श्री चारभुजा नाथ की 24 अवतारों सहित दुर्लभ प्रतिमा जाने कहां स्थित है

श्री चारभुजा नाथ की 24 अवतारों सहित दुर्लभ प्रतिमा जाने कहां स्थित है
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चारभुजा नाथ मंदिर, गांव – कोटड़ी, तहसील – अरनोद, जिला - प्रतापगढ़ राजस्थान ।

चारभुजा नाथ जी का एक ऐतिहासिक एवं प्राचीन वैष्णव हिन्दू मन्दिर, जो राजस्थान के कांठल अंचल में प्रतापगढ़ जिले की दक्षिण-पूर्व दिशा में 37 कि.मी. दूर स्थित अरनोद तहसील के गाँव कोटडी में स्थित है। जो कि प्राचीन समय से ही अपनी व्यापारिक समृद्धि के लिए सुपरिचित है। यह दलौदा (मध्य प्रदेश) से 35 कि.मी., तथा राजस्थान-मध्य प्रदेश सीमा पर प्रसिद्ध मालवा-कांठल का जाना–माना तीर्थ श्री होरी हनुमान जी मंदिर से मात्र 2 कि.मी., की दूरी पर स्थित हैं। जहां चारभुजा जी की बड़ी ही पौराणिक चमत्कारी प्रतिमा हैं।

यहां विराजित महाभारत कालीन श्रीचारभुजा जी का अति प्राचीन श्री विग्रह (प्रतिमा) है, जिसमें श्री त्रिलोकी के नाथ श्री चारभुजा नाथ अपने 24 अवतारों सहित साक्षात विराजमान है ।

कोटड़ी गाँव कि यह श्री चारभुजा जी कि प्रतिमा दशावतार विष्णु प्रतिमा है ।

डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव कि 1998 में प्रकाशित संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश कि पुस्तक “प्राचीन भारतीय देव-मूर्तियाँ (प्रतिमा लक्षण – सम्बन्धी विवेचन)” में बताया गया है कि दशावतार विष्णु की मूर्तियों प्राय उत्कीर्ण फलक के रूप में ही मिलती है। गुप्तकाल तथा प्रारम्भिक मध्यकाल से ही ऐसे मूर्ति फलक मिलने लगे थे। इनमे मध्य मे विष्णु की चतुर्भुजी मूर्ति समपाद स्थानक मुद्रा मे तथा उनके पाशर्वों मे और प्रभामण्डल के चतुर्दिक परिकर मे उनकी अवतार मूर्तियो को उकेरा गया था। गुप्तकाल में विष्णु का दशावतार रूप अत्यन्त लोकप्रिय रहा है ।

श्री चारभुजा नाथ कि 24 अवतारों सहित दुर्लभ प्रतिमा :-

मालवा-कांठल के गांव–कोटड़ी में 175 साल पुराना प्राचीन श्री कृष्ण मंदिर बना हुआ है। यहां श्री चारभुजा नाथ का मंदिर बेहद ऐतिहासिक है। यह प्रतिमा 175 वर्ष पहले यहाँ प्रवाहित प्राचीन रोजड़ नदी के गहरे पेटे के अंदर कुएं मे से प्रकट हुई थी । शंख, चक्र, गदा व पद्म धारी श्री चारभुजा नाथ जी के दर्शन कर हर कोई धन्य अनुभूत करता है। जिसमे मध्य में चतुर्भुज स्वरुप श्री ठाकुरजी तथा उनके पाशर्वों मे और प्रभामण्डल के चतुर्दिक परिकर मे उत्कीर्ण फलक के रूप में उनकी अवतार मूर्तियो को उकेरा गया है।

भगवान श्री चारभुजा जी कि यह प्रतिमा काले पाषाण से बनी हुई है, जो कि कसौटी नामक पाषण से बनी है जिसे स्वर्णकार (सोनी) लोग सोने को परखने के लिए प्रयोग करते है ।

राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित राजस्थान का अंतिम गांव कोटड़ी जो प्रतापगढ़ जिले की अरनोद तहसील के अंतर्गत आता है। यहां विराजित हैं, दशावतार अति दुर्लभ श्री चारभुजा जी का अलौकिक, अद्भुत, चमत्कारी स्वयंभू श्री विग्रह (प्रतिमा)। जहां परमपिता परमेश्वर श्री त्रिलोकिनाथ साक्षात स्वयं विराजते है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में स्थित है भगवान विष्णु की चार भुजाओं वाली मूर्ति, जिसे एक ही काले पत्थर से तराशा गया है। यह प्रतिमा “भगवान चारभुजा नाथ” के रूप में प्रसिद्ध है और इस प्रतिमा को निहारना किसी चमत्कार से कम नहीं लगता। ऐसा माना जाता है कि इस प्रतिमा की दृष्टि से एक आध्यात्मिक आकर्षण और मानसिक शांति की अनुभूति होती है।

यह कोटड़ी श्री चारभुजा नाथ कि प्रतिमा उदयपुर के जगदीश मंदिर में विराजित ठाकुरजी श्री जगन्नाथ भगवान से मिलती जुलती है। तथा दोनों प्रतिमाओं के प्रकट होने कि कथा लगभग सामान है। इस प्रतिमा और मंदिर के पीछे एक अत्यंत चमत्कारिक और प्राचीन इतिहास रहा है जो राजसमंद के गढ़बोर चारभुजा, उदयपुर के जगदीश मंदिर तथा नाथद्वारा के श्रीनाथजी की कहानियों से मेल खाती है।

श्री चारभुजा जी कि यह प्रतिमा इस प्राचीन रोजड़ नदी में कब, कैसे और किन परिस्थितियों में आई होगी ? प्रभु श्री ठाकुर जी की प्रतिमा का इस से पूर्व वास्तविक मंदिर किस स्थान पर रहा होगा? और कब बना होगा? ये इतिहास के गर्भ में है इसका कोई लिखित और अन्य प्रमाण नहीं है। हो सकता है पूर्व में कोई भव्य मंदिर हो, क्योंकि यह प्राचीन रोजड़ नदी, गांव कोटड़ी और पास के ही गाँव निनोर तीनो महाभारत कालीन अति प्राचीन है । जिसकी कई किवंदितियां और कहानियां यहाँ के स्थानीय क्षेत्र में प्रचलित है । कई ऐतिहासिक संकेतों तथा विभिन्न स्थानों पर भग्नावशेष बिखरे पड़े होना गांव की बसावट, नदी किनारे होना इस बात का प्रतिक है कि यह गाँव कोटड़ी तथा रोजड़ नदी अती प्राचीन है।

इतिहास में इस बात के प्रमाण कई जगह मिलते है कि, हो सकता है बाहरी आक्रमणकारी देव मंदिरों तथा मूर्तियों को नुकसान पहुंचा सकते थे, प्रतिमा खंडन कर सकते थे, इन सब को देखते हुए प्रभु प्रतिमा को सुरक्षित रखने के लिए नदी के गहरे जल में रखा गया होगा ।

👉🏻 स्थापना पूर्व का इतिहास :-

कोटड़ी गाँव में निवास करने वाले बुजुर्ग लोग बताते है कि यहां पर आज से लगभग 175 वर्ष पूर्व चारभुजा नाथ भगवान की इस प्रतिमा के बारे मे पता चला, तो रोजड़ नदी के अंदर कुएं मे से भगवान श्रीचारभुजा नाथ की यह प्रतिमा प्रकट हुई ।

आज के लगभग 175 वर्ष पूर्व मध्य प्रदेश मालवा के ठिकरिया गांव के तात्कालिक ठाकुर साहब जो मूलतः सरवन गांव के थे। वे स्वयं भगवत प्रेमी व्यक्तित्व के धनी थे तथा कृष्ण भक्त थे।

