चातुर्मास, धार्मिक महत्व, नियम और प्रभाव
चातुर्मास, जो देवशयनी एकादशी से शुरू होकर देवउठनी एकादशी तक चलता है, हिन्दू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवधि है. यह अवधि 17 जुलाई 2024 से शुरू होकर 12 नवंबर 2024 तक चलेगी. 13, 14 और 15 जुलाई विवाह के नक्षत्र हैं. मगर, भद्रा के अलावा राहु, मृत्यु वाण और लग्न दोष होने के कारण शादी के लिए ये उत्तम नहीं है. 17 जुलाई को देवशयनी यानी हरिशयनी एकादशी को भगवान विष्णु शयन करने चले जायेंगे और चातुर्मास शुरू हो जायेगा.
महत्व
चातुर्मास सृष्टि के चक्र का प्रतीक है, जहाँ भगवान विष्णु के विश्राम के दौरान भगवान शिव सृष्टि का संचालन करते है. यह आत्मनिरीक्षण, आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष प्राप्ति का उत्तम अवसर है. चातुर्मास में किए गए धार्मिक अनुष्ठानों से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है. इस अवधि में देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है.
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार
स्मृति ग्रंथ: चातुर्मास के धार्मिक महत्व और नियमों का उल्लेख अनेक स्मृति ग्रंथों में मिलता है, जैसे कि हरिवंश पुराण, पद्म पुराण और स्कंद पुराण.गीता: भगवद्गीता में भी चातुर्मास के महत्व का उल्लेख मिलता है, जहाँ भगवान कृष्ण स्वयं को अनंत और अविनाशी बताते हैं, जो चातुर्मास के दौरान भी सृष्टि का संचालन करते रहते हैं.
राशियों पर प्रभाव
कर्क राशि: वैवाहिक जीवन में सुख, आय में वृद्धि, योजनाओं में सफलता.कुंभ राशि: पुराने निवेश से लाभ, नौकरी में तरक्की, मानसिक तनाव से मुक्ति, व्यापार में वृद्धि.
मिथुन राशि: आर्थिक स्थिति में सुधार, मांगलिक कार्यों में सफलता, प्रेम जीवन में मधुरता, करियर में लाभ.
कन्या राशि: धन आगमन में वृद्धि, पैतृक संपत्ति से लाभ, जॉब के अवसरों में वृद्धि
आधुनिक युग में चातुर्मास
आधुनिक युग में चातुर्मास को आध्यात्मिक चेतना और आत्मिक विकास का माध्यम माना जाता है. इस अवधि में अनेक सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जैसे कि गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता, रक्तदान शिविर आदि. चातुर्मास में पर्यावरण संरक्षण के लिए भी अनेक पहल की जाती हैं, जैसे कि वृक्षारोपण, जल संरक्षण आदि.