आए दिन आते कार्डियक अरेस्ट के वीडियो, क्या वाकई बढ़ रहे हैं हार्ट अटैक के मामले?

आए दिन आते कार्डियक अरेस्ट के वीडियो, क्या वाकई बढ़ रहे हैं हार्ट अटैक के मामले?
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फुटबॉल के शौकीनों को याद होगा यूरो 2020 मैच के बीच डेनमार्क फुटबॉलर क्रिश्चियन एरिक्सन को दिल का दौरा पड़ा. करीब आधे घंटे मैच रुका रहा. उन्हें मौके पर सीपीआर दिया गया. उनकी जान बच गई. जांच के बाद पता चला कि उन्हें कार्डियोमायोपैथी बीमारी थी. फुटबॉलर फैब्रिस मुअम्बा को साल 2012 में 23 साल की उम्र में पता चला उन्हें कार्डियोमायोपैथी है, जब वह बोल्टन वांडरर्स के लिए खेलते समय गिर गए थे. मुआम्बा का दिल भी कुछ वक्त के लिए रुका रहा लेकिन उनकी जान बच गई.

हर साल लाखों कार्डियक अरेस्ट

ये तो खिलाड़ियों की बात हो गई, लेकिन आए दिन हार्ट अटैक से होने वाली मौत के वीडियो सोशल मीडिया पर दिखाई दे जाते हैं. किसी का दिन खराब होता है, किसी का दिल दुखता है. किसी को डर लगता है, किसी को ये सब भयानक लगता है. भारत में हर साल लगभग 5-6 लाख लोगों की अचानक हुए कार्डियक अरेस्ट से मौत हो रही है. क्या ये आंकड़ा सामान्य है, नया है या गली-गली लगे कैमरे से अब तुरंत वीडियो आ जाता है? कोविड या कोविड की वैक्सीन का असर है, प्रोटीन पाउडर सप्लीमेंट्स, मिलावटी खाना कारण है?

क्या है हार्ट अटैक के केस बढ़ने की वजह?

अपोलो के कंसल्टेंट कार्डियोथोरेसिक डॉ. वरुण धवन कहते हैं कि पिछले तीन सालों में चीन, अमेरिका और कई देशों में हार्ट अटैक पर हुई स्टडी में सामने आया है कि सबकी बॉडी के अंदर बेसलाइन इन्फ्लेमेशन काफी बढ़ गया है. लिपोप्रोटीन और सीआरपी लेवल भी बढ़ रहा है. ये सब काफी लंबे समय तक बढ़े रहते हैं.

वायरल वीडियो से कन्फ्यूजन

फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल फरीदाबाद के डायरेक्टर एंड कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉ. संजय कुमार कहते हैं- हर हाथ में मोबाइल होने की वजह से इस तरह के वीडियो लोगों तक बहुत जल्द पहुंच जाते हैं. सोशल मीडिया पर कई वीडियो कई बार वायरल हो रहे हैं. 4 साल पुरानी वीडियो सोशल मीडिया पर आ जाता है तो लोगों को वह नई लगता है.

वह कहते हैं कि कोविड के बाद इस तरह की घटनाएं थोड़ी सी बढ़ी थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है. वैक्सीनेशन की वजह से शुरुआती दिनों में लोगों को थोड़ी समस्या आई थी, लेकिन उसे हमें बढ़ा-चढ़ाकर नहीं देखना चाहिए. ये कार्डियक अरेस्ट पहले से ही होते आए हैं.

बेसलाइन इन्फ्लेमेशन क्या है?

शरीर के अंदर कहीं ना कहीं सूजन है लेकिन वो दिखाई नहीं देती है. जैसे नसों में सूजन है और सांस की तकलीफ बढ़ रही है. पहले हाइपरटेंशन 60 साल के लोगों में देखा जाता था लेकिन अब 40 से 50 साल के लोगों को भी होने लगा है. कोविड के आफ्टर इफैक्ट्स भी लोगों में दिखाई दे रहे हैं. इसकी वजह से जिन नसों में पहले से सूजन है और कहीं पर ब्लॉक हो जाती हैं तो उसके रप्चर (Rupture) होने के चांसेस भी बढ़ जाते हैं. रप्चर होने के बाद, जहां कभी किसी नस में ब्लॉकेज नहीं भी हुआ था, वो भी तुरंत ब्लॉकेज हो जाती हैं. जिसकी वजह से कार्डियक अरेस्ट हो जाता है.

