को चुनाव ड्यूटी से हटाया, चुनाव आयोग के आदेश के बावजूद नहीं किया निलंबित

कोलकाता पश्चिम बंगाल सरकार ने सोमवार को चुनाव आयोग (ईसी) को सूचित किया कि उसने चार अधिकारियों को सक्रिय चुनावी ड्यूटी से हटा दिया है। हालांकि, आयोग के निर्देश के बावजूद राज्य सरकार ने उन्हें निलंबित नहीं किया गया है। राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत ने चुनाव आयोग को लिखे पत्र में कहा कि जिन अधिकारियों ने लगातार ईमानदारी और दक्षता दिखाई है, उनके खिलाफ निलंबन जैसी अनुशासनात्मक कार्रवाई अनुचित और कठोर होगी।
उन्होंने बताया कि सरकार ने इन अधिकारियों को केवल मतदाता सूची पुनरीक्षण (एसआईआर) और चुनाव संबंधी कार्यों से हटाया है, लेकिन निलंबित नहीं किया। इसके साथ ही, राज्य सरकार ने इस मामले में आंतरिक जांच शुरू कर दी है और संबंधित प्रक्रिया की भी पूरी तरह से समीक्षा की जा रही है।
चुनाव आयोग ने राज्य सरकार को चार अधिकारियों को निलंबित करने और उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था। आयोग ने इस आदेश को लागू करने के लिए 11 अगस्त को दोपहर 3 बजे तक की समय-सीमा तय की थी। राज्य के मुख्य सचिव ने यह जवाब आयोग को उसी दिन तय समय से दो घंटे पहले भेजा।
पांच अगस्त को चुनाव आयोग ने चार अधिकारियों (दो निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ईआरओ) और दो सहायक निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (एईआरओ) तथा एक डाटा एंट्री ऑपरेटर को मतदाता सूची तैयार करने में कथित अनियमितताओं के आरोप में निलंबित करने का आदेश दिया था। ये अनियमितताएं दक्षिण 24 परगना के बारुईपुर पूर्व और पूर्व मेदिनीपुर के मोयना विधानसभा क्षेत्रों में हुईं। आयोग ने राज्य सरकार को इन पांचों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने और जल्द से जल्द कार्रवाई रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा था।
जिन चार अधिकारियों को सजा दी गई है, उनमें से दो (देबोत्तम दत्ता चौधरी और बिप्लब सरकार) पश्चिम बंगाल लोकसेवा (कार्यकारी) रैंक के अधिकारी हैं। आठ अगस्त को आयोग ने एक और नोटिस भेजते हुए 11 अगस्त दोपहर तीन बजे तक निलंबन का आदेश लागू करने और कार्रवाई रिपोर्ट भेजने की समय-सीमा तय की थी।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आयोग के इस कदम पर सवाल उठाते हुए इसे असांविधानिक बताया और आरोप लगाया कि भाजपा, चुनाव आयोग का इस्तेमाल राज्य सरकार के अधिकारियों को डराने के लिए कर रही है। उन्होंने साफ कहा कि वह इन अधिकारियों को निलंबित नहीं करेंगी।
