शिव चालीसा की महिमा, पाठ विधि और लाभ

शिव चालीसा की महिमा, पाठ विधि और लाभ
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शिव चालीसा की महिमा

शिव चालीसा में भगवान गणेश और भगवान शिव की महिमा का अत्यंत सुंदर वर्णन मिलता है। इसमें महादेव की जटाओं में विराजमान मां गंगा, गले में मुंडमाल, भस्म से विभूषित शरीर और उनके वैराग्य स्वरूप का वर्णन किया गया है। शिव ने देवताओं की रक्षा के लिए समुद्र मंथन के समय विषपान किया और नीलकंठ कहलाए। त्रिपुरासुर जैसे अत्याचारी राक्षसों का संहार कर उन्होंने संसार को भय से मुक्त किया। शिव चालीसा के अनुसार भगवान शिव अपने भक्तों की पुकार तुरंत सुनते हैं, इसी कारण भक्त उन्हें प्रेम से भोले भंडारी कहते हैं। नियमित पाठ से भय, रोग और जीवन के दुखों से मुक्ति मिलने की मान्यता है।

शिव चालीसा पाठ की विधि

हर दिन प्रातः काल स्नान के बाद शांत मन से शिव चालीसा का पाठ करना शुभ माना जाता है। साफ स्थान पर बैठकर भगवान शिव का ध्यान करें और श्रद्धा के साथ पाठ करें। पाठ पूर्ण होने के बाद अपनी मनोकामना प्रेम और विश्वास से भगवान भोलेनाथ के समक्ष रखें। मान्यता के अनुसार शिव चालीसा की रचना विक्रम संवत 1964 अर्थात सन 1907 में मंगसिर मास की छठी तिथि को हेमंत ऋतु में संत अयोध्यादास जी द्वारा लोककल्याण के उद्देश्य से की गई थी।

शिव चालीसा का भावार्थ

शिव चालीसा यह सिखाती है कि भगवान शिव निराकार होते हुए भी सगुण रूप में भक्तों के कष्ट हरते हैं। वे संहारक होने के साथ साथ कल्याणकारी हैं। सच्चे मन, विनम्रता और भक्ति से किया गया स्मरण अहंकार और नकारात्मकता को दूर करता है तथा जीवन में संतुलन और सही मार्ग दिखाता है।

शिव चालीसा के लाभ

शिव चालीसा के नियमित पाठ से मन का भय और भ्रम दूर होता है और मानसिक शांति प्राप्त होती है। तनाव कम होता है और नकारात्मक विचारों से राहत मिलती है। जीवन की परेशानियां और बाधाएं धीरे धीरे समाप्त होने लगती हैं। स्वास्थ्य बेहतर रहता है और रोगों से बचाव होता है। आर्थिक स्थिति में सुधार आता है और गरीबी के प्रभाव कम होते हैं। आत्मविश्वास और साहस बढ़ता है। श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ करने पर मनोकामनाओं की पूर्ति होने की मान्यता है।




जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

॥चौपाई॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥

मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥

मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥

पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥

अयोध्यादास आस कहैं तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥दोहा॥

नित्त नेम उठि प्रातः ही, पाठ करो चालीस।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसिर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

शिव चालीसा के लाभ | Shiv Chalisa Reading Benefits

शिव चालीसा पढ़ने से मन का डर और भ्रम दूर होता है।

मन को शांति मिलती है और तनाव दूर होता है।

सारी परेशानियां और बाधाएं खत्म होने लगती हैं।

सेहत अच्छी रहती है और रोग नहीं घेरते।

पैसा आता है और गरीबी खत्म होती है।

हिम्मत और खुद पर भरोसा बढ़ जाता है।

सच्चे मन से पाठ करने पर हर मनोकामना पूरी होती है।

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

॥चौपाई॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥

मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥

मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥

पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥

अयोध्यादास आस कहैं तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥दोहा॥

नित्त नेम उठि प्रातः ही, पाठ करो चालीस।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसिर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

शिव चालीसा के लाभ | Shiv Chalisa Reading Benefits

शिव चालीसा पढ़ने से मन का डर और भ्रम दूर होता है।

मन को शांति मिलती है और तनाव दूर होता है।

सारी परेशानियां और बाधाएं खत्म होने लगती हैं।

सेहत अच्छी रहती है और रोग नहीं घेरते।

पैसा आता है और गरीबी खत्म होती है।

हिम्मत और खुद पर भरोसा बढ़ जाता है।

सच्चे मन से पाठ करने पर हर मनोकामना पूरी होती है।

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