धर्म जब आचरण में उतर जाता है तो अमृत बन जाता : प्रवर्तिनी डॉ.दर्शनलता

आसींद (सुरेंद्र संचेती)
धर्म वो साधना है जिसमें रोग रहित तन मिलता,द्वेष रहित मन मिलता,क्लेश रहित वचन मिलता, हिंसा रहित जीवन मिलता है। धर्मस्थान एक वर्कशॉप के समान है जहां पर आत्मा रूपी मशीन को ठीक किया जाता है। जिनवाणी का श्रवण पानी के समान है, जिनवाणी का मनन करना मक्खन के समान है, जिनवाणी को आचरण में उतारना अमृत के समान है। उक्त विचार प्रवर्तिनी डॉ दर्शन लता म.सा. ने महावीर भवन के प्रवचन हाल में धर्मसभा में व्यक्त किए।
साध्वी ने कहा कि अधिकांश व्यक्ति सब का भला चाहते है, लेकिन स्वयं के भले के लिए भगवान ने जो धर्म की आराधना बताई है उस पर नहीं सोचते है। सारी सुख शांति धर्म में ही समाई हुई है।धर्म के प्रभाव से सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। जिस दिन संसार के प्राणी यह समझ जायेंगे उस दिन पूरे विश्व का कल्याण हो जाएगा।
साध्वी कीर्तिलता म. सा.ने कहा कि सभी जीव खुश रहना चाहते है। हमें हर परिस्थिति में समान रहना चाहिए। जीवन सुख और दुःख का जोड़ा है। प्रसन्नता चाहने के लिए हमें क्रोध का त्याग करना होगा, जिस समय क्रोध आता है उस समय संभल जाना चाहिए। जब तक धैर्य नहीं होगा तब तक कोई भी काम आसान नहीं होगा। दुःख को सदैव मेहमान की भांति समझे, दुःख कभी भी ज्यादा टिकता नहीं है। जीवन में दुःख आवे उससे पूर्व धर्म की साधना कर लेनी चाहिए। चातुर्मास हेतु विराजित नवदीक्षित संत धैर्य मुनि, धीरज मुनि युवा वर्ग को धर्म से जोड़ने का पूरा प्रयास कर रहे है। चातुर्मास को लेकर श्रावक श्राविकाओ में अपार उत्साह दिखाई दे रहा है। संघ मंत्री अशोक कुमार श्रीमाल ने सभी आगंतुकों के प्रति आभार ज्ञापित किया।