कार्डियक अरेस्ट और हार्ट अटैक में अंतर

कार्डियक अरेस्ट में दिल अचानक से काम करना बंद कर देता है और कुछ ही मिनटों में व्यक्ति की मौत हो जाती है. जबकि हार्ट अटैक एक ऐसी स्थिति है, जिसमें हार्ट में खून नहीं पहुंचता. नसों में ब्लड फ्लो रुक जाता है और शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. हार्ट अटैक नसों की बीमारी होती है.

डॉ संजय कुमार कहते हैं कार्डियक अरेस्ट का प्रमुख कारण हार्ट अटैक है. लेकिन सारे कार्डियक अरेस्ट हार्ट अटैक से नहीं हो रहे. कार्डियक अरेस्ट होने के कई कारण हैं. कई लोगों को हार्ट की जेनेटिक बीमारियां होने के कारण भी कार्डियक अरेस्ट हो जाता है, जिसको कार्डियोमायोपैथी कहते हैं. कार्डियोमायोपैथी हार्ट की मांसपेशियों की एक बीमारी है, जो हार्ट को उस तरह से काम करने से रोकती है, जिस तरह से उसे करना चाहिए.

डॉ संजय कुमार बताते हैं कि अगर अचानक गिर जाने से 100 लोगों की मौत हो रही है तो उसमें से 70-80 लोगों को हार्ट अटैक आया होगा लेकिन उसमें से 20 ऐसे भी लोग होंगे, जिनकी मौत का कारण कुछ और होगा.

क्यों कमजोर हो रहा दिल?

डॉ वरुण धवन कहते हैं- कोविड का एक्स्पोज़र सभी के साथ हुआ है, पर्यावरण में बदलाव के साथ सभी रह रहे हैं और सभी के डाइट में बदलाव आया है. ऐसे में ज्यादा लोगों को हार्ट की समस्या आ रही है. हमारी प्रोड्यूस की भी जेनेटिक वेरिएशन हुई है, अब हाई प्रोडक्ट्स आने लगे हैं. उसकी वजह से भी कुछ चेंजस हो सकते हैं. हालांकि अभी इसके बारे में कोई स्टडी नहीं आई है.

युवा क्यों हो रहे शिकार?

डॉ संजय कुमार कहते हैं कि हार्ट अटैक के केस अगर बढ़ रहे हैं तो इसमें स्मोकिंग एक बहुत बड़ा कारण है. इसके साथ ही जिम की एक्सरसाइज के साथ जो बिना जरूरत के बहुत ज्यादा प्रोटीन ले रहे हैं. जो युवाओं के लिए खतरनाक है. इसको लेकर कोई नियम भी नहीं बनाए जा रहे हैं. इस पर नियम बनने चाहिए. हार्ट अटैक की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन लोगों के बीच इसको लेकर जागरूकता भी बढ़ी है.

अब युवाओं में ड्रग्स का इस्तेमाल बहुत तेजी से बढ़ा है. देश के कई बड़े एजुकेशनल इंस्टिट्यूट में पढ़ने वाले बच्चे इसकी गिरफ्त में हैं, जो चिंता का विषय है. केमिकल ड्रग्स शरीर में बहुत तेजी से बदलाव लाते हैं, हार्ट रेट से लेकर ब्लड प्रेशर तक बहुत तेजी से बदलता है. हार्ट अटैक आने के बाद लोग केवल उसकी ही बात करते हैं, लेकिन हार्ट अटैक की वजह ड्रग्स वगैरह भी है, उस पर बात नहीं होती है.