जिन्हे प्रशासन और राज काज के लिए कई बार बाहर जाना पड़ता था। एक बार ठिकरिया प्रवास के दौरान अपने ठाकुर जी की सेवा से दूरी व श्री ठाकुर सेवा में कही कमी ना रह गई हो ये विचार कर के वे थोड़े व्यथित थे।

तब भगवान श्री चारभुजा नाथ ने स्वप्न में दर्शन दिए । और कहा के आपकी भक्ति देख हम प्रसन्न है तुम सेवा नहीं कर पाने से व्यथित हो। यहां गांव ठिकरिया और गांव कोटड़ी के मध्य प्रवाहित रोजड़ में मेरा विग्रह (प्रतिमा) है। यहां नदी कि खुदाई कर मेरी प्रतिमा को निकालकर आप मंदिर निर्माण कर मेरी सेवा करे।

तब अगले दिन आषाढ़ मास में बुधवार के दिन सुबह ठाकुर साहब अपने सैनिकों के साथ रोजड़ नदी में स्वप्न में बताई गई जगह पर गए। रोजड़ नदी का सबसे गहरा हिस्सा जिसे स्थानीय भाषा में छतरीडो कहते है। यह नदी का सबसे गहरा पेटा है, इसके अन्दर गहरा कुआं है। वहां खुदाई करवाई तथा भगवान श्री चारभुजा नाथजी का दुर्लभ श्री विग्रह (प्रतिमा) उन्हें रोजड़ नदी से प्राप्त हुआ। तब बैलगाड़ी मंगवाई गई तथा उस बैलगाड़ी में पहले गन्ने के पत्ते बिछाए गए जिसे मालवी और कांठल की स्थानीय भाषा में वरुंडी कहते हैं जिससे कि बैलगाड़ी में प्रतिमा ले जाते वक्त प्रतिमा को कोई क्षति ना पहुचे । तब प्रतिमा को बैलगाड़ी में इन गन्नों के पत्तो पर विराजित किया गया।

तब यहां से बैलगाड़ी को अपने गांव ले जाकर वहां मंदिर बनाने की मंशा से रवाना किया गया परंतु श्री त्रिलिकीनाथ जी कि इच्छा कुछ और हि थी। गाँव के स्थानीय लोग बताते है कि कुछ दूरी पर चलकर ही कोटड़ी गांव के मध्य में जहां वर्तमान में मंदिर स्थित है । बारिश की वजह से रास्ता भी कच्चा और खराब था वहां गाड़ी का दाहिना पहिया निकल गया। बैलगाड़ी को दुरस्त करने के लिए खाती को बुलाया गया तथा बैलगाड़ी के पहिए को ठीक करवाया गया । बैलगाड़ी का पहिया ठीक होने के बाद भी बैलगाड़ी वहां से नहीं हिली । दो बैलों की जगह पांच बैल और लगाए गए परंतु ये सभी बैल भी गाड़ी नहीं खिसका सके । शायद श्री चारभुजा जी को कुछ और ही मंजूर था ।

ऐसा कहते हैं कि 2 से 3 दिन तक बैलगाड़ी सहित भगवान वही रहे, परन्तु लाख कोशिशों के बाद भी श्री चारभुजा जी कि प्रतिमा और बैलगाड़ी को वहां से आगे नही ले जा सके। ठाकुर साहब तथा उनके साथ सभी व्यक्तियों ने काफी प्रयास किया फिर भी बैलगाड़ी व भगवान के श्री विग्रह (प्रतिमा) को वहां से तनिक भी हिला नहीं सके । तब ठाकुर साहब को ही यह एहसास हुआ कि शायद भगवान यहीं विराजित होना चाहते हैं।

इस स्थिति में गांव के प्रबुद्ध लोगों के सुझाव से तब आज के लगभग 175 वर्ष पहले वही उसी स्थान पर भगवान के श्री विग्रह (प्रतिमा) को गन्नो के पत्तो सहित वहा स्थापित करके श्री चारभुजा जी का छोटा सा मंदिर बना दिया गया। जहां कोटड़ी गाँव में आज स्थापित है ।

