भगवान का नाम सुमिरन करने से मिटती आत्मा की भूख-संत मुमुक्षु रामजी महाराज

भगवान का नाम सुमिरन करने से मिटती आत्मा की भूख-संत मुमुक्षु रामजी महाराज
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भीलवाड़ा,। कलिकाल में इस जीवन का कोई भरोसा नहीं है। जब जागे तभी सवेरा है इसलिए अब तक नहीं जुड़े तो तुरन्त प्रभु भक्ति के मार्ग से जुड़ जाए। जीवन वहीं श्रेष्ठ है जो प्रभु के काम आए। शरीर का भोजन अन्न तो आत्मा का भोजन भजन है। आत्मा को पुष्ट करने के लिए भजन जरूरी है। आत्मा की भूख भगवान का नाम सुमिरन करने से मिटती है इसलिए प्रतिदिन भजन अवश्य करना चाहिए। ये बात शहर के रोडवेज बस स्टेण्ड के पास अग्रवाल उत्सव भवन में सोमवार को पोरवाल परिवार की ओर से सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव दूसरे दिन व्यास पीठ से कथा वाचन करते हुए सोजत रामद्वारा के रामस्नेही संत श्री मुमुक्षु रामजी महाराज ने कहीं। दूसरे दिन नारद व्यास संवाद, श्री शुक्र परीक्षित जन्म, भीष्म उपदेश प्रसंग का वाचन हुआ। कथा में रामस्नेही संत डॉ. रामस्वरूप शास्त्री का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। संत श्री मुमुक्षु रामजी महाराज ने कहा कि उन्होंने कहा कि सेवा हमेशा परमार्थी बन कर करनी चाहिए। जिसके जीवन में परमार्थ आ गया उसका स्वार्थ स्वतः सिद्ध हो जाता है। स्वार्थभाव से कार्य करने वालों की स्थिति माया मिली न राम वाली हो जाती है। प्रबल वहीं होता है जो निर्बल को सहयोग करे। दान करने से कलयुग में जीव को शांति मिलती है। उन्होंने कहा कि हम जैसा अन्न खाते वैसा हमारा मन होता और जैसा पानी पीते वैसी हमारी वाणी हो जाती है। हमेशा अपनी संस्कृति के अनुरूप हमारा जीवन आचरण होना चाहिए। उन्होंने गंगासागर तीर्थ का महत्व बताते हुए कहा कि सारे तीर्थ बार-बार गंगासागर एक बार। तीर्थयात्रा करने से जीवन में पुण्य की प्राप्ति होती है ओर कष्ट दूर होते है। संत श्री मुमुक्षु रामजी महाराज ने कहा कि सर्वोतम भक्त वह होता है जिसे प्रभु से कुछ नहीं चाहिए। जो मांगते है उसे कोई नहीे बुलाना चाहते और जो नहीं मांगता उसे सभी बुलाना चाहते है। भीष्म पितामह, महात्मा विदुर उस श्रेणी के भक्त रहे जिन्होंने कभी प्रभु से कुछ नहीं मांगा। सुख में तो सब साथी होते है दुःख में केवल परमात्मा ही साथी होता है।

श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव में दूसरे दिन शिव पार्वती विवाह प्रसंग आया तो माहौल उल्लासपूर्ण हो गया। शिव पार्वती की सजीव झांकी आकर्षण का केन्द्र रही। बारात के शिव पार्वती मंच पर पहुंचे तो जयकारे गूंजने लगे ओर बाराती जमकर नृत्य करते रहे। कथा में सैकड़ो श्रद्धालु चार घंटे तक संगीतमय भक्तिरस में डूबकियां लगाते रहे। श्रीमद् भागवत कथा वाचन के दौरान बीच-बीच में भजनों की गंगा प्रवाहित होती रही।

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