भीलवाड़ा में बिहार और यूपी की महिलाएं 13 सितंबर से नहाय-खाय से शुरू करेंगी जितिया व्रत, 15 सितंबर को होगा पारण

भीलवाड़ा हलचल ,राजस्थान के भीलवाड़ा में रहने वाली उत्तर प्रदेश और बिहार की महिलाएं इस वर्ष जितिया व्रत, जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है, 13 सितंबर से शुरू करेंगी। यह व्रत माताओं द्वारा अपनी संतान की लंबी उम्र, सुरक्षा और समृद्धि के लिए रखा जाता है। इस पर्व की शुरुआत 13 सितंबर को नहाय-खाय के साथ होगी, 14 सितंबर को निर्जला व्रत रखा जाएगा, और 15 सितंबर को नवमी तिथि में व्रत का पारण किया जाएगा।
जितिया व्रत का शुभ मुहूर्त और विधि
पंचांग के अनुसार, जितिया व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल अष्टमी तिथि 14 सितंबर 2025 को सुबह 5:04 बजे शुरू होगी और 15 सितंबर को सुबह 3:06 बजे समाप्त होगी। नहाय-खाय 13 सितंबर को सप्तमी तिथि पर होगा, जिसमें महिलाएं नदी या तालाब में स्नान कर भगवान जीमूतवाहन की पूजा करेंगी। इस दौरान सरसों का तेल, झिमनी के पत्ते, और खल्ली का उपयोग पूजा में किया जाता है।
14 सितंबर को ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4:33 से 5:19 बजे) में ओठगन के बाद निर्जला व्रत शुरू होगा। व्रत के दौरान माताएं बिना पानी पिए भगवान जीमूतवाहन की पूजा और आराधना करेंगी। 15 सितंबर को सुबह 6:15 बजे अष्टमी तिथि समाप्त होने के बाद नवमी तिथि में स्नान और तुलसी में जल अर्पित कर व्रत का पारण किया जाएगा।
जितिया व्रत का महत्व
हिंदू शास्त्रों में जितिया व्रत को सबसे कठिन और महत्वपूर्ण व्रतों में से एक माना जाता है। यह व्रत माताओं की संतान के प्रति ममता और समर्पण का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को सच्चे मन से करने पर संतान की आयु बढ़ती है, और भगवान श्रीकृष्ण उनकी रक्षा करते हैं। भविष्य पुराण में भी इस व्रत का उल्लेख है, जो संतान की सुरक्षा और कल्याण के लिए अत्यंत प्रभावी माना गया है।
नहाय-खाय में खास व्यंजन
जितिया व्रत के नहाय-खाय में विशेष व्यंजनों का महत्व है। इस दिन महिलाएं सात्विक भोजन जैसे मूंग दाल, चावल, और कद्दू की सब्जी तैयार करती हैं, जो शुभता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। ये व्यंजन न केवल पवित्रता को दर्शाते हैं, बल्कि परिवार की खुशहाली की कामना को भी मजबूत करते हैं।
सामाजिक और धार्मिक संदेश
जितिया व्रत न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह मातृत्व की उस भावना को भी उजागर करता है, जो अपनी संतान के लिए हर कठिनाई सहन करने को तैयार रहती है। भीलवाड़ा में यूपी और बिहार की महिलाएं इस व्रत को पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाएंगी, जो उनके सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों को जीवंत रखता है।
यह पर्व समाज को यह संदेश भी देता है कि परिवार और संतान का कल्याण हर मां की प्राथमिकता होती है, और यह व्रत उस प्रेम और त्याग का प्रतीक है।