वह बताते हैं 17 से 25 साल के जिन युवाओं को हार्ट अटैक आ रहा है, इसका मुख्य कारण कार्डियोमायोपैथी और बहुत ज्यादा प्रोटीन का लेना, केमिकल ड्रग्स और स्टेरॉयड इंजेक्शन लेना है. भारत में हेरोइन जैसे प्रोडक्ट लाने में फिर भी मुश्किल होती है, लेकिन जो केमिकल ड्रग्स बनाए जाते हैं, वह दवाइयों को मिलाकर बनते हैं.

किन लोगों को है कम खतरा

डॉ वरुण धवन बताते हैं कि जिन भी लोगों की नसों में पहले कई सालों से प्रॉब्लम चल रही है, उसके अंदर नेचुरल बाईपास बन जाते हैं. उनको कोलेटरल बोलते हैं. अगर वो कोलेटरल बन गए हैं तो हार्ट अटैक होने का खतरा होता है लेकिन तुरंत मौत का खतरा कम होता है , जबकि नस ब्लॉक होने में कुछ सेकंड का ही वक्त लगता है. इसलिए एक्सट्रीम लेवल की एक्सरसाइज या फिर कोई और एक्टिविटी करते हुए लोगों की मौत हो जाती है. आपको कभी हार्ट में कोई परेशानी रही हो या ना रही हो लेकिन हार्ट अटैक का खतरा बना रहता है.

किन्हें है ज्यादा खतरा

जिन लोगों की नसों में किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं है, वहां पर अगर एकदम से खून का थक्का जम जाए तो हार्ट अटैक से मौत होने का खतरा ज्यादा रहता है.डॉ वरुण धवन कहते हैं- एथेरोस्क्लेरोसिस प्लाक की वजह से भी ऐसा होता है. जिन लोगों को दिल की बीमारी होने का खतरा रहता है, उन में हार्ट अटैक की संभावना और ज्यादा होती है.

क्या है एथेरोस्क्लेरोसिस?

धमनियों में प्लाक, कोलेस्ट्रॉल या कैल्शियम जमा होने के कारण होने वाले ब्लॉकेज को एथेरोस्क्लेरोसिस (Atherosclerosis) कहते हैं. कई बार एथेरोस्क्लेरोसिस प्लाक टूटकर बॉडी के के किसी दूसरे पार्ट जैसे दिमाग में भी पहुंच जाता है, ऐसे में स्ट्रोक अथवा किसी गंभीर बीमारी का कारण बनता है.

ठंड में हार्ट प्रॉब्लम बढ़ने के तीन कारण

ठंड में हार्ट की प्रॉब्लम बढ़ती है और पूरी दुनिया में बढ़ती है .जब ठंड लगती है तो बॉडी अपनी गर्मी मेंटेन करने के लिए ब्लड प्रेशर को बढ़ाती है. जिसका हार्ट कमजोर होता है, उस पर ब्लड प्रेशर का लोड बढ़ता है. ठंड में खानपान भी बदल जाता है, शरीर में गर्मी बढ़ाने के लिए लोग ज्यादा फैटी फूड और ज्यादा गर्मखाना खाने लगते हैं. वो लोगों के हार्ट पर ही लोड डालता है. ठंड में पसीना भी कम निकलता है. जब बॉडी से पसीना कम में निकलता है तो फ्लोराइड इकट्ठा हो जाता है, जिसका हार्ट कमजोर है और उसकी बॉडी में फ्लोरिड बढ़ेगा तो हार्ट फेल होने का खतरा ज्यादा होता है.

ठंड में दिल का ऐसे रखें ख्याल

जिन लोगों को हार्ट की समस्या है, वो बहुत ज्यादा पानी पीने से बचें. ब्लड प्रेशर को रेगुलर मॉनिटर करते रहें. जब ठंड ज्यादा हो तो बाहर न निकलें.

हार्ट अटैक से इतनी मौतें?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनियाभर में करीब 18 मिलियन लोगों की मौत कार्डियोवैस्कुलर डिजीज (CVD) के कारण हो जाती है. वहीं, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में हार्ट अटैक से 28,579 लोगों की मौत हुई और 2022 में 32,457 लोगों की मौत हुई.


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