कष्टों का होगा अंत: हर सोमवार इस नियम को अपनाएं

हर सोमवार इस नियम को अपनाएं
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शास्त्रों में भगवान शिव की मूर्ति व शिवलिंग पर जल चढ़ाने के महत्व को समुद्र मंथन से जोड़ा गया है। इसमें बताया गया कि जब अग्नि के समान विष पीने के बाद शिव शंकर का कंठ एकदम नीला पड़ गया था तो विष की जलन को शांत करने के लिए भोलेभंडारी को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल-अर्पण किया। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व माना है। शिव स्वयं जल हैं। शिवपुराण में कहा गया है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इससे जुड़ा श्लोक इस प्रकार है-

संजीवनं समस्तस्य जगतः सलिलात्मकम्‌। भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मनः॥

अर्थात- इस श्लोक का अर्थ है जो जल समस्त जगत के प्राणियों में जीवन का संचार करता है वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। इसीलिए जल का अपव्यय नहीं वरन उसका महत्व समझकर उसकी पूजा करनी चाहिए।

शिवलिंग पर चढ़ा हुआ जल, जो अभिषेक के बाद बहता है। वे मात्र जल नहीं है, बल्कि नवग्रहों से मिलने वाले कष्टों का अंत है। उसे शरीर के तीन भागों पर लगाने से ग्रह कभी पीड़ा नहीं देते।

नेत्रों पर लगाने से दृष्टि पवित्र और तेजस्वी होती है।

कंठ पर लगाने से वाणी मधुर और प्रभावशाली बनती है।

शरीर पर धारण करने से चित्त शांत रहता है, बुद्धि निर्मल और कुशाग्र होती है।

हर सोमवार इस नियम को अपनाएं, देवों के देव महादेव स्वयं आपकी रक्षा करेंगे।

शिवलिंग पर जल चढ़ाने की सही विधि



शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय इस बात का खास ध्‍यान रखें की मुख हमेशा दक्षिण दिशा की ओर हो। ये दिशा सबसे शुभ मानी गई है। इस दिशा में जल चढ़ाने से मन की हर इच्छा पूरी होती है।

भूलकर भी शिवलिंग पर जल पूर्व दिशा की ओर मुख करके न चढ़ाएं। इस दिशा में जल चढ़ाने से शिव जी नाराज हो सकते हैं।

शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय मुख उत्तर और पश्चिम दिशा में भी नहीं होना चाहिए। इन दिशाओं में मुख करके जल चढ़ाने से पूरा फल नहीं मिलता।

शिवलिंग पर जल्‍दी से जल न चढ़ाएं बल्कि एक छोटी धारा बनाकर जल चढ़ाएं।

शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय किस मंत्र का जाप करना चाहिए

भगवान शिव को जल चढ़ाते समय इस 1 खास मंत्र का जाप किया जाए तो इसका फल कई गुणा ज्यादा मिलता है।

मंत्र- ॐ नमः शिवाय

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