शारदीय नवरात्रि 2025: माँ शैलपुत्री पूजन और घटस्थापना से जगमगाया देश, आस्था का अनोखा संगम

शारदीय नवरात्रि 2025: माँ शैलपुत्री पूजन और घटस्थापना से जगमगाया देश, आस्था का अनोखा संगम
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नई दिल्ली, : शरद ऋतु की पहली किरणों के साथ ही आज से शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व शुरू हो गया है। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि पर माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री की पूजा-अर्चना के साथ ही देशभर में घटस्थापना की धूम मच गई। इस बार नवरात्रि विशेष रूप से 10 दिनों का होने से भक्तों में उत्साह दोगुना है, क्योंकि चतुर्थी तिथि में वृद्धि हो रही है, जो शुभ फलदायी मानी जा रही है। माँ दुर्गा का आगमन हाथी पर हो रहा है, जो समृद्धि और प्रचुरता का प्रतीक है।

घटस्थापना का शुभ मुहूर्त: आस्था की नींव पड़ी सुबह से ही

शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना से होती है, जो माँ दुर्गा के आह्वान का प्रतीक है। वैदिक पंचांग के मुताबिक, प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 22 सितंबर को रात्रि 1 बजकर 23 मिनट पर हुई और यह 23 सितंबर को रात्रि 2 बजकर 55 मिनट तक चलेगी। उदय तिथि के अनुसार, पूजा 22 सितंबर को ही शुरू हुई।

घटस्थापना के लिए प्रमुख शुभ मुहूर्त इस प्रकार रहे:

मुहूर्त का नामसमय (दिल्ली समयानुसार)अवधिप्रातः काल मुहूर्तसुबह 6:09 से 8:06 बजे तक1 घंटा 57 मिनटअभिजीत मुहूर्तदोपहर 11:49 से 12:38 बजे तक49 मिनटनिशिता मुहूर्तरात्रि 11:50 से 12:38 बजे तक48 मिनट

इस मुहूर्त में हस्त नक्षत्र, ब्रह्म योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बन रहा है, जो पूजा को और भी फलदायी बना रहा है। यदि कोई भक्त इन मुहूर्तों में पूजा न कर पाए, तो सूर्योदय से सायंकाल तक भी कलश स्थापना की जा सकती है, लेकिन निषिद्ध समय जैसे चित्रा नक्षत्र या वैधृति योग से बचें।

घटस्थापना की विधि सरल लेकिन पवित्र है। एक मिट्टी या तांबे के कलश में गंगाजल, सुपारी, दूर्वा, अक्षत और सुपारी डालकर, उसके मुख पर आम के पत्ते और नारियल स्थापित करें। कलश के पास जौ बोएं (सप्तधान्य) और मंत्र "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" का जाप करें। यह कलश ब्रह्मांड का प्रतीक है, जो घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। नवरात्रि के नौ (या इस बार दस) दिनों तक इसकी दैनिक पूजा करें।

माँ शैलपुत्री पूजन: शक्ति की पहली किरण

नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की आराधना की जाती है, जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। वे बैल पर सवार, त्रिशूल और कमंडलु धारण किए हुए हैं, जो स्थिरता, धैर्य और मूलाधार चक्र की जागृति का प्रतीक हैं। माँ शैलपुत्री की पूजा से भक्तों को शारीरिक-आध्यात्मिक शक्ति मिलती है।

पूजन विधि:

संकल्प और शुद्धिकरण: स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें, पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।

मूर्ति स्थापना: माँ की मूर्ति या चित्र को लाल आसन पर विराजमान करें।

अर्पण: लाल फूल, चंदन, कुमकुम, अक्षत, गुड़-मिठाई का भोग लगाएं। हरा रंग इस दिन का शुभ रंग है।

मंत्र जाप: "ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः" का 108 बार जाप करें।

आरती और प्रार्थना: दुर्गा सप्तशती पाठ करें और आरती उतारें।

इस पूजा से जीवन के संघर्षों में विजय प्राप्त होती है, जैसा कि भगवान राम ने लंका विजय से पूर्व माँ की आराधना की थी।

देशभर में धूम: गर्भा से लेकर जागरण तक

नवरात्रि 22 सितंबर से 2 अक्टूबर तक चलेगी, जिसमें माँ के नौ रूपों की पूजा होगी। इस बार तृतीया तिथि दो दिनों (24-25 सितंबर) तक रहेगी, इसलिए माँ चंद्रघंटा की पूजा दोहराई जाएगी। गुजरात में गर्भा-डांडिया की धुनें गूंज रही हैं, जबकि बंगाल और बिहार में दुर्गा पूजा पंडाल सज रहे हैं। दिल्ली के सी.बी.डी. ग्राउंड कड़कड़डूमा में बालाजी रामलीला कमेटी ने डांडिया कार्यक्रम आयोजित किया, जहां युवाओं की ऊर्जा ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया।

सोशल मीडिया पर भी उत्साह छाया है। पूर्वी सिंहभूम जेएमएम ने ट्वीट कर नवरात्रि से 'देश विकसित' होने की कामना की, जबकि डॉ. गौतम पाठक ने श्लोकों के साथ शुभकामनाएं दीं। एक यूजर ने लिखा, "नवरात्रि शुरू हो रही है! पहले दिन माँ दुर्गा का आशीर्वाद लें और अपने दिल में positivity भरें।"

व्रत-उपवास के नियम: शक्ति की साधना

नवरात्रि व्रत में सात्विक भोजन लें—फल, दूध, कुट्टू का आटा। व्रत 1 अक्टूबर को पारण करें। कन्या पूजन अष्टमी या नवमी पर होगा। ज्योतिषियों के अनुसार, इस नवरात्रि में मेष, सिंह और धनु राशियों पर विशेष कृपा बरसेगी।

शास्त्र कहते हैं, नवरात्रि बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। माँ दुर्गा की कृपा से सभी विघ्न दूर हों। जय माता दी!

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