भीलवाड़ा में बिहार-यूपी की महिलाएं मनाएंगी छठ — गांव जैसी ही भक्ति, पर भावनाएं और गहरी

भीलवाड़ा (हलचल)।
लोक आस्था का पर्व छठ न केवल पूजा या व्रत है, बल्कि यह मां की ममता, त्याग और अटल विश्वास का प्रतीक है। इस पर्व में महिलाएं सूर्य देव और छठी मैया की आराधना कर अपने परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की दीर्घायु और घर के कल्याण की कामना करती हैं।
चार दिन की तपस्या — आत्मशुद्धि की साधना
छठ पर्व चार दिनों तक चलता है —
1️⃣ नहाय-खाय से शरीर और मन की पवित्रता की शुरुआत,
2️⃣ खरना में उपवास और भक्ति का प्रथम अनुभव,
3️⃣ संध्या अर्घ्य में अस्त होते सूर्य को नमन,
4️⃣ उषा अर्घ्य में उगते सूर्य का वंदन।
यह चार दिनों की तपस्या न केवल संयम सिखाती है बल्कि आत्मबल, धैर्य और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।
👩🦰 भीलवाड़ा में छठ — परंपरा और प्रवास का संगम
भीलवाड़ा में बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से आकर रहने वाली सैकड़ों महिलाएं छठ को उसी भक्ति भाव से मनाती हैं जैसे अपने गांव में। शहर के तालाब और सरोवर इन दिनों मिनी बिहार की झलक दिखा रहे हैं — गीत, लोकभाषा और भावनाओं से भरपूर माहौल।
अनीता देवी ( बिहार) कहती हैं —
> “भीलवाड़ा में रहते हुए भी हम छठ में खुद को गांव से जुड़ा महसूस करते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां तालाबों पर भीड़ कम होती है, पर श्रद्धा उतनी ही गहरी। जब सूर्य को अर्घ्य देती हूं, तो मन में वही भाव उठते हैं — जैसे गांव के गंगा में जल चढ़ा रही हूं।”
आरती मिश्रा (गोरखपुर, यूपी) बताती हैं
> “गांव में पूरा मोहल्ला साथ होता था, हर घर से लोकगीतों की आवाज़ आती थी। यहां अपार्टमेंट में रहकर भी सभी महिलाएं मिलकर पूजा करती हैं। यह पर्व हमें जोड़ता है — अपनेपन का एहसास दिलाता है।”
अर्चना का कहना है —
> “भीलवाड़ा में छठ करना हमारे लिए गर्व की बात है। हम अपने बच्चों को बताते हैं कि यह केवल पूजा नहीं, बल्कि त्याग, श्रम और आस्था की मिसाल है। बिना जल ग्रहण किए दो दिन का व्रत आत्मबल को परखता है — यही इसकी शक्ति है।”
इंदिरा (बलिया, यूपी) मुस्कुराते हुए कहती हैं —
> “गांव में छठ घाट पर महिलाओं के गीत और हंसी गूंजती थी, यहां भीलवाड़ा के तालाबों पर दीपों की कतारें वही आस्था बिखेरती हैं। फर्क बस इतना है कि गांव में रिश्तेदारों के साथ करते थे, यहां समाज के साथ।”
🌅 गांव और शहर का फर्क, पर आस्था वही
गांव में जहां पोखरे और नदियों के किनारे पूरी बस्ती जुटती है, वहीं भीलवाड़ा में महिलाएं तालाबों और सोसाइटी के परिसर में सजावट कर सामूहिक रूप से पूजा करती हैं। गांव का लोकसंगीत अब मोबाइल स्पीकर से बजता है, पर भक्ति का स्वर वही पुराना है — आत्मा को शुद्ध करने वाला।
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🌞 छठ से मिलने वाली सीख और बल
यह पर्व सिखाता है कि संयम ही सबसे बड़ी शक्ति है।
त्याग में भी सुख होता है, जब परिवार की मंगल कामना के लिए मां बिना जल ग्रहण किए दो दिन तक व्रत रखती है।
यह पर्व सकारात्मक ऊर्जा, आत्मविश्वास और आत्मनियंत्रण का पाठ पढ़ाता है।
समाज को जोड़ता है — सांस्कृतिक जड़ों से और एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति से।
🌼 आस्था की लौ कायम रहे
भीलवाड़ा में अनीता, आरती, अर्चना और इंदिरा जैसी सैकड़ों महिलाएं इस पर्व को गांव जैसी ही श्रद्धा से निभा रही हैं। उनके लिए छठ केवल पूजा नहीं — एक स्मृति, एक संस्कार और अपनेपन की डोर है, जो हर साल उन्हें अपनी मिट्टी से जोड़ देती है।
