क्या है कायरोप्रैक्टिक थेरेपी? समझिए एलाइनमेंट के इलाज की शक्ति

क्या है कायरोप्रैक्टिक थेरेपी? समझिए एलाइनमेंट के इलाज की शक्ति
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सुबह अंगड़ाई लेते वक्त शरीर में कुछ चटकने की आवाज हम सबने सुनी है. कुछ लोगों को खाली बैठे-बैठे उंगलिया चटकाने की आदत भी होती है. पहले जब किसी को शरीर के किसी भी हिस्से में स्टिफनेस की शिकायत होती थी तो उसे चटका देते थे. बहुत सारे प्रैक्टिशनर ऐसे होते थे कि उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं होती थी. उसकी वजह से हड्डी फ्रैक्चर भी हो जाती थी. लेकिन अब फीजियोथेरेपी के साथ साथ इसकी प्रोफेशनल डिमांड बढ़ी है और चटकाने की इस कला को कायरोप्रैक्टिक कहते हैं और ये बेसिकली चटकाने से कहीं ज्यादा प्रोफेशनल इलाज है.

काइरोप्रैक्टिक थेरेपी क्या है?

इस थेरेपी में प्रोफेशनल मैन्युअल थेरेपी देते हैं, जिसमें मसल्स, हड्डी, जोड़ और नसों की समस्याओं का इलाज किया जाता है. काइरोप्रैक्टिक थेरेपी में हड्डियों और मसल्स को चटकाते हुए उन्हें सही अलाइनमेंट और पोस्चर में लाने की कोशिश करते हैं, जिससे मरीज को काफी राहत मिलती है. काइरोप्रैक्टिक एक ऐसा ट्रीटमेंट है, जिसमें ज्यादातर बिना किसी मशीन या दवा के दर्द को दूर किया जाता है.

पतंजलि योगग्राम में मेडिकल अफसर डॉ अजीत राणा बताते हैं, जब हम सुबह उठते हैं तो बॉडी से एक चटकने की आवाज आती है. पहले जब किसी को शरीर के किसी भी पार्ट पर स्टिफनेस होती थी तो उसको चटका देते थे. पहले बहुत सारे प्रैक्टिशनर ऐसे होते थे कि उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं होती थी. उसकी वजह से बोन फ्रैक्चर भी हो जाती थी.

बढ़ा है कायरोप्रैक्टिक थेरेपी का क्रेज

कायरोप्रैक्टिशनर और क्योर क्लीनिक के डायरेक्टर डॉ ईशान कौशिक बताते हैं, पिछले 100 सालों से कायरोप्रैक्टिस विदेश में हो रही है और भारत में पिछले कुछ सालों में ये बहुत तेजी से बढ़ी है. ये US में बहुत ज्यादा चलती है. फिजियोथैरेपी, ऑस्टियोपैथी और कायरोप्रैक्टिक एक जैसे ही काम करते हैं लेकिन कायरोप्रैक्टिक प्रचलन में ज्यादा आ गई. उनका कहना है कि कायरोप्रैक्टिक में जोड़ों में जो एलाइनमेंट होते हैं, अगर वह किसी का गड़बड़ हो जाता है तो उसको ठीक किया जाता है. इस इलाज की पद्धति में माना जाता है कि जब जॉइंट्स के एलाइनमेंट में गड़बड़ी आ जाती है तो दर्द बढ़ जाता है.

काइरोप्रैक्टिक थेरपी से किसका इलाज?

काइरोप्रैक्टिक थेरेपी से पीठ की समस्या, स्पॉन्डिलाइटिस, स्लिप डिस्क, सर्वाइकल, फ्रोजन शोल्डर, गर्दन का दर्द और अर्ली मॉर्निंग स्टिफनेस जैसी समस्या ठीक होती है. इसमें 6 से 7 दिनों तक ट्रीटमेंट दिया जाता है. इस ट्रीटमेंट के एक्सपर्ट समझ सकते हैं कि आपको सही होने में कितने दिन का वक्त लग सकता है. उसके बाद वो हाथों के प्रेशर से ही उन हड्डियों को सेट करते हैं.

