श्रावण मास विशेष...उज्जैन के राजा बाबा महाकाल इसीलिए सवारी भी निकलती है दिव्य और भव्य
श्रावण भादो मास में बाबा महाकाल की सवारी कब से निकाली जा रही है। इस सवारी का इतिहास क्या है और सवारी में निकलने वाले स्वरूप कौन-कौन से होते हैं। इसको श्री महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा ने विस्तार से बताया।
वैसे तो श्रावण मास में 12 ज्योतिर्लिंगों व अन्य शिव मंदिरों सभी स्थानों पर भगवान शिव की सवारी धूमधाम से निकल जाती है। लेकिन धार्मिक नगरी उज्जैन में विराजित कालों के काल बाबा महाकाल जो कि उज्जैन के राजा हैं। इसीलिए उनकी सवारी दिव्य और भव्य रूप से निकाली जाती है। श्रावण भादो मास में बाबा महाकाल की सवारी कब से निकाली जा रही है। इस सवारी का इतिहास क्या है और सवारी में निकलने वाले स्वरूप कौन-कौन से होते हैं, इसको लेकर जब श्री महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा से अमर उजाला ने विशेष चर्चा की तो उन्होंने सवारी के बारे में कुछ इस प्रकार विस्तार से बताया।
विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा ने बताया कि जैसे-जैसे संसार की व्यवस्था में बढ़ोतरी हुई, वैसे ही सनातन व्यवस्था को भी इसके साथ बढ़ाया गया, जिससे धर्म स्थापित हो और हमेशा कायम रहे। श्रावण मास में निकाली जाने वाली भगवान शिव की सवारी के बारे में बताया कि गर्भगृह से पवित्र कुंड तक भगवान शिव की सवारी अनेक स्थानों पर निकाली जाती है, जिसमें यह सवारी पवित्र कुंड तक पहुंचती है। जहां उनका पूजन-अर्चन किया जाता है और उसके बाद भगवान की यह प्रतिमाएं वापस गर्भगृह में आ जाती है। लेकिन उज्जैन में भगवान महाकाल को यहां का राजा माना जाता है। इसीलिए उनका नगर भ्रमण करवाया जाता है।
यहां सभी भक्तों को उनके दर्शन होते हैं और अन्य मंदिरों में भी बाबा महाकाल के विभिन्न स्वरूपों का पूजन अर्चन किया जाता है, जिसके कारण इस सवारी की दिव्यता सभी स्थानों से अलग भव्य और दिव्य होती है। साथ ही इसका महत्व भी अलग है। बाबा महाकाल की यह सवारी अति प्राचीन है। इसका कोई इतिहास नहीं है। हजारों वर्ष पूर्व यह प्रथाएं प्रारंभ हुई होगी। ओंकारेश्वर पर भगवान नर्मदा तट पर आकर नौका विहार करते हैं, जहां उनका पूजन-अर्चन किया जाता है और फिर मंदिर के गर्भगृह में चले जाते हैं।
ऐसा ही नासिक के त्रयम्बकेश्वर महादेव मंदिर पर भी होता है। जहां पर भगवान की प्रतिमा मंदिर के पास स्थित जलाशय तक पहुंचती है। जहां उनका पूजन अर्चन होता है। लेकिन उज्जैन में बाबा महाकाल की सवारी भव्य रूप से नगर भ्रमण करती है। यहां श्रावण भादो मास की सवारी निकलती है, जो कि श्रावण में शैव मत को मानने वाले लोगों के अनुसार निकाली जाती है। श्रावण भादो मास के अलावा बाबा महाकाल की दो सवारी कार्तिक मास में और दो सवारी अगहन मास में भी निकाली जाती है, जिसे वैष्णव धर्म को मानने वाले लोगों के लिए निकाला जाता है।
इन सवारियों के अलावा बाबा महाकाल दशहरे पर भी नए शहर फ्रीगंज में अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए वर्ष में एक बार यहां के भक्तों को दर्शन देने के लिए आते हैं। यही नहीं उज्जैन में माता पार्वती की भी एक सवारी धूमधाम से निकल जाती है, जो कि बाबा महाकाल के आंगन से शुरू होकर रामघाट तक पहुंचती है और फिर प्रमुख मार्ग से होते हुए यह मंदिर पहुंचती है। इस सवारी में माता पार्वती उमा सांझी के स्वरूप में भक्तों को दर्शन देती है। कुल मिलाकर बाबा महाकाल की सवारियां शिव और शक्ति दोनों का प्रतीक होती है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव बड़ा रहे सवारी की लोकप्रियता
बाबा महाकाल की सवारी में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा लोक नृत्य पुलिस बैंड की प्रस्तुति के साथ 1500 डमरू के वर्ल्ड रिकॉर्ड के नए-नए तरीकों को लेकर जब पंडित महेश पुजारी से पूछा गया कि इस तरह के आयोजनों से बाबा महाकाल की सवारी की परंपरा और भव्यता में तो कोई परेशानी नहीं होती है तो उनका कहना था कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सनातन धर्म की व्यवस्था को सदैव बढ़ाते रहे हैं। उन्होंने बाबा महाकाल की सवारी में भी दिव्यता लाने का प्रयास किया है।