इन चीजों अभी ही बना लें दूरी नहीं तो जिंदगी में ऐसा गिरेंगे कि उठने लायक नहीं रहेंगे

हिंदू धर्मग्रंथों में श्रीमद्भगवद् गीता को सबसे प्रेरणादायक ग्रंथ माना गया है. इसमें बेहतर जीवन के लिए कई ऐसे मार्ग बताये गये हैं जो मनुष्य के लिए रोशनी का काम करता है. यही नहीं जीवन के कठिन परिस्थियों में यह हमें संबल देता है और हमारे लिए मार्गदर्शक का काम करता है. इस ग्रंथ में यह भी स्पष्ट रूप से बताया गया है कि किन कारणों से मनुष्य का नैतिक, मानसिक और आध्यात्मिक पतन होता है और कैसे वह अपने ही कर्मों के कारण सर्वनाश की ओर बढ़ता है. आइए जानते हैं गीता के अनुसार वे प्रमुख कारण क्या हैं जो किसी भी व्यक्ति के विनाश का कारण बनते हैं.
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क्रोध विनाश का सीधा मार्ग
भगवद गीता अध्याय 2, श्लोक 63 में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:
“क्रोधाद्भवति सम्मोहः, सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो, बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥”
इसका अर्थ है कि क्रोध की वजह से भ्रम का जन्म होता है, यही भ्रम स्मृति के नाश का कारण बनता है और स्मृति के नाश से बुद्धि का विनाश होता है. एक बार मनुष्य के बुद्धि का हो गया तो मनुष्य के बुद्धि का पतन निश्चित है. क्योंकि क्रोध मनुष्य के विवेक को नष्ट कर देता है, जिससे वह गलत निर्णय लेने लगता है और अंत में विनाश की ओर अग्रसर हो जाता है.