किन्हें नहीं लेनी चाहिए काइरोप्रैक्टिक थेरेपी

जिसको भी कोई हार्ट रिलेटेड बीमारी चल रही है, उसको कायरो प्रैक्टिशनर के पास नहीं जाना चाहिए. जिनका बीपी नॉर्मल नहीं रहता, उनको भी कायरो नहीं लेनी चाहिए. अगर किसी को कोई पुराना फ्रैक्चर है तो उसे भी कायरो नहीं लेनी चाहिए. उसे रिफ्रैक्चर हो सकता है या फिर वो एरिया बहुत कमजोर हो सकता है.

एंकल में ट्विस्ट होने पर आपको सबसे पहले एक्स-रे कराना चाहिए, अगर आपको लगता है कि आपकी कोई हड्डी में समस्या नहीं आई है तब आपको कायरो के पास जाना चाहिए.

अर्थराइटिस में भी कायरो नहीं लेना चाहिए क्योंकि उस जगह पर पहले से ही सूजन है और कायरो करने पर स्पेसिफिक एरिया का ब्लड फ्लो बढ़ता है, ऐसे में वहां पर पहले से ज्यादा सूजन आ सकती है.

ओस्टियोपोरोसिस और ओस्टोपिनिया यानी जिस बीमारी में हड्डियों की ताकत और बोन डेन्सिटी कम हो जाती है, उन लोगों को भी कायरो प्रेक्टिस करवाने से बचना चाहिए. कायरो के साथ दवाई चल सकती है.

अनुभवी प्रैक्टिशनर को दिखाना जरूरी

डॉ अजीत राणा की सलाह है कि आप केवल उन्हीं लोगों को दिखाएं, जिन्होंने करीब 2 हजार मरीज पर काम किया हो क्योंकि आपकी स्पाइन से ही आपके शरीर की बहुत सारी नर्व जाती हैं. एक खराब क्रैक आपको लाइफ लॉन्ग समस्या दे सकता है. जानकार कहते हैं, कई बार आपने सुना होगा पार्लर या सैलून में कंधा और गर्दन चटकाने पर किसी की मौत हो गई. इसको सैलून स्ट्रोक या ब्यूटी पार्लर स्ट्रोक सिंड्रोम कहते हैं. जिनको जानकारी नहीं है, जो इसके एक्सपर्ट नहीं हैं, उनसे ऐसा कभी नहीं करवाना चाहिए. कायरो प्रैक्टिस एक्सपर्ट्स ही कर सकते हैं, वरना मसल्स इंजरी, इंटरनल टिशु डैमेज और नर्व इंजरी भी हो जाती है जिससे डेली एक्टिविटी बहुत ज्यादा इफेक्ट होती है.

डॉ अजीत राणा बताते हैं, स्लिप डिस्क में डॉक्टर मरीज को पूरी तरह से बेड रेस्ट के लिए कहते हैं. अगर एक प्रोफेशनल देखेगा तो वो एक्स-रे से लेकर MRI तक की रिपोर्ट दिखेगा. उसको पता होगा कि आपको कौन सी जगह से स्पाइन डाइवर्ट हुआ है. इसके बाद कायरो प्रैक्टिशनर एक सही डायरेक्शन में बॉडी ट्विस्ट करते हैं. जिससे स्लिप डिस्क की समस्या में काफी हद तक राहत हो जाती है. इसी तरह सर्वाइकल सभी को होता है लेकिन कुछ लोगों की खराब लाइफस्टाइल की वजह से दिक्कत बढ़ जाती है. इसमें काइरोप्रैक्टिक थेरेपी धीरे-धीरे आपकी बॉडी के अकॉर्डिंग एक जगह पर फिक्स कर देती है.

ओवर क्रैकिंग करना ठीक नहीं

एक्सपर्ट्स कहते हैं, भारत में जब कोई मरीज दर्द की शिकायत लेकर किसी कायरो प्रैक्टिशनर के पास जाते हैं तो बोलते हैं, बॉडी को चटका दो. उस समय तो लोगों को आराम मिल जाता है लेकिन फिर उसकी बॉडी को आदत लग जाती है. जितना ज्यादा किसी हड्डी को चटकाया जाएगा, जॉइंट्स उतने लूज़ होंगे और उसका असर मसल्स पर पड़ेगा. ओवर क्रैकिंग करना किसी भी हड्डी के लिए ठीक नहीं होता है.

