सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चरित्र ही मोक्ष का मार्ग

सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चरित्र ही मोक्ष का मार्ग
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भीलवाड़ा ! आचार्य सुन्दर सागर ने धर्मसभा को सम्बोधित करते हुये अपने उद्बोधन में बताया कि सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चरित्र ही मोक्ष का मार्ग है। सम्यक् दर्शन अर्थात् धर्म को जानना, सम्यक ज्ञान अर्थात् धर्म को मानना और सम्यक चरित्र जाने-माने हुए धर्म मार्ग की ओर बढ़ना। इन तीनों के समावेश के बाद व्यक्ति को निश्चित ही मोक्षप्रशस्त हो जाता है। देव शास्त्र गुरू व धर्म के प्रति सच्ची श्रद्धा रखना चाहिये। आत्मा को परमात्मा की आवश्यकता होगी। मोक्ष की प्राप्ति के लिए हमें अहिंसा, सत्य, अस्तेप, ब्रहचर्य और अपरिग्रह का मार्ग अपननाना होता है। मोक्ष का अर्थ है आत्मा द्वारा अपना और परमात्मा का दर्शन करना। भगवान की कृपा उन्हीं आत्माओं पर होती है, जिन्होंने में रहते हुए अच्छे कर्म किए है। कषाय (क्रोध, मान, माया एवं लोभ)के कारण कर्म आत्मा को बांधता है। जिस व्यक्ति के सारे कर्म कामना और संकल्प से रहित होते है। उसी को मोक्ष प्राप्ति होती है। कर्म दुष्प्रवृतियों से छुटकारा पा लेना, ज्ञान द्वारा भव बंधनों से मुक्ति पालना ही मोक्ष है। जिसमें राग, द्वेष, अहंकार, ममकार आदि नहीं पाये जाते वे ही वास्तव में भगवान है। आत्म कल्याण का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए आत्म सुधार, आत्म निर्माण और आत्म विकास की प्रक्रिया को अपनाना आवश्यक हे। जब भी किसी व्यक्ति को आत्म साक्षात्कार हो जाता है, वह मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।

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