भागवत कथा:भगवान शिव और माता पार्वती का अद्भुत विवाह हुआ,भगवान कृष्ण की बांसुरी पर राधे ने किया नृत्य।

∈शिव पार्वती और राधे कृष्ण की सुंदर आकर्षक झांकी प्रस्तुत
∧.मंत्रमुग्ध हुए श्रद्धालु आनंदमय होकर झूम उठे
शाहपुरा@(किशन वैष्णव)ब्रम्हलीन हुए महंत रामेश्वर दास महाराज खामोर के भंडारे को लेकर 13 से 19 मार्च तक चल रही श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन कथा वाचक महंत अनूज दास महाराज ने शिव विवाह का प्रसंग सुनाया।प्रसंग बताते हुए महंत श्री ने कहा कि यह पवित्र संस्कार है,लेकिन आधुनिक समय में प्राणी संस्कारों से दूर भाग रहा है।

जीव के बिना शरीर निरर्थक होता है,ऐसे ही संस्कारों के बिना जीवन का कोई मूल्य नहीं होता।भक्ति में दिखावा नहीं होना चाहिए।जब सती के विरह में भगवान शंकर की दशा दयनीय हो गई,सती ने भी संकल्प के अनुसार राजा हिमालय के घर पर्वतराज की पुत्री होने पर पार्वती के रुप में जन्म लिया। पार्वती जब बड़ी हुईं तो हिमालय को उनकी शादी की चिंता सताने लगी। एक दिन देवर्षि नारद हिमालय के महल पहुंचे और पार्वती को देखकर उन्हें भगवान शिव के योग्य बताया। इसके बाद सारी प्रक्रिया शुरु तो हो गई,लेकिन शिव अब भी सती के विरह में ही रहे।ऐसे में शिव को पार्वती के प्रति अनुरक्त करने कामदेव को उनके पास भेजा गया, लेकिन वे भी शिव को विचलित नहीं कर सके और उनकी क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए। इसके बाद वे कैलाश पर्वत चले गए। तीन हजार सालों तक उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की। इसके बाद भगवान शिव का विवाह पार्वती के साथ हुआ। कथा स्थल पर भगवान शिव और माता पार्वती के पात्रों का विवाह कराया गया।विवाह में सारे बाराती बने और खुशिया मनाई। नन्हे मुन्ने बच्चो को राक्षसो की टोली के पात्र बनाया।कथा में भूतों की टोली के साथ नाचते-गाते हुए शिवजी बारात आए। बारात का भक्तों ने पुष्पवर्षा कर स्वागत किया। शिव-पार्वती की सचित्र झांकी सजाई गई। विधि-विधान पूर्वक विवाह सम्पन्न हुआ। महिलाओं ने मंगल गीत गाए और विवाह की रस्म पूरी हुई। महाआरती की गई।वही कथा में हमीरगढ़ के महंत रामसागर दास महाराज ने राधे और कृष्ण की झांकी तैयार कर राधे को कृष्ण की बांसुरी पर नृत्य करवाया। ऐसी सजीव चित्रण देख कर श्रद्धालु आश्चर्य चकित हो गए।