कौन है काइरोप्रैक्टिक थेरेपी का जनक?

डॉ अजीत राणा कहते हैं, डैनियल डेविड पामर को काइरोप्रैक्टिक थेरेपी का जनक माना जाता है. उन्होंने सबसे पहला एडजस्टमेंट 18 सितंबर 1895 में किया था जिसमें उन्होंने एक स्पाइन एडजस्ट किया था जिससे मरीज को काफी आराम हुआ था. इसके बाद उन्होंने बताया था, स्पाइन के रिलैक्स होने से हड्डी संबंधित जितनी भी समस्या होती है, उसमें काफी आराम मिल जाता है. उन्होंने 1897 में पामर नाम का एक स्कूल भी खोला. वो स्कूल आज भी है, ये स्कूल हर साल करीब 70000 लोगों को कायरो प्रैक्टिशनर का सर्टिफिकेट देता है.

महाभारत का कायरो कनेक्शन

डॉ अजीत राणा बताते हैं, भारत में इसके बारे में कुछ लिखा नहीं गया है लेकिन महाभारत का एक किस्सा बताता है जब श्री कृष्ण कंस महल में जा रहे थे वहां पर एक कुब्जा दासी थी. कुब्जा की मां ने कृष्ण से बताया कि उसकी बेटी बहुत सुंदर है लेकिन उससे कोई शादी नहीं कर रहा है क्योंकि वो कुब्जा है. उस समय श्री कृष्ण ने कुब्जा के पैरों पर अपने दोनों पैर रखे, एक हाथ उनकी पीठ पर रखा और उनकी ठोड़ी पर हाथ रखकर सीधा कर दिया जिससे उनकी जकड़न टूट गई. इससे कुब्जा का स्पाइन ठीक हो गया. ऐसे में माना जाता है कि हमारे यहां काइरोप्रैक्टिक थेरेपी उस समय से हो रही है. इसका महाभारत के अध्याय 27 के 35 और 36 श्लोक में जिक्र है.

भारत में सर्टिफिकेट कोर्स

भारत में काइरोप्रैक्टिक थेरेपी के लिए सर्टिफाइड कोर्स किए जाते हैं, कोई डिप्लोमा या फिर डिग्री नहीं होती है. इसमें तीन दिन या 5 दिन के कोर्स होते हैं, उसके बाद सर्टिफिकेट दे दिया जाता है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसकी वजह से भारत में भी बहुत ज्यादा बोन सेटिंग होना शुरू हो गया है. उसमें बहुत सारे लोगों को कई तरह की समस्या आती है.

कायरो सर्टिफिकेट कौन देता है?

भारत में जो यूनाइटेड स्टेट का फेडरेशन था, उसने इंडिया के सारे सर्टिफिकेट को इलिगल बोला. भारत में इंडियन प्रैक्टिस ऑफ कायरो डॉक्टर के सर्टिफिकेट की शुरुआत 2006 में हुई थी. इसको वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ कायरो प्रैक्टिस के अंदर शुरू किया गया था. AICCS यानी ऑल इंडिया काउंसलिंग ऑफ कायरो प्रैक्टिस साइंसेज, ये लोग शॉर्ट टर्म कोर्सेज कराते हैं. जिनका मसल्स और बोन रिलेटेड काम होता है, वो इन कोर्सेज को कर सकते हैं.

काइरोप्रैक्टिक थेरेपी के इक्विपमेंट

मैन्युअल एडजस्टर: ये एक लाइटर टाइप की डिवाइस होती है जो रीढ़ के जोड़ों को मैनिपुलेट या एडजस्ट करने के लिए इस्तेमाल की जाती है.

ड्रॉप टेबल: ड्रॉप टेबल पर ही पेशेंट को लिटाया जाता है, जब एडजस्टमेंट किया जाता है.

जड़ से खत्म होता है दर्द?

डॉ ईशान कौशिक कहते हैं कि मेरे हिसाब से जोड़ों के दर्द के लिए सबसे अच्छा इलाज एक्सरसाइज होता है. आप कोई भी ट्रीटमेंट लेते हैं तो आपका दर्द खत्म किया जा सकता है लेकिन अगर आप एक्सरसाइज नहीं करते हैं तो कोई भी बीमारी जड़ से नहीं खत्म होगी.

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