भगवान के दिव्य चमत्कार :-

1. अभी वर्तमान समय में वर्ष 2010 में जब मंदिर जीर्णोधार हुआ, तब मंदिर जीर्णोधार के लिए श्री चारभुजा जी कि प्रतिमा को हाथ लगाया गया तब लोगों ने देखा कि 150 वर्ष पूर्व जो गन्ने के पत्ते श्री चारभुजा जी के पीछे बिछाए गए थे वे 150 वर्ष पर्यन्त भी हरे थे। गन्ने के पत्तों का 150 वर्ष तक हरे रहना किसी चमत्कार से कम नहीं था तब लोगों ने ठाकुर जी का चमत्कार साक्षात देखा। इसके बाद श्री चारभुजा जी कि प्रतिमा को किसी ने हाथ नहीं लगाया तथा ठाकुर जी कि प्रतिमा को बिना छुए तथा ठाकुर जी के मूल स्थान को बिना परिवर्तित किये, मंदिर जीर्णोधार किया गया । आज भी ठाकुर जी वही उसी मूलस्थान पर विराजित है जहां आज से 175 वर्ष पूर्व विराजमान किया गया था ।

2. कोटड़ी गाँव के निवासी बताते है कि श्री चारभुजा जी के पूर्व पुजारी जी श्री नन्दराम जी जो कि बुजुर्ग हो गए थे तथा बढती उम्र के कारण काफी बीमार रहने लगे । जब उन्होंने श्री ठाकुर जी की सेवा छोड़ी तब श्री चारभुजा जी कि प्रतिमा के आंसू आ गए थे । श्री ठाकुर जी कि प्रतिमा के आंसू यहाँ के ग्रामीणों ने साक्षात देखे थे ।

3. अभी के वर्तमान पुजारी श्री विष्णुदास जी जो की बुजुर्ग है। 2021 में पुजारी जी कि तबियत ज्यादा हि ख़राब हो गयी थी व बचने की संभावना न के बराबर थी । तब उन्हें यहा कोटड़ी गावं से उदयपुर रैफ़र कर दिया था। उदयपुर में डॉक्टर ने बताया कि इनकी स्थिति काफी गंभीर है तथा बचने की सम्भावना बहुत कम है । पुजारी जी बताते है कि उदयपुर अस्पताल में उस रात्रि में जब वो सो रहे थे तब सांवला सा छोटा बालक उनके पास आया और कहा कि उठो गाँव चलो मेरी सेवा कौन करेगा? जब आँखे खोली तो कुछ नहीं दिखा । वापस आँखे बंद करने पर ऐसा ही फिर हुआ । ऐसा 3 से 4 बार हुआ। तब पुजारी जी ने अपने घर वालो को बताया कि मुझे घर ले चलो । अगले दिन घर वाले डॉक्टर के जवाब के बाद बिना किसी उम्मीद के बड़े दुखी मन से कोटड़ी गावं आ गए। गाँव वाले भी चिन्तित थे के अब क्या होगा। भगवान का चमत्कार देखिये कि जिनकी डॉक्टर ने बचने की उम्मीद नहीं बताई, उन पुजारी जी को गाँव में आते ही श्री चारभुजा जी मंदिर में ले जा कर श्री ठाकुर जी का चरणामृत पिलाया गया। श्री ठाकुर जी की कृपा देखिये की उनके सिर्फ मुह के दांत गिर गए बाकि वो पुर्णतः स्वस्थ हो गए और कल तक जो बिना किसी कि सहायता के उठ भी नहीं पा रहे थे वे आज अपने पैरो पर खड़े हो कर श्री चारभुजा जी कि आरती कर रहे है । पुजारी जी आज तक पुर्णतः स्वस्थ है और श्री ठाकुर जी कि सेवा कर रहे है